मैं क्यों बुद्धि का अंधा हो गया हूं?
दो-तीन गुणों का तो मालिक बन गया हूं
जो भी मैं बड़ाई प्राप्त करता हूं
क्यों उसमें खुद को खुद भूल गया हूं
धन्य है कि बड़ाई मेरे पास आती है
पर वह मुझ में विराजित दिव्यांश को जाती है
बस यह धारणा मेरी गलत हो गई
राह भी मेरी आगे की आसान हो गई
अब अन्तरात्मा मेरा प्रकाशित है
यह तन मात्र पुतला मिट्टी है
और समझ में भी मेरे आया है
घमंड करके मैंने बहुमूल्य जीवन गंवाया है
चेतन कौशल "नूरपुरी"