आज बुराई का प्रतिरोध करने वाला हमारे बीच में कोई एक भी साहसी, वीर, पराक्रमी, बेटा, जन नायक, योद्धा अथवा सिंहनाद करने वाला शेर नौजवान दिखाई नहीं दे रहा है। मानों जननियों ने ऐसे शेरों को पैदा करना छोड़ दिया है। गुरु जन योद्धाओं को तैयार करना भूल गए हैं अथवा वे समाज विरोधी तत्वों केे भय से भयभीत हैं। उचित शिक्षा के अभाव में आज समस्त भारत भूमि भावी वीरों से हीन होने जा रही है। उद्यमी युवा जो एक बार समाज में कहीं किसी के साथ अन्याय, शोषण अथवा अत्याचार होते देख लेता था, अपराधी को सन्मार्ग पर लाने के लिए उसका गर्म खून खौल उठता था, उसका साहस परास्त हो गया है। यही कारण है कि जहां भी दृष्टि जाती है, मात्र भय, निराशा अशांति और अराजकता का तांडव होता हुआ दिखाई देता है। धर्माचार्यों के उपदेशों का बाल-युवावर्ग पर तनिक भी प्रभाव नही पड़ रहा हैै। बड़ी कठिनाई से पांच प्रतिशत युवाओं को छोड़ कर आज का शेष भारतीय नौजवान वर्ग भले ही बाहर से अपने बल, धन, सौंदर्य और जवानी से अपना यश और नाम कमाने के लिए बढ़चढ़ कर लोक प्रदर्शन करता हो परन्तु वह भीतर से तो है विवश और असमर्थ ही। इसी कारण सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्य क्षेत्र में कोरा होने के साथ-साथ वह अधीर भी हैै। वह सन्मार्ग भूल कर स्वार्थी, लोभी, घमंडी और आत्म विमुख होता जा रहा है। उसमें सन्मार्ग पर चलने की इच्छा-शक्ति भी तो शेष नही बची है। वह भूल गया है कि वह स्वयं कौन है? आज का कोई भी विद्यार्थी, स्नातक, बे-रोजगार नौजवान मानसिक तनाव के कारण आत्म विमुख ही नहीं हताष-निराश भी हो रहा है जिससे वह जाने-अनजाने में आत्महत्या अथवा आत्मदाह तक कर लेता है। प्राचीन काल की भांति क्या माता-पिता बच्चों में आज अच्छे संस्कारों का सृजन कर पाते हैं? क्या गुरुजन विद्यार्थी वर्ग में विद्यमान उनके अच्छे गुण व संस्कारों का भली प्रकार पालन-पोषण, संरक्षण और संवर्धन करते हैं? वर्तमान शिक्षा से क्या विद्यार्थी संस्कारवान बनते हैं? नहीं तो ऐसा क्या है जिससे कि हम अपना कर्तव्य भूल रहे हैं? हम अपना कर्तव्य पालन नहीं कर रहे।