दैनिक जागरण 15 जुलाई 2006
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
सर्दी गर्मी वर्षा सब सहती जाती
मीठे कन्दमूल वनस्पति उपजाती
फूलफल अन्न दालें खिलाती
देकर सकल पदार्थ घर बाहर भरती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
ऊंचे पहाड़ों से बनी तेरी छाती है
वन्य सम्पदा की तू ओढ़े साड़ी है
कल कल करते झरने तेरे दूध के धारे हैं
लहराती फसलें प्राणी पोशण करती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोशक धरती मां
नहीं दुर्योधन दुशासन तेरी इज्जत लूट हैं सकते
हर समय यहां रक्षा तेरी कृष्ण मुरारी हैं करते
पूत कपूत हो जाता माता नहीं कुमाता होती है
तू सबके सिर आंचल की ठण्डी छाया करती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
चेतन कौशल "नूरपुरी"