दैनिक जागरण 25 नवंबर 2006
अपने ही छूट जाते हैं बहुत दूर
छोटी सी जिन्दगी की लम्बी राह पर
सदा नहीं रहता साथ यहां स्वदेह का भी
बस पानी बुलबुला है सत्य की राह पर
साथ नहीं देता हर कोई हर कहीं
हर पल और हर डगर पर
राह में लगती हैं ठोकरें कदम कदम पर
चलना पड़ता है अकेला ही संभल कर
उठता नहीं गिर कर चलता नहीं जो संभल कर
कठिन राह अपनी आगे की समझ कर
गिर जाता है वह फिर अन्य कोई ठोकर खाकर
और कोसने लगता है भाग्य अपना खुद दुख पाकर
चेतन कौशल "नूरपुरी"