मानवता सेवा की गतिविधियाँ

श्रेणी: आलेख (page 9 of 31)

सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
Read More

आचरण शुद्धता

अनमोल वचन :-# आचरण की शुद्धता ही व्यक्ति को प्रखर बनाती है l*
Read More

अनीति मार्ग

अनमोल वचन :-# अनीति के रास्ते पर चलने वाले का बीच राह में ही पतन हो जाता है l*
Read More

व्यक्ति परिचय

अनमोल वचन :-# दो चीजें आपका परिचय कराती हैं : आपका धैर्य, जब आपके पास कुछ भी न हो और...
Read More

प्रभु की समीपता

अनमोल वचन :-# धर्यता और विनम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है l*
Read More

उच्च विचार

अनमोल वचन :-# दिनरात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा...
Read More

मुस्कराना

अनमोल वचन :-# मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो l*
Read More

प्रभु कृपा

अनमोल वचन :-# सच्चाई, सात्विकता और सरलता के बिना भगवान् की कृपा कदापि प्राप्त नहीं की जा सकती l*
Read More

जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
Read More

जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
Read More

कब तक होती रहेगी राजभाषा की अनदेखी

Author Image

राष्ट्रीय भावना – 3

क्या हिंदी “हिन्द की राजभाषा” को व्यवहारिक रूप में जन साधारण तक पहुँचाने में कोई बाधा आ रही है ? अगर हाँ, तो हम उसे दूर करने में क्या प्रयास कर रहे हैं ? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना अति आवश्यक है l मुझे भली प्रकार याद है, दिनांक 29 फरवरी 2008 का वह दिन l मैं अपार जन समूह में लघु सचिवालय धर्मशाला की सभागार में बैठा हुआ अति प्रसन्न था l हम सब वहां पर आयोजित केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड व सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मचारियों की संयुक्त बैठक में भाग लेने गए हुए थे l वहां पर विद्यमान गणमान्य अधिकारीयों की बैठक की अध्यक्षता सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री ने की थी l

सभागार में हर कोई खामोश, कार्रवाई प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा कर रहा था l एकाएक वह शुरू हुई और हमारे कान खड़े हो गये l आरम्भ में, राज्य के सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री माननीय रविन्द्र रवि और चिन्मय स्वामी आश्रम, संस्था की निदेशिका डाक्टर क्षमा मैत्रेय के संभाषण से भारतीयता की झलक अवश्य दिखाई दी l दोनों के भाषण हिंदी भाषा में हुए जिनमें देश के गौरव की महक थी l मुझे पूर्ण आशा थी कि भावी कार्रवाई भी इसी प्रकार चलेगी परन्तु विलायती हवा के तीव्र झोंके से रुख बदल गया और देखते ही देखते सभागार से हिंदी भाषा सूखे पत्ते की तरह उड़कर अमुक दिशा में न जाने कहाँ खो गई l जिसका वहां किसी ने पुनः स्मरण तक नहीं किया – जो भी बोला, जिस किसी ने किसी से पूछा या जिसने कहा, सुना – वह मात्र अंग्रेजी भाषा में ही था l

उस समय मुझे ऐसा लगा मानों हम सब लघु सचिवालय – धर्मशाला की सभागार में नहीं, बल्कि ब्रिटिश संसद में बैठे हुए हैं और कार्रवाई देख रहे हैं, अंतर मात्र इतना था कि हमारे सामने गोरे अंग्रेज नहीं, बल्कि काले अंग्रेज – वो भी स्वदेशी अपने ही भाई थे l वो समाज को बताना चाहते थे कि वे गोरे अंग्रेजों से कहीं ज्यादा बढ़िया अंग्रेजी भाषा बोल और समझ सकते हैं l उनकी अंग्रेजी भाषा, हिंदी भाषा से ज्यादा प्रभावशाली है l अंग्रेजी भाषा में उनका ज्ञान देश की आम जनता आसानी से समझ सकती है l मुझे तो वहां अंग्रेजी साम्राज्य की बू आ रही थी – भले ही वह भारत में कब का समाप्त हो चूका था l

अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना बुरी बात नहीं है l उसे बोलने से पूर्व देश, स्थान और श्रोता का ध्यान रखना ज्यादा जरूरी है l वह लघु सचिवालय अपना था l वहां बैठे सब लोग अपने थे फिर भी वहां सबके सामने राजभाषा हिंदी की अवहेलना और अनदेखी हुई l बोलने वाले लोग हिंदी बोलना भूल गए और जग जान गया कि सचिवालय में राजभाषा हिंदी का कितना प्रयोग होता है और उसे कितना सम्मान दिया जाता है ?

ऐसा लगा मानों मिन्नी सचिवालय में मात्र दो महानुभावों को छोड़कर अन्य किसी को हिंदी या स्थानीय भाषा आती ही नहीं है l हाँ, वे सब पाश्चात्य शिक्षा की भट्टी में तपे हुए अंग्रेजी भाषा के मंजे हुए अच्छे प्रवक्ता अवश्य थे l वे अंग्रेजी भाषा भूलने वाले नहीं थे क्योंकि उन्होंने गोरे अंग्रेजों द्वारा विरासत में प्रदत अंग्रेजी भाषा का परित्याग करके उसका अपमान नहीं करना था l वे हिंदी भाषा बोल सकते थे पर उन्होंने सचिवालय में राजभाषा हिंदी का प्रयोग करके सम्मानित नहीं किया, कहीं गोरे अंग्रेज उनसे नाराज हो जाते तो ——!

भारत या उसके किसी राज्य का, चाहे कोई लघु सचिवालय हो या बड़ा, राज्यसभा हो या लोक सभा अथवा न्याय पालिका वहां पर प्रयोग होने वाली सम्मानित राजभाषा हिंदी में किसी भी जनहित की कार्रवाई, बातचीत अथवा संभाषण के अपरिवर्तित मुख्य अंश मात्र उससे संबंधित विभागीय कार्यालय या अधिकारी तक सीमित न होकर ससम्मान राष्ट्र की विभिन्न स्थानीय भाषाओँ में, उचित माध्यमों द्वारा जन साधारण वर्ग तक पहुँचाना अति आवश्यक है l उनमें पारदर्शिता हो ताकि जन साधारण वर्ग भी उनमें सहभागीदार बन सके और सम्मान सहित जी सके l उसके द्वारा प्रदत योगदान से क्या राष्ट्र का नव निर्माण नहीं हो सकता ? उसका लोकतंत्र में सक्रीय योगदान सुनिश्चित होना चाहिए जो उसका अपना अधिकार है l इससे वह दुनियां को बता सकता है कि भारत उसका भी अपना देश है l वह उसकी रक्षा करने में कभी किसी से पीछे रहने वाला नहीं है l 

प्रकाशित 9 नवंबर 2008 दैनिक कश्मीर टाइम्स

समय की मांग

Author Image
कश्मीर टाइम्स 30 नवम्बर 2008  

वह भी एक समय था जब देश में हर नौजवान किसी न किसी हस्त–कला अथवा अपने रोजगार से जुड़ा हुआ रहता था l चारों ओर सुख समृद्धि थी l देश में कृषि योग्य भूमि की कहीं कमी नहीं थी l पर ज्यों-ज्यों देश की जन संख्या टिड्डीदल की भांति बढ़ती गई, त्यों-त्यों उसकी उपजाऊ धरती और पीने के पानी में भी भारी कमी होने लगी है l प्रदूषण अनवरत बढ़ने लगा है l मानों समस्याओं की बाढ़ आ गई हो l इससे पहले कि यह समस्यायें अपना विकराल रूप धारण कर लें, हमें इन्हें नियंत्रण में लाने के लिए विवेक पूर्ण कुछ प्रयास अवश्य करने होंगे l

हमने कृषि योग्य भूमि पर औद्योगिक इकाइयां या कल-कारखानों की स्थापना नहीं करनी है जिनसे कि कृषि उत्पादन प्रभावित हो l उसके लिए अनुपजाऊ बंजर भूमि निश्चित करनी है और सदैव प्रदूषण मुक्त ही उत्पादन को बढ़ावा देना है l

हमने देश में पशु-धन बढ़ाना है ताकि हमें पर्याप्त मात्रा में देशी खाद प्राप्त हो सके l हमने रासायनिक खादों और कीट नाशक दवाइयों का कम से कम उपयोग करना है ताकि मित्र कीट-जीवों एवं अन्य प्राणियों की भी सुरक्षा और हम सभी का स्वास्थ्य ठीक बना रह सके l

हमने घरेलू दुधारू पशुओं को कहीं खुला और सड़क पर नहीं छोड़ना है और न ही उन्हें कभी कसाइयों तक जाने देना है l अगर किसी कारण वश हम स्वयं उनका पालन-पोषण न कर सकें तो हमने उन्हें स्थानीय सहकारी संस्थाओं द्वारा संचालित पशु-शालाओं को ही देना है ताकि वहां उनका भली प्रकार से पालन पोषण हो सके और हमें मनचाहा ताजा व शूद्ध उत्पाद दूध, घी, पनीर, पौष्टिक खाद और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं मिल सकें l

हमने नहाने, कपड़े धोने, और साफ-सफाई के लिए भूजल स्रोतों – हैन्डपम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का स्वयं कभी प्रयोग नहीं करना है और न ही किसीको करने देना है बल्कि टंकी, तालाब, नदी या नाले के स्वच्छ रोग कीटाणु रहित पानी का प्रयोग करना है और दूसरों को करने के लिए प्रेरित करना है l 

सिंचाई के लिए हमने विभिन्न विकल्पों द्वारा जल संचयन करना है और खेती सींचने के लिए वैज्ञानिक विधियों द्वारा फव्वारों को माध्यम बनाना है l हमने भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन नहीं करना है l भूजल हम सबका जीवन अधार होने के साथ-साथ सुरक्षित पेय जल भंडार भी है l वह हमारे लिए दीर्घ कालिक रोग मुक्त और संचित पेय जल स्रोत है जो हमने मात्र पिने के लिए प्रयोग करना है l

स्थानीय वर्षा जल–संचयन के लिए तालाब, पोखर जोहड़ और चैकडैम अच्छे विकल्प हैं l इनसे जीव जंतुओं को पीने का पानी मिलता है l हमने स्थानीय लोगों ने मिलकर इनका नव निर्माण करना है  तथा पुराने जल स्रोतों का जीर्णोद्वार करके इन्हें उपयोगी बनाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल -संचयन हो सके और सिंचाई कार्य वाधित न हो l

हमने समस्त भू-जल स्रोतों की पहचान करके उन्हें सरंक्षित करने हेतु उनके आस-पास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने हैं l इससे भू संरक्षण होगा l इनसे जीवों के प्राण रक्षार्थ प्राण-वायु तथा जल की मात्रा में वृद्धि होगी और जीव जंतुओं के पालन-पोषण हेतु चारा तथा पानी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगा l 

हमने आवासीय कालोनी, मुहल्लों को साफ-सुथरा व रोग मुक्त रखने के लिए घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों को सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत लाकर मल निकासी तंत्र-प्रणाली को विकसित करना है और मल को तुरंत खाद में भी परिणत करना है ताकि दूषित जल रिसाव से स्थानीय भू-जल स्रोत – हैण्ड-पम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का शुद्ध पेयजल कभी दूषित न हो सके l वह हम सबके लिए सदैव उपयोगी बना रहे l

हमने घर पर स्वयं शुद्ध और ताजा भोजन बनाकर खाना है l डिब्बा–लिफाफा बंद या पहले से तैयार भोजन अथवा जंक फ़ूड का प्रयोग नहीं करना है ताकि हम स्वस्थ रह सकें और हमारी आय का मासिक बजट भी संतुलित बना रहे l

युवा वर्ग को बेरोजगार नहीं रहना है l उसे धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से रोजगार के विकल्पों की तलाश करनी है और उन्हें व्यवहारिक रूप में लाना है l योग्य इच्छुक बेरोजगार युवावर्ग के लिए हस्तकला, ग्रामोद्योग, वाणिज्य, कृषि उत्पादन, वागवानी, पशुपालन, ऐसे अनेकों रोजगार संबंधी विकल्प हैं जिनसे वह घर पर रहकर स्वरोजगार से जुड़ सकता है l उसे सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाशने की आवश्यकता नहीं होगी l

निराश युवावर्ग को सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाश नहीं करनी है बल्कि स्वरोजगार पैत्रिक व्यवसाय तथा सहकारिता की ओर ध्यान देना है l इससे उसकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ परंपरागत स्थानीय क्षेत्रीय और राष्ट्रीय कला-संस्कृति व साहित्य की नवींन संरचना, रक्षा, और उसका विकास तो होगा ही – इसके साथ ही साथ उनकी अपनी पहचान भी बनेगी l 

स्थानीय बेरोजगार युवावर्ग गाँव में रहकर अधिक से अधिक हस्त कला, निर्माण, उत्पादन, कृषि-वागवानी, और पशुपालन संबंधी रोजगार तलाशने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए संबंधित विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है ताकि उसे स्वरोजगार मिल सके और गाँव छोड़कर दूर शहर न जाना पड़े l

हमने अपने परिवार में बेटा या बेटी में भेद नहीं करना है l दोनों एक ही माता-पिता की संतान हैं l हम सबने परिवार नियोजन प्रणाली के अंतर्गत सीमित परिवार का आदर्श अपनाना है और बेटा-बेटी या दोनों का उचित पालन-पोषण करना है l उन्हें उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ उच्च संस्कार भी देने हैं ताकि भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सके l

यह सब कार्य तब तक मात्र किसी सरकार के द्वारा भली प्रकार से आयोजित या संचालित नहीं किये जा सकते, और वह कारगर भी प्रमाणित नहीं हो सकते हैं, जब तक जन साधारण के द्वारा इन्हें अपने जीवन में व्यवहारिक नहीं लाया जाता l अगर हम इन्हें व्यवहारिक रूप प्रदान करते हैं तो यह सुनिश्चित है कि हम आधुनिक भारत में भी प्राचीन भारतीय परंपराओं के निर्वाहक हैं और हम अपनी संस्कृति के प्रति उत्तरदायी भी l
चेतन कौशल "नूरपुरी"

संतुलित विकास की आवश्यकता

Author Image
पर्यावरण चेतना - 10

जैसे-जैसे पृथ्वी पर जनसंख्या बढ़ रही है – धरती पर प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों के अनवरत दोहन में भी वृद्धि हो रही है l इस प्रकार प्राकृतिक असंतुलन बढ़ने के कारण वो दिन दूर नहीं जब मनुष्य को पृथ्वी पर पीने हेतु जल और रहने का स्थान शेष नहीं रहेगा l इसलिए आवश्यक है सही समय पर सभी लोग जाग जाएँ, वे अपनी जिम्मेदारियां समझें और पृथ्वी के प्रति अपना कर्तव्य निभाएं l 

युगों से पृथ्वी पर मात्र मनुष्य ही नहीं रहता आया है बल्कि अन्य जीव-जन्तु जलचर, थलचर और नभचर भी रह रहे हैं l इन सबका जीवन एक दूसरे पर निर्भर करता है l हर बड़ा जीव अपनी क्षुधा शांत करने हेतु दुसरे जीव को मारता और उसे खाता है l महत्वाकांक्षी मनुष्य तो इतना व्याकुल रहता है कि वह अपनी सुख-सुविधाएँ पाने के लिए प्रकृति ही को भूल गया है l वह भूल गया है कि जननी जन्म देती है मगर उसका पालन-पोषण तो प्रकृति ही करती है l

समस्त सुख–सुविधा सम्पन्न स्वच्छ मकान, संतुलित पौष्टिक भोजन, सस्ती बिजली, त्वरित उपयुक्त चिकित्सा, श्मशान घाट, विद्यालय, खेल व योग-प्राणायाम करने का उचित स्थान, देवालय एवम् सत्संग भवन, पशु चिकित्सालय, प्रदूषण मुक्त आवागमन के संसाधन, बारातघर, समुदायक भवन, पुस्तकालय, ग्राम पंचायतघर, बाजार तथा अनाज व सब्जी मंडी, बैंक तथा एटीएम इतियादि किसी गाँव या शहर की अपनी मूल आवश्यकताएं होती हैं l समाज का विकास होना आवश्यक है l वह विकास पोषण पर आधारित हो, शोषण पर नहीं l प्रकृति शोषण पर आधारित किसी भी मूल्य पर होने वाले विकास को कभी सहन नहीं करती है l ऐसा विकास प्राकृतिक आपदा बनकर अपना रौद्र रूप अवश्य दिखाती है l

फिर भी मनुष्य वन कटान, अवैध खनन और अवैध निर्माण कार्य करता हुआ कथित विकास की ओर अग्रसर है मगर विनाश भी उसके साथ गतिशील है l परिणाम स्वरूप जहाँ-तहां वर्षा कम या ज्यादा होने से बाढ़ आती है, अनावश्यक जलभराव होता है, भूस्खलन हो रहे हैं, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं मनुष्य के लिए एक ओर विकास है तो दूसरी ओर विनाश l वह एक आपदा से जूझकर निवृत होता है तो दूसरी आपदा मुंह वाय उसके सम्मुख खड़ी मिलती है l

इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है जब भी कोई सरकारी या गैर सरकारी विकास योजना बनाई जाए तो उसमें दूरदर्शिता का समावेस अवश्य होना चाहिए l उससे प्रकृति पर कम से कम दुष्प्रभाव पड़ना चाहिए l जल स्रोत, जंगल वृत्त और कृषि भूमि सुनिश्चित होनी चाहिए l हर आवश्यक वृत्त वन कटान, अवैध भू-खनन और अवैध निर्माण कार्य मुक्त होना चाहिए l

स्थानीय लोगों को विकास के साथ जोड़ना चाहिए l संतुलित विकास करने के साथ-साथ उनके द्वारा लम्बे समय तक प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक है l उसके लिए अपेक्षित प्राकृतिक पोषण के आधार पर अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर की सरकारी व गैर सरकारी सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं और उनकी सहयोगी स्थानीय शाखाओं के सहयोग, श्रद्धा और सेवा-भक्ति की भावना द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है l

प्रकाशित मातृवंदना अक्तूबर 2021

शोषण पर आधारित विकास सहन नहीं करती प्रकृति

Author Image
पर्यावरण चेतना - 9  

सेवा के नाम पर मानव जहाँ एक ओर समाज का विकास करता है, तो दूसरी ओर जाने-अनजाने में उससे तरह-तरह प्राकृतिक एवं सामाजिक अपराध व शोषण भी हो जाते हैं l देखने, पढ़ने और सुनने में समस्या गंभीर है पर जटिल नहीं l समाज का विकास होना आवश्यक है l ध्यान रहे ! वह विकास पोषण पर आधारित हो, शोषण पर नहीं l हमारी प्रकृति शोषण पर आधारित किसी मूल्य पर होने वाले विकास को कभी सहन नहीं करती है l ऐसा विकास प्राकृतिक आपदा बनकर अपना रौद्र रूप अवश्य दिखाता है l
स्थापना, उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि, न्यूनता और विनाश प्राकृतिक नियम हैं l इन्हें सदा स्मरण रखना चाहिए l
वन, फूल-फल, पत्तियां, वनस्पतियाँ, लताएँ, कंद-मूल और जड़ी-बूटियों से प्राकृतिक सौन्दर्य में निखार आता है l इन्हें सुरक्षित रखने से ही समस्त जीवों के प्राणों की रक्षा, इनकी सन्तति एवं वृद्धि  होती है l इन्हें नष्ट करना अथवा इनका शोषण करना इनके प्रति अन्याय है l
धन, सम्पदा, जंगल, वन्य जीव-जन्तु एवं कीट-पतंगे प्राकृतिक जल भंडार, कृषि योग्य भूमि, गौ – धन, चारागाह तथा जीवनोपयोगी पशु-पक्षियों से मानव की विभिन्न आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं l इन्हें नष्ट करना दानवता है, अपराध है l   
मनुष्य को जलवायु अनुकूल उपयोगी वस्त्र, श्रृंगार, एवं सजावट संबंधी सामग्री प्रकृति से प्राप्त होती है l उसके पोषण का ध्यान रखते हुए उसका दोहन किया जाना सर्व हितकारी है जब कि उसका शोषण विनाश को आमंत्रित करता है l गाँव व शहर का परिवेश/पर्यावरण वहां के लोगों के आपसी सहयोग द्वारा स्वच्छ रहता है l  
दूर संचार एवं प्रचार-प्रसारण सामग्री का सदुपयोग करने एवं उनका उचित रख-रखाव का ध्यान रखने से जन, समाज और राष्ट्र की भलाई होती है l
नैतिक शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, अध्यात्मिक शिक्षा, तथा कलात्मक शिक्षा विद्यार्थी के गुण, संस्कार और स्वभाव के अनुकूल सत्य पर आधारित दी जाती है l इससे उनकी योग्यता में निखार आता है l उससे समाज व राष्ट्र को योग्य नेता, योग्य अधिकारी तथा योग्य कर्मचारी मिलते हैं l
रुचिकर व्यवसाय में युवा, नौजवान की प्रतिभा के दर्शन होते हैं l ईश्वरीय तत्व ज्ञान का सृजन ज्ञानवीर ब्राह्मण करते हैं l तत्वज्ञानी बनकर विश्व कल्याणकारी कार्य किया जाता है l जल, जंगल, जमीन, जन और जीव-जंतुओं का रक्षण शूरवीर क्षत्रिय करते हैं l पराक्रम दिखाकर सबके साथ न्याय और सबका रक्षण किया जाता है l पर्यावरण – जल, जंगल, पेड़, बाग-बगीचे, फुलवारियां, जमीन, जन और जीव-जन्तुओं का संरक्षण, पोषण और संवर्धन धर्मवीर वैश्य करते हैं l व्यक्तिगत या जनसमूह में कर्तव्य समझकर विश्व कल्याणकारी सृजनात्मक, रचनात्मक और सकारात्मक कार्य किया जाता है l अभिरुचि अनुसार कार्य कर्मवीर शूद्र करते हैं l विश्व कल्याणकारी सृजनात्मक, रचनात्मक और सकारात्मक पुरुषार्थ किया जाता है l ज्ञानवीर ब्राह्मण, शूरवीर क्षत्रिय, धर्मवीर वैश्य और कर्मवीर शूद्र एक दूसरे के पूरक हैं l
नदी, तालाब, पोखर-जोहड़, चैकडैम, नहरें वर्षाजल के कृत्रिम जल संग्रह सिंचाई के उचित माध्यम हैं l इन्हें जल चक्रीय-प्रणाली से सक्रिय रखने से कृत्रिम भूजल पुनर्भरण होता है l
कुआँ, बावड़ी, चश्मा, हैण्ड पंप तथा नलकूप परंपरागत पेयजल स्रोत हैं l इनका आवश्यकता अनुसार दोहन करना तथा इन्हें सुरक्षित बनाये रखना हम सबके हित में है l 
सुख-सुविधा संपन्न स्वच्छ मकान, संतुलित, स्वादिष्ट, पौष्टिक भोजन, सस्ती बिजली, त्वरित उपयुक्त चिकित्सा, श्मशान घाट, विद्यालय, खेल व योग प्राणायाम करने का उचित स्थान, देवालय एवं सत्संग भवन, पशु चिकित्सालय, प्रदूषण मुक्त आवागमन के संसाधन, बारात घर, समुदायक भवन, पुस्तकालय, ग्राम पंचायत घर, बाजार तथा अनाज व सब्जी-मंडी, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और ग्रामीण बैंक, एटीएम इतियादि किसी गाँव या शहर की अपनी मूल आवश्यकताएं हैं l इन्हें क्षेत्रीय स्तर की सरकारी व गैर सरकारी सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं द्वारा जल्द से जल्द पूरा कर देना चाहिए l
खुले आकाश में स्वच्छन्द उड़ते हुए खग दिन भर खेतों में दाना चुगते हैं, वे जंगल में फल भी खाते हैं l उन्हें निज नीड़ की दिशा और आकृति हर समय स्मरण रहती है l वह शाम को अपने नीड़ में सकुशल वापिस आ जाते हैं और सुबह होने पर फिर दाना चुगने उड़ जाते हैं l उनके इस व्यवहार से प्रकृति का निरंतर संतुलन बना रहता है l
स्थानीय लोग विकास चाहते हैं l विकास करने के साथ-साथ उनके द्वारा लंबे समय तक प्राकृतिक संतुलन बनाये रखना भी अति आवश्यक है l उसके लिए अपेक्षित प्राकृतिक पोषण के आधार पर अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर की सरकारी व गैर सरकारी सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं और उनकी सहयोगी स्थानीय शाखाओं के सहयोग, श्रद्धालुओं की श्रद्धा और भक्तों की सेवा-भक्ति भावना द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है l
आइये ! हम सब मिलकर इस पुनीत कार्य में तन, मन, धन से सहयोग देकर इसे सफल बनायें l 

प्रकाशित 10 अगस्त 2015 पंजाब केसरी

भू-जल स्तर में कैसे होगी वृद्धि ?

Author Image
पर्यावरण चेतना - 8

भू-जल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है l इससे भूजल स्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है l इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे l

जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए सदा गहरे हैण्ड पंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के जल का ही प्रयोग करें l यह जल निरोग रहने तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है l रसोई में खाद्य पदार्थों की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें l
आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें l
जल प्रयोग करने के पश्चात् नल अवश्य बंद कर दें l  अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी लीक करे तो उसे तुरंत बदली करवा लें या उसका अभाव हो तो टोंटी लगवा लें l
नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें l पुरानी जल पाइप जल का रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें l
घर या सार्वजनिक स्नान गृह में खुले नल या शावर के नीचे कभी स्नान न करें l खुले नल के आगे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनायें l अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग किया जाये l घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात् उसे बंद कर दें l
घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी आवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें l किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को देखते ही बंद कर दें l भूजल की हानि को अपनी हानि समझें l घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल संरक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें l अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखाई दे तो स्थानीय संबंधित कार्यालय को अवश्य सूचित करें ताकि कोई उचित कार्यवाई की जा सके l 
घर, पशुशाला की साफ-सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का ही प्रयोग करें ताकि जल का दरुपयोग न हो l
आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पौधों की सिंचाई करें l फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें l खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगायें l आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें l फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं l फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधी लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगायें l सिंचाई का समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें l ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें l उसमें रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कप्लिंगों की जाँच करते रहें l सिंचाई प्रणाली का भली प्रकार रख-रखाव करें l सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें l उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें l सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें l खेत क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके l 
निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें l उसके स्थान पर जोहड़-पोखर, तालाब, नदी-नाले तथा संचित वर्षाजल का ही प्रयोग करें l समाज में टिड्डी दल की भाँती बढ़ती हुई जन संख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहाँ तक संभव हो, कल के बच्चों के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें l
भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैक डैम बनाएं l उनसे छोटे बिजली घर, पन चक्कियों का निर्माण करके हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं l इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे l
भूजल को प्रभावी बनाने हेतु गाँव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार भूजल पुनर्भरण हेतु गहरे, कच्चे तल के तालाब, पोखर-जोहड़ों का अधिक से अधिक निर्माण एवं उनका संरक्षण करके परंपरागत जल संचयन प्रणाली को बढ़ावा दें l अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में भूजल स्तर में अवश्य ही वृद्धि होगी l आइये ! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाने में एक दुसरे को सहयोग दें l

प्रकाशित दिसम्बर 2013 मातृवंदना

1 7 8 9 10 11 31