दैनिक जागरण 16 मार्च 2007
जब मन कर्म वाणी से
मैं गुरु का अनादर करता हूं
तब मैं उनसे सुस्नेह की
सयंमी होते हैं गुरु सदा
करते हैं शिष्य हित की बात
मैं शिष्य हूं मन चला
करता हूँ अपने मन की बात
मन की बातों में रम कर
जब मैं गुरु को भूल जाता हूं
खाता हूं तब ठोकरें दरदर
गुरु से दूर हो जाता हूं
चेतन कौशल "नूरपुरी"