आलेख - सामाजिक चेतना मातृवन्दना नवंबर 2007
जून 2007 अंक में पृष्ठ संख्या 8 आवरण आलेखानुसार “कुछ वर्ष पूर्व “नासा” द्वारा उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और सामग्रियों से यह ज्ञात हुआ है कि श्रीलंका और श्रीरामेश्वरम के बीच 48 किलोमीटर लम्बा तथा लगभग 2 किलोमीटर चौड़ा सेतु पानी में डूबा हुआ है और यह रेत तथा पत्थर का मानव निर्मित सेतु है l भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु का जलयान मार्ग हेतु भारत और श्रीलंका के बीच अवरोध मानकर “सेतु समुद्रम-शिपिंग-केनल प्रोजेक्ट” को भारत सरकार ने 2500 करोड़ रूपये के अनुबंध पर तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है” यह भारतीय संस्कृति की धरोहर पर होने वाला सीधा कुठाराघात ही तो है जिसे जनांदोलन द्वारा तत्काल नियंत्रित किया जाना अनिवार्य है l
जुलाई 2007 मातृवन्दना अंक के पृष्ठ संख्या 11 धरोहर आलेख “वैज्ञानिक तर्क” के अनुसार “धनुषकोटि” के समीप जलयान मार्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकता है l” इस सुझाव पर विचार किया जा सकता है परन्तु इसकी अनदेखी की जा रही है l एक तरफ भारत की विदेश नीति पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश, भूटान आदि के साथ आपसी संबंध सुधारने की रही है l उन्हें सड़कों के माध्यम द्वारा आपस में जोड़कर उनमें आपसी दूरियां मिटाई जा रही हैं तो दूसरी ओर भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु को तोड़ा जा रहा है l इसे वर्तमान सरकार का जन भावना विरोधी उठाया गया कदम कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि इसके साथ देश-विदेश के असंख्य श्रद्धालुओं की अपार धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं l इससे उन्हें आघात पहुँच रहा है l
कितना अच्छा होता ! अगर श्रीराम युग की इस बहुमूल्य धरोहर रामसेतु का एक वार जीर्णोद्वार अवश्य हो जाता l उसे नया स्वरूप प्रदान किया जाता l इसके लिए श्रीलंका और भारत सरकार मिलकर प्रयास कर सकती हैं l दोनों देशों के संबंध और अधिक प्रगाढ़ और मधुर हो सकते हैं l इस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की किसी भी मूल्य पर रक्षा अवश्य की जानी चाहिए l
चेतन कौशल “नूरपुरी”