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सदा चोट खाता हूं मैं
बातों में, गैरों की आता हूं
मेरे हित की होती हैं
बात हितैशी की भूल जाता हूं
इन्सान था पर मैंने
खुद से खुद वैर किया है
शैतान बना लिया मैने खुद को
प्रभु को मैंने भुला दिया है
जानता नहीं मैं खुद को
पूछता हूं, तू है कौन?
क्या जान लूं? मैं पहले खुद को
फिर पूछूं, बता तू है कौन?


चेतन कौशल "नूरपुरी"