अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
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श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ (page 54 of 67)
मानों तो मानव जीवन का निर्माण किसी भवन का निर्माण करने से कोई कम नहीं है। भवन का निर्माण कार्य किसी निश्चित अवधि तक तो समाप्त हो जाता है पर जीवन निर्माण का कार्य बिन रोके लम्बे समय तक चलाए रखने की अपेक्षा बनी रहती है। इसका वर्णन किसी सफल साधक की जीवन गाथा से मिल सकता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। घर पर माता-पिता और विद्यालय में गुरु को उच्च स्थान प्राप्त है। शास्त्रों में इन तीनों को गुरु कहा गया है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव। गुरु माता को सर्व प्रथम स्थान प्राप्त है क्योंकि वह बच्चे को नव मास तक अपनी कोख में रखे उसका पालन-पोषण करती है। जन्म के पश्चात ज्यों-ज्यों शिशु बड़ा होता जाता है त्यों-त्यों वह उसे आहार तथा बात करना सिखाने के साथ-साथ उठने, बैठने और चलने के योग्य बनाती है। गुरु पिता परिवार के पालन-पोषण हेतु घरेलु सुख-सुविधाएं जुटाने का कार्य करता है और परिवार को अच्छे संस्कार देने का भी ध्यान रखता है।
विद्यालय में गुरुजन विद्यार्थी में पनप रहे अच्छे संस्कारों की रक्षा करने के साथ-साथ उसे धीरे-धीरे बल भी प्रदान करते हैं ताकि वह भविष्य में आने वाली जीवन की हर चुनौति का डटकर सामना कर सके।
गुरु भले ही घर का हो या विद्यालय का, वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव वाला होता है। उसके द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य में राष्ट्रीय भावना का दर्शन होता है। जिससे देश-प्रेम छलकता है। गुरु के मन, वचन और कर्म में सदैव निर्भीकता हिलोरे लेती रहती है। वह जनहित में निष्कपट भाव से सोचने, बोलने और कार्य करने वाला होता है। गुरु को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होता है। एक तत्व ज्ञानी या गुरु ही किसी विद्यार्थी को उसकी आवश्यकता अनुसार उचित शिक्षण-प्रशिक्षण देकर उसे सफल स्नातक और अच्छा नागरिक बनाता है।
गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेष्वरः गुरु साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवैे नमः। शास्त्रों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश देवों के तुल्य माना गया है जिनमें सामाजिक संरचना, पालना और बुराइयों का नाश करने की अपार क्षमता होती है। गुरु आत्मोत्थान करता हुआ अपने विभिन्न अनुभवों के आधार पर विद्यार्थी को उच्च शिक्षण-प्रशिक्षण देकर समर्थ बनाता है। क्या हम घर पर गुरु माता-पिता और विद्यालय में गुरुजन अपने इन दायित्वों का भली प्रकार निर्वहन करते हैं?
15 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण
दैनिक जागरण 16 नवम्बर 2007
कदम से कदम मिलाकर जो चलेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
पीछे हमसे अब कोई रहेगा नहीं,
अकेला वो कष्ट सहेगा नहीं,
अपने साथ, सबको लेकर जो चलेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
मन में कोई मैल आए न,
मन की बात, मन में छुपाए न,
विश्वास मत, दोबारा प्राप्त जो करेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
जनतन्त्र है हमारा, हम जनता के,
जनता का काम अपना, हम सेवक जनता के,
समझकर काम अपना, जनता का जो करेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
सर्वोच्च स्थान, राष्ट्र का है,
राष्ट्र का नायक, राष्ट्र का है,
राष्ट्र का माथा सम्मानित, ऊंचा जो करेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
दैनिक जागरण 25 अक्तूबर 2007
ऐ तूफान! तेरी क्या हस्ती?
जहां तू, वहां मैं चला,
सहारा साथ लिए मस्ती,
आंचल में तेरे मैं पला,
चिंता नहीं, जिऊं या मरूं,
घमण्ड न कर, तू प्यारे!
प्रेरणा देता रहा, मैं आऊं पास तेरे,
शीश अपना हथेली पर धारे,
हो जाएं मेरे,
जीवन प्राण न्यारे,
ऐ तूफान! हूं नहीं कम मैं भी तुझसे,
सीख दी तूने, सीख ले तू आज मुझसे,
चेतन कौशल "नूरपुरी"