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आलेख – शिक्षा दर्पण मातृवंदना 9.9.2021 

बहुत समय पूर्व भारत आर्यों का देश “आर्यवर्त” था l हमारे पूर्वज आर्य (श्रेष्ठ) थे l सन्यासी जन वेद सम्मत कार्य करते थे l वे गृहस्थियों के कल्याणार्थ वेद-वाणी सुनाते थे l हम सब भारतवासी आर्य वंशज, आर्य हैं l ब्रह्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाने का मूल मन्त्र है l ब्रह्मज्ञान से मनुष्य जागरूक होता है l उसका हृदय एवं मस्तिष्क ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होता है l जब मनुष्य इस स्थिति पर पहुँच जाता है, तब वह स्वयं के शौर्य और पराक्रम को भी पहचान लेता है l वह समाज को संगठित करके उसमें नवजीवन का संचार करता है l जिससे समाज और उसकी धन-संपदा की रक्षा एवंम सुरक्षा सुनिश्चित होती है l

भारत की आत्मा वेद हैं, वेद ज्ञान-विज्ञान के स्रोत हैं l वेदों से भारत की पहचान है l वेद जो देववाणी पर आधारित हैं, उन्हें ऋषि-मुनियों द्वारा श्रव्य एवंम लिपिबद्ध किया हुआ माना गया है l वेदों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद प्रमुख हैं l वे सब सनातन हैं l वेद पुरातन होते हुए भी सदैव नवीन हैं l उनमें कभी परिवर्तन नहीं होता है l वे कभी पुराने नहीं होते हैं l भौतिक ज्ञान-विज्ञान अर्जित करने के लिए राजगुरु, शिक्षक एवंम अध्यापक अपने पुरुषार्थी शिष्य, शिक्षार्थियों के साथ मिल-बैठकर एच्छिक एवंम रुचिकर विषयक ज्ञान-विज्ञान के पठन-पाठन का कार्य करते हैं l वे उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित करते हैं l उस समय वे दोनों अपनी पवित्र भावना के अनुसार परमात्मा से प्रार्थना करते हैं – “हे ईश्वर ! हम दोनों, गुरु, शिष्य की रक्षा करे l हम दोनों का उपयोग करें l हम दोनों एक साथ पुरुषार्थ करें l हमारी विद्या तेजस्वी हो l हम एक दूसरे का द्वेष न करें l ॐ शांतिः शांतिः शांतिः l संस्कृत देवों की भाषा वेद भाषा है l ब्राह्मण वेद भाषा संस्कृत पढ़ते-पढ़ाते थे, देश में सभी जन विद्वान थे l इसलिए वेद पढ़ो, वेद पढ़ाओ l भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाओ l


अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत में गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली का प्रचलन था l घर से बच्चों को अच्छे संस्कार मिलने के पश्चात विद्यालय में गुरुजनों की बड़ी भूमिका होती थी l विद्यालय में अच्छे संस्कारों का संरक्षण होता था l भारत के परंपरागत गुरुकुलों में गुरुजनों के द्वारा ऐसी होनहार प्रतिभाओं को भली प्रकार परखा और फिर तराशा जाता था जो युवा होकर अपने-अपने कार्य क्षेत्र में जी-जान लगाकर कार्य करते थे l परिणाम स्वरूप हमारा भारत विश्व मानचित्र पर अखंड भारत बनकर उभरा और वह सोने की चिड़िया के नाम से सर्वविख्यात हुआ l भारतीय शिक्षा गुरुकुल परंपरा पर आधारित थी जिसमें सहयोग, सहभोज, सत्संग, लोक अनुदान की पवित्र भावना, सद्विचार, सत्कर्मों से विश्व का कल्याण होता था l


समस्त वादिक पाठशालाओं एवंम गुरुकुलों में विद्यार्थियों को आत्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ से विभिन्न अनेकों जीवनोपयोगी विद्याओं का शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाता था l इससे उनके शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संतुलित विकास होता था, बदले में विद्यार्थी गुरु को गुरु दक्षिणा देते थे l


2 फरवरी 1835 को लार्ड मैकाले द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार अंग्रेजों ने सन 1840 ई0 में कानून बनाकर भारत की जीवनोपयोगी गुरुकुल प्रधान शिक्षा-प्रणाली को अवैध घोषित कर दिया, जो भारतीय छात्र-छात्राओं एवंम साधकों में वैदिक धर्म, ज्ञान, कर्मनिष्ठा, शौर्यता और वीरता जैसे संस्कारों का संचार करने के कारण राष्ट्रीय एकता एवंम अखंडता के रूप में उसकी रीढ़ थी l उसके स्थान पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य हित की पोषक अंग्रेजी भाषी शिक्षा-प्रणाली लागू की, जो भविष्य में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने में अत्यंत कारगर सिद्ध हुई, दुर्भाग्यवश वह आज भी हम सबपर प्रभावी है l


समर्थ विद्यार्थी एवंम नागरिकों के द्वारा पुरुषार्थ करके मात्र धन अर्जित करना, अपने परिवार का पालन-पोषण करना और उसके लिए सुख-सुविधाएँ जुटाना ही पर्याप्त नहीं होना चाहिए, व्याक्ति के द्वारा किसी समय की तनिक सी चूक से मानवता के शत्रु को मानवता पीड़ित करने, उसे कष्ट पहुँचाने का अवसर मिल जाता है l वह अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण और आक्रमण का सहारा लेता है l उसके द्वारा व्यक्तिगत, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, और राष्ट्रीय हानि पहुंचाई जाती है l आर्यजन भली प्रकार जानते थे, समाज में बिना भेदभाव के, आपस में सुसंगठित, सुरक्षित, सतर्क रहना और निरंतर सतर्कता बनाये रखना नितांत आवश्यक है l ऐसा करना साहसी वीर, वीरांगनाओं का कर्तव्य है l वह हर चुनौती का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं और उचित समय आने पर वे उसका मुंहतोड़ उत्तर भी देते हैं l अगर यह सब गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली की देन रही है तो आइये ! हम राष्ट्र में प्रायः लुप्त हो चुकी इस व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का पुनः प्रयास करें ताकि आर्य समाज और राष्ट्र में तेजी से बढ़ रहे अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण, और भ्रष्टाचार का जड़ से सफाया हो सके l राष्ट्र में फिर से आदर्श समाज की संरचना की जा सके l
गुरुकुल में अध्यात्मिक एवंम भौतिक ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात् मनोयोग से पुरुषार्थी नवयुवाओं के द्वारा किया जाने वाला कोई भी कार्य सफल, श्रेष्ठ और सर्वहितकारी होता था l इसी आधार पर साहसी पुरुषार्थी व्यक्ति, निर्माता, अन्वेषक, विशिष्ट व्यक्ति, कलाकार, वास्तुकार, शिल्पकार, साहित्यकार, रचनाकार, कवि, विशेषज्ञ, दार्शनिक, साधक, ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी, योगी और सन्यासी अपने जीवन पर्यंत अभ्यास एवंम प्रयास करते थे l इससे उनके द्वारा मानवता की सेवा तो होती ही थी, सबका कल्याण भी होता था l आइये ! हम आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ परंपरागत वैदिक शिक्षा-प्रणाली भी अपनाएं, भारत को पुनः विश्वगुरु बनाएं l ब्रह्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ से ही भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाया जा सकता है l गाँव-गाँव मैं वैदिक पाठशालायें स्थापित करें, प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का सुअवसर प्रदान करें, उन्हें प्रोत्साहन दें, ताकि हमारे देश का चहुमुखी विकास हो सके l


वेद स्वयं में भारत की सत्य सनातन संस्कृति के भंडार हैं l वैदिक सोच, संस्कृत भाषा, वैदिक विचार धारा और वैदिक जीवन शैली, ब्रह्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ से भारत का चहुंमुखी विकास हुआ था, ऐसा आगे भी हो सकता है l भारत को सशक्त बनाने के लिए हमें बच्चो को आधुनिक शिक्षा देने के साथ-साथ परंपरागत वैदिक शिक्षा भी अवश्य देनी चाहिए l

चेतन कौशल “नूरपुरी”