आलेख – ऐतिहासिक अवलोकन मातृवंदना 2023 मार्च अप्रैल
इब्राहीम गजनवी द्वारा ध्वस्त धमीड़ी किले में स्थित प्राचीन मंदिर के अवशेष
सन 1088 ई० की शृंखला में गजनवी ने भारत पर एक के पश्चात् एक अनेकों आक्रमण किये थे l उसने अपने आक्रमण, आतंक और लूटपाट के अंतिम अभियान में काँगड़ा मंदिर की तो अनंत संपदा को लुटा ही था l इसके साथ ही साथ धमीड़ी का प्राचीन मंदिर भी अछूता नहीं रह सका l उसने धमीड़ी के इस मन्दिर को ना केवल लुटा ही बल्कि उसे छैनियों तथा हथोड़ों से क्षतिग्रस्त भी करवाया था l
धमीड़ी किले के प्रवेश द्वार से पूर्व पहला लक्ष्मी-नारायण जी और दूसरा धर्मेश्वर महादेव जी का मंदिर दर्शनीय है l कहा जाता है कि जब धमीड़ी शहर का प्रादुर्भाव हुआ था, यह दोनों मंदिर उसी काल के विस्थापित हैं l धर्मेश्वर महादेव जी के नाम पर ही वर्तमान नूरपुर का प्राचीन नाम धमीड़ी पड़ा था l नूरपुर के लोग अब भी धर्मेश्वर महादेव जी को शहर का स्वामी मानते हैं l
इस मंदिर के बारे में एक किवदन्ती आज भी प्रचलित है – धर्मेश्वर महादेव जी के मंदिर के चारों ओर दीवारों में छोटे-छोटे झरोखे हैं l जब इस क्षेत्र में वर्षा नहीं होती थी, उस समय श्रद्धालु-भक्तों के द्वारा मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित बड़े तलाब से पानी लाकर, मंदिर के किवाड़ बंद करके, उन छोटे-छोटे झरोखों से तब तक पानी डाला जाता था जब तक मंदिर के भीतर शिवलिंग पानी में डूब नहीं जाता था l शिवलिंग का पानी में डूब जाने के पश्चात् एक दो दिनों तक वर्षा अवश्य हो जाती थी l
किले के अंदर बृजराज स्वामी जी का मंदिर, के पास अन्य महाकाली माता जी का एक मंदिर है l स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मंदिर उतना ही प्राचीन है जितना कि किला l माता को यहाँ के राजाओं की कुलदेवी कहा जाता है l रात के समय माता अपने क्षेत्र में दौरा करती हैं l जब वे बाहर निकलती हैं, उस समय उनके चलने और आभूषणों की खनखनाहट के स्वर किन्हीं भाग्यशाली श्रद्धालु-भक्तों को ही सुनाई देते हैं l
नूरपुर शहर में गोलू नाम का एक मिस्त्री रहता था l वह धमीड़ी के राजा जगत सिंह जी, का समकालीन था l एक बार बृजराज स्वामी मंदिर की छत जो क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण नीचे झुक गई थी, उसे ठीक करने की जिम्मेवारी गोलू मिस्त्री की थी l उसने काले चने की आठ-दस बोरियां मंगवाई जिन्हें उसने छत के नीचे बोरी पर, बोरी रखवाकर सभी बोरियों को छत तक ऊँचा करके रखवा दिया, तद्पश्चात् उन सब बोरिओं को पानी से भिगोया गया l इससे चने फूल गए और मंदिर की छत ऊपर उठ गई l बाद में गोलू मिस्त्री ने छत ठीक कर दिया l उसी गोलू मिस्त्री के नाम पर आज नूरपुर शहर में एक गोलू मुहल्ला भी स्थित है जो सबको उसकी याद दिलाता रहता है l
भवन राज दरबार बना बृजराज स्वामी का मंदिर -
मैंने अपनी पूजनीय माता जी, से सुनी रोचक दन्त कथा जो उन्होंने मेरे नाना जी, से सुनी थी, इस प्रकार है -
“एक बार राजा जगत सिंह जी, (1619 – 46) अपने राजकीय कार्य के अंतर्गत राजस्थान के चितौड़ – उदयपुर गए थे l वहां के राजा ने पुरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विश्राम करने के लिए अपने राज अतिथि गृह में, विश्राम कक्ष की व्यवस्था करवा दी l जिस कमरे में वे रात विश्राम कर रहे थे, अचानक उसके साथ ही वाले कमरे से उनके कानों में घुंघरुओं के स्वर के साथ-साथ किसी महिला के नाचने और भजन गाने की मधुर आवाज सुनाई दी l राजा को जिज्ञासा हुई, क्यों न एक बार उठकर साथ वाले कमरे में देख लिया जाये ? जब उन्होंने उठकर कमरे में देखा तो बस वे देखते ही रह गये l वे देखते हैं कि वह नाचने और गाने वाली कोई और नहीं, मीराबाई जी, श्रीकृष्ण जी के प्रेम में मग्न थी, गा रही थी l राजा जगत सिंह जी, कभी अपने कमरे में जाकर सोने का असफल प्रयत्न करते तो कभी उसे देखने का l इस तरह सुबह कब हो गई ! उन्हें कुछ पता नहीं चला l राजा जगत सिंह जी, ने सुबह देखा कि साथ वाले कमरे में जहाँ से उन्हें स्वर सुनाई दे रहा था, वहां एक मंदिर है और उस मंदिर में श्रीकृष्ण जी तथा मीराबाई जी की दो मूर्तियाँ विराजित हैं l कहा जाता है यह वही श्रीकृष्ण जी की मूर्ति है जिसकी मीराबाई जी पूजा किया करती थी और उसमें सशरीर समा गई थी l
धमीड़ी की वापसी के समय राजा जगत सिंह जी से रहा नहीं गया l उन्होंने अपने पुरोहित के माध्यम से अपने मन की बात साहस सहित, वहां के राजा के समक्ष रख दी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया l राजा ने उन्हें भेंट स्वरूप वे दो मूर्तियाँ ही नहीं से दीं बल्कि उनके साथ एक मौलसरी का पौधा भी दिया जिसे लेकर राजा जगत सिंह जी धमीड़ी आ गए l
राजा जगत सिंह जी, का राजस्थान से धमीड़ी में आगमन हुए अभी कुछ ही समय हुआ था कि दिल्ली के मुग़ल सम्राट ने धमीड़ी पर आक्रमण करने हेतु सेना की एक टुकड़ी को किसी विशेष सेना नायक के नेतृत्व में भेज दिया l
माता जी ने आगे कहा – “वह भवन जो अब बृजराज स्वामी मंदिर है, पहले राजा जगत सिंह जी, का राज दरवार था और उन्होंने उसकी पहली मंजिल पर जहाँ अब श्रीकृष्ण जी तथा मीराबाई जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं, वहां स्वयं बैठने की लिए राज सिंहासन स्थापित किया हुआ था l”
दूर से आई हुई थकी मुग़ल सेना धमीड़ी राज्य से कुछ कोस दूरी पर रात को विश्राम कर रही थी l रात में राजा जगत सिंह जी, को श्रीकृष्ण जी सपने में आये और उन्होंने उनसे कहा –
“मुग़ल सेना धमीड़ी राज्य पर आक्रमण करने वाली है l वह कृष्ण व मीरा की मूर्तियाँ खंडित कर दे कि उससे पूर्व तू उन दोनों को पास में बहने वाली जब्बर खड्ड में बनी अस्थाई झील में डुबो दे ताकि वह वहां सुरक्षित रह सकें l विजयी होने के पश्चात् तू उन्हें वहां से बाहर निकलवा लेना l”
युद्ध शुरू हुआ l मुग़ल सेना की एक टुकड़ी ने नूरपुर शहर पर भी आक्रमण किया तब प्रत्यक्ष दर्शियों ने देखा किले से दो सफेद घोड़ों पर दो घुड़सवार अपने हाथों में तलवारें लिए हुए निकले देखते ही देखते वे असंख्य घुड़सवारों में परिवर्तित हो गये l मुग़ल सेना को इसकी आशा नहीं थी l अपर सेना देख मुग़ल सेना की टुकड़ी के पांव उखड़ गए और वह वापिस भाग गई l युद्ध के मैदान में भी राजा की जीत हुई l राजा ने सुबह राज दरवार लगाना था कि उस रात को फिर एक बार श्रीकृष्ण जी, उन्हें सपने में आये और उन्होंने उनसे कहा –
“तू आज अपनी जीत पर इतना प्रसन्न है कि मुझे भी भूल गया l मीरा और कृष्ण की प्रतिमाओं को कौन लायेगा, जिन्हें तूने पानी में डुबो रखा है ?”
इतना सुनते ही राजा की तत्काल आँख खुल गई और इसके पश्चात् फिर उन्हें पलभर भी नींद नहीं आई l वह बड़ी व्याकुलता से भोर होने की प्रतीक्षा करने लगे l सुबह होते ही उन्होंने राज पुरोहितों को अपने पास बुलावा भेजा और उनके आने पर राजा ने उन्हें श्रीकृष्ण जी की सपने वाली सारी बात कह सुनाई l निर्णय हुआ, दोनों मूर्तियों को वापिस महल में लाया जाये l तब स्नान आदि से निवृत होकर राजा जगत सिंह जी, ने प्रजा जनों के साथ जब्बर खड्ड की ओर चलने और अस्थाई झील में से मीरा और कृष्ण की प्रतिमाओं को राज महल में लाने का आदेश दिया l
प्रतिमाओं को जब्बर खड्ड की झील से निकलवा कर पालकी में रखा गया l कहारों ने पालकी उठाई और वे राज महल की ओर चल दिए l वे अभी बड़ी मुश्किल से दस ही पग चल पाए होंगे कि अचानक उन्होंने पालकी नीचे धरती पर रख दी l तब राजा ने कहारों से पूछा –
“क्या हुआ, पालकी नीचे क्यों रख दी है ? आप आगे क्यों नहीं चल रहे ?
“ पता नहीं, पालकी अचानक भारी कैसे हो गई ? इसे उठाकर हमसे नहीं चला जा रहा l” कहारों ने कहा l
तब राज पुरोहितों सहित सभी उपस्थित जनों ने एक दूसरे का निरीक्षण करने के साथ-साथ आत्म निरीक्षण भी किया और पाया कि सभी लोग नंगे पांव चल रहे हैं, मात्र एक राजा ही ही हैं जो जूते पहने हुए थे l तब राज पुरोहित ने उनसे जूते उतारने का आग्रह किया l उनके द्वारा जूते उतारने के तुरंत पश्चात् पालकी पूर्वत भारहीन हो गई l
बृजराज स्वामी मंदिर में विराजित श्रीकृष्ण जी और मीराबाई जी की मूर्तियाँ l
राज महल में पहुँचने के पश्चात् राजा ने अपने राज सिंहासन को उसके स्थान से हटवा दिया और वहां पर श्रीकृष्ण जी तथा मीराबाई जी की मूर्तियां स्थापित करवा दी l इसके साथ ही राजा ने अपने राज दरवार को ठाकुर द्वारा भी घोषित कर दिया l
बृजराज स्वामी मंदिर के प्रांगन में लहलहाता मौलसरी का पेड़
इतना ही नहीं राजस्थान के चितौड़ – उदयपुर से श्रीकृष्ण जी तथा मीराबाई जी की मूर्तियों संग लाये हुए उस मौलसरी के पौधे को भी राजा ने मंदिर के ठीक सामने प्रांगण में लगवा दिया जो अब भी एक विशाल वृक्ष है l उन्होंने भवन के निम्न भाग की दीवारों पर श्रीकृष्ण जी की लीलाओं से संबंधित अनेकों रंगीन मनमोहक भीती चित्र भी बनवाए थे l यह प्रतिष्ठित भवन अब बृजराज स्वामी मंदिर के नाम से जाना जाता है l
माता जी आगे कहती हैं – सन 1905 ई० की बात है, तब एक बहुत बड़ा भूकंप आया था l उस भूकंप में काँगड़ा शहर में जान-मॉल की बहुत अधिक हानि हुई थी लेकिन नूरपुर शहर में किसी मकान या प्राणी को कोई खरोंच तक नहीं आई थी l हाँ बृजराज स्वामी मंदिर की पिछली दीवार में y आकार की एक मात्र दरार आई थी जिसे बाद में ठीक कर दिया गया था, वह निशान अब भी दिखाई देता है l
माता जी आगे कहती हैं – “गर्मियों का मौसम था l एक रात मंदिर का पुजारी दर्शन और एक गद्दी मंदिर की धरातल पर बातें करते-करते कब सो गए, उन्हें कुछ पता ना चला l इस बार सुबह पुजारी को उठने में कुछ देरी हो गई लेकिन गद्दी जाग चुका था l इतने में गद्दी को ऊपर वाली पहली मंजिल पर किसी व्यक्ति के खडाऊं पहने चलने का स्वर सुनाई दिया जो उनकी ओर ही बढ़ा चले आ रहा था l वह अनजाना आ ही नहीं रहा था बल्कि “हरि ओम तत्सत” मन्त्र का भी निरंतर उच्चारण कर रहा था l अब वह छत की सीढ़ियाँ उतर रहा था और उसकू खडाऊं की आवाज आ रही थी l गद्दी देखता है – स्वयं श्रीकृष्ण जी एक हाथ में लोटा, दुसरे हाथ में दातुन और कंधे पर गमछा डाले हुए नीचे चले आ रहे हैं l इसके साथ ही साथ गद्दी के तन पर एक अनजाना सा भार बढ़ने लगा l वह निरंतर बढ़ता जा रहा था और गद्दी चाहकर भी उठना तो दूर, तनिक हिल भी नहीं पा रहा था l श्रीकृष्ण जी उसके पास आकर मंदिर से दूर सामने बने कमरे की ओर जा रहे थे l जैसे जैसे वे उससे दूर होते गए, उसके साथ ही साथ उस पर वह अनजान भार भी हल्का होता चला गया l श्रीकृष्ण जी ने कमरे की कुण्डी खोली और उसके भीतर चले गये l तब तक गद्दी पूरी तरह से भारहीन हो चूका था और उसके मुंह से निकला –
“दर्शन ! उठ, आज श्रीकृष्ण जी स्वयं स्नान करने निकलें हैं, तू सोया रह l”
पुजारी हड़बड़ाता हुआ उठा –
“हरि ओम, हरि ओम, क्या कह रहे हो ?” उसके मुंह से निकला l
“हाँ-हाँ, मैं ठीक कह रहा हूँ, जो तूने सुना l तेरे ठाकुर जी स्वयं स्नान करने हेतु अभी-अभी सामने वाले कमरे में गए हैं l” गद्दी ने कहा और तब उन दोनों ने सय्या त्याग दी l
चेतन कौशल “नूरपुरी”