विवेकानंद के द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है l वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम रहे l हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था l वे ईश्वर के प्रतिनीधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी l
लक्षमण जी भगवान श्रीराम से कहते हैं - भैया! उत्साह ही बलवान होता है, उत्साह से बढ़कर दूसरा कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। - लक्षमण जी
हे अर्जुन! सज्जन पुरुषों का उद्धार करने के लिए और दूषित कर्म करने वालों का नाश करने के लिए तथा धर्म की स्थापना हेतु मैं (श्रीकृष्ण) युग-युग में प्रकट होता हूं। - श्रीकृष्ण जी