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आलेख – सामाजिक चेतना मातृवन्दन  फरवरी 2022

साधू भूखा भाव का धन का भुखा नाहीं, धन का भूखा जो फिरे वो तो साधू नाहीं ll संत कवीर जी के इस कथनानुसार सज्जन या सत्पुरुष वही होता है जिसे किसी प्रकार का कोई लोभ न हो l लोभी पुरुष कभी साधू नहीं हो सकता l अगर लघु मार्ग द्वारा धन संग्रह करने के उद्देश्य से कोई व्यक्ति सेवक का चोला धारण करके जनसेवा के पथपर चलता है तो उससे जनसेवा नहीं, निज की सेवा होती है जैसे कमीशन का जुगाड़ करना, रिश्वत लेना, घूस खाना और गवन करना l क्योंकि जन सेवा हेतु सीमित दृष्टिकोण या संकीर्ण विचारधारा की नहीं बल्कि विशाल हृदय, शांत मस्तिष्क और मात्र राष्ट्र एवम् जनहित के कार्य करने की आवश्यकता होती है l यह सब गुण सज्जन एवम् सत्पुरुषों में विद्द्यमान होते हैं l
जिस व्यक्ति का मन परहित के लिए दिन-रात तड़पता हो, बुद्धि परहित का चिंतन करती हो और हाथ परहित के कार्य करने हेतु सदैव तत्पर रहते हों – उसके लिए यह सारा संसार अपना और वह स्वयं सारे संसार का अपना होता है l इस प्रकार एक दिन वह व्यक्ति श्रीराम, या श्रीकृष्ण जी के समान भी गुणवान बन सकता है l परन्तु जो व्यक्ति मात्र दिखावे का सेवक बनकर मन से नित निजहित के लिए परेशान रहता हो, बुद्धि से निजहित सोचता हो और जिसके हाथ निजहित के कार्य करने हेतु व्याकुल रहते हों – उसके लिए जनसेवा का कोई अर्थ नहीं होता है l वह विश्व में किसी का अपना नहीं होता है और जो उसके अपने होते हैं वो भी दुःख में उसे अकेला छोड़ने वाले होते हैं l
राष्ट्रहित, समाजहित और जनहित के लिए वह मुद्दे जो भारत के समक्ष उसकी स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उजागर हुए थे, वह आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं l वह हमसे टस से मस इसलिए नहीं हो पाए हैं क्योंकि हमने उन्हें समाज या जन का सेवक बनकर कम और निज सेवक होकर अधिक निहारा है l सौभाग्य वश हमारा भारत लोकतान्त्रिक देश है जिसमें जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए सरकार बनाने का हमें संवैधानिक अधिकार प्राप्त है l हम अपने मतदान द्वारा अपना मनचाहा प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा या लोकसभा तक भेज सकते हैं l अगर हम उसके माध्यम से अपनी आवाज संसद भवन तक नहीं पहुंचाते हैं तो हमें किसीको दोष नहीं देना चाहिए l
वर्तमान राष्ट्रहित में देश की एक ऐसी सशक्त एवम् सकारात्मक राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली होनी चाहिए जिसमें कलात्मक कृषि-बागवानी एवम् रोजगार प्रशिक्षण, व्यवहारिक आत्मरक्षा एवम् जन सुरक्षा प्रशिक्षण, सृजनात्मक पठन-पाठन और रचनात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था हो l इससे भारत की दूषित शिक्षा-प्रणाली से जन साधारण को अवश्य ही राहत मिल सकती है l जनहित में जन साधारण को विश्वसनीय स्थानीय जन स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिए l इसके लिए सुविधा सम्पन्न चिकित्सालय, सर्वसुलभ प्रसूति-गृह, उचित चिकित्सा सुविधाएँ, पर्याप्त औषध भंडार, योग्य डाक्टर व रोग विशेषज्ञ, रोगी की उचित देखभाल, स्वास्थ्य कर्मचारी वर्ग और त्वरित चिकित्सा-वाहन सेवा का होना अनिवार्य है l वह इसलिए कि त्रुटिपूर्ण और अभावग्रस्त जन स्वास्थ्य सेवा समाप्त हो सके l
जनहित देखते हुए आज बारह मासी स्थानीय व्यवसायिक व्यवस्था की महती आवश्यकता है l इसके लिए सहकारीता आन्दोलन को पुनः जीवित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत पशुधन, पौष्टिक खाद, पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ, जल, जंगल, जमीन का सरंक्षण सहकारी वाणिज्य-व्यापार, स्वरोजगार, सहकारी ग्रामाद्द्योग तथा सहकारी सम्पदा का संवर्धन हो ताकि सहकारी खेती को बढ़ावा मिल सके l जन साधारण को मात्र 100, 200 दिनों तक का नहीं बल्कि पुरे 365 दिनों का व्यवसाय मिल सके l
जन-जन हित में स्थानीय जानमाल की रक्षा-सुरक्षा को सुनिश्चित बनाए रखने के लिए जरूरी है पीने का स्वच्छ पानी, पौष्टिक खाद्द्य वस्तुएं व पेय पदार्थ, रसोई गैस, मिटटी का तेल, विद्दुत ऊर्जा, स्थानीय नागरिकता की विश्वसनीय पहचान और स्थानीय जानमाल की रक्षा-सुरक्षा समितियों का गठन किया जाना ताकि जन साधारण की जीवन रक्षक आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें और उसे आतंकवाद, उग्रवाद जिहाद, अपहरण, धर्मांतरण, बलात्कार तथा हिंसा से अभय प्राप्त हो सके l इस प्रकार राष्ट्रीय जनहित में आवश्यक है – सशक्त एवम् सकारात्मक राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली, विश्वसनीय जन स्वास्थ्य सेवा, बारह मासी स्थानीय व्यवसायिक व्यवस्था और जानमाल रक्षा-सुरक्षा की सुनिश्चितता l ऐसा कार्य मात्र परहित चाहने वाले न्याय प्रिय, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, नीतिवान और धर्मात्मा लोग ही कर सकते हैं l अगर हम परहित करना चाहते हैं तो हमें सत्पुरुषों और परमार्थियों को ही अपना प्रतिनिधि बनाना होगा l उन्हें उनके क्षेत्र से विजयी करवाने हेतु अपनी ओर से उनकी हर संभव सहायता करनी होगी l अन्यथा निजहित चाहने वालों के मायाजाल से हमें कभी मुक्ति नहीं मिलेगी l बस हमें मिलती रहेगी मात्र दूषित शिक्षा, त्रुटिपूर्ण व अभावग्रस्त जन स्वास्थ्य सेवा, 100, 150 और 200 दिनों का व्यवसाय की लालीपाप l
देशवासियों ! यदि सोये हुए हो तो जाग जाओ और स्वयं जागने के साथ-साथ दूसरों को भी जगा लो l निजहित चाहने वाले बेचारे अपनी आदत से बड़े मजबूर हैं l बे मजबूर ही रहेंगे क्योंकि उन्होंने निजहित में कमीशन जुटाना है, रिश्वत लेनी है, घूस खानी है, राष्ट्र तथा समाज की सम्पदा डकारनी है तथा भ्रष्टाचार ही फैलाना है l आप उनसे राष्ट्रहित, जनहित और समाजहित की चाहना रखना छोड़ दो l यह आपकी आशा पूर्ण होने वाली नहीं है l उनके पास अतिरिक्त कार्य करने का समय नहीं है l इसका निर्णय अब आपने मतदान करके करना है l निडर होकर मतदान कीजिये और अपनी पसंद के उम्मीदवार को विजयी बनाइए l देखना कहीं आपसे चूक न हो जाये l

चेतन कौशल “नूरपुरी”