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सामाजिक चेतना – 10

भारत लोकतान्त्रिक देश में 18 वर्ष से ऊपर के हर नागरिक के द्वारा किसी भी प्रत्याशी को अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त है l चुनाव काल में मतदाता देश में अपनी पसंद के प्रत्याशी को अपना अमूल्य मतदान करके उसे चुनाव में विजय दिलाने का भरसक प्रयास करते हैं और प्रत्याशी को विजयी भी बनाते हैं l 

लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उस बारे में मतदाता के द्वारा अपनी राय रखना, मत कहलाता है l इस समय देशभर में राजनीति से संबंधित कई विचार धाराएँ विद्यमान हैं l देखा जाये तो सभी विचारधाराओं के अपने-अपने राजनैतिक दल हैं और उनके विभिन्न उद्देश्य भी हैं l पर उन दलों में बहुत से नेता परिवार हित या दलहित के ही कार्य करने तक सीमित हैं l फिर भी देश हित में राष्ट्रहित में राष्ट्रवादी सोच रखने वाला, देश का मात्र एक बड़ा स्वयं सेवी संगठन और एक राजनैतिक दल भी है जो दोनों अपनी-अपनी लोकप्रिय कार्यशैली के धनी होने के कारण विश्वभर में सबसे बड़े सामाजिक और राजनैतिक संगठन माने जाते हैं l 

लम्बे समय से मतदाता के द्वारा मतदान करने का अपना एक बहुत बड़ा महत्व रहा है l मतदाता अपना मतदान करके अपने ही पसंद के प्रत्याशी को चुनते हैं l उनके द्वारा चुने हुए प्रत्याशी आगे चलकर स्थानीय निकाय ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद् का ही नहीं विधान सभा और लोक सभा का भी गठन करते हैं l इस व्यवस्था से सरकार के द्वारा प्रारम्भ किये गये विकास कार्यों का लाभ व सुविधाएँ जन-जन तक पहुंचाई जाती हैं l

मतदान दो प्रकार के होते हैं – पहला सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्व सम्मति से सम्पन्न होता है l इसमें प्रतिस्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो मतपेटी में प्रत्याशी के समर्थन में उसके चुनाव चिन्ह पर अपनी ओर से चिन्हित की गई पर्ची डालकर या ईवीएम में किसी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर अपना समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र दो ही प्रत्याशी प्रति द्वद्वियों में अच्छी होती है जिसमें अधिक अंक लेने वाले की जीत और कम अंक लेने वाले की हार निश्चित होती है l इसके आगे एक पद और उसके लिए कई प्रतिद्वद्वी प्रत्याशियों के होने को चुनाव-प्रणाली का मजाक उड़ाना ही कहें तो ज्यादा अच्छा होगा l

जब भी देश में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका या जिला परिषद् के चुनाव होते हैं l उन चुनावों में देखने को मिलता है – “पद एक और प्रत्याशी अनेक” l प्रत्याशियों की भारी भीड़ देखकर लोग निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वे अपना मत किसे दें ? एकल पद प्रधान, उप प्रधान तथा सात पद पंचों के, अनेकों प्रत्याशी जिनमें अपराध/भ्रष्ट प्रवृत्ति के लोग भी विद्यमान होते हैं, खड़े हो जाते हैं परन्तु वे समाज और राष्ट्रहित में क्या सोचते व करना चाहते हैं उनका घोषणा पत्र क्या है ? उसे लोग चुनाव हो जाने तक नहीं जान पाते हैं l किसी प्रत्याशी की मंशा जाने बिना, लोग उसे अपना मत कैसे दें ?

ऐसे वातावरण में हर जागरूक मतदाता के मन में मतदान हेतु “मैं मत किसे दूँ?” से संबंधित अनेकों प्रश्न पैदा हो जाते हैं और वह निश्चय भी करता है कि मैं लहर नहीं, पहले व्यक्ति देखूंगा l मैं प्रचार नहीं, छवि देखूंगा l मैं धर्म नहीं, विजन देखूंगा l मैं दावे नहीं, समझ देखूगा l मैं नाम नहीं, नियत देखूंगा l मैं प्रत्याशी की प्रतिभा देखूंगा, मैं पार्टी को नहीं, प्रत्याशी को देखूंगा l मैं किसी प्रलोभन में नहीं आऊंगा l इस तरह मतदाता का जागरूक होना परम आवश्यक है और स्वभाविक भी l 

चुनाव प्रचार के समय विभिन्न प्रत्याशियों के द्वारा गाँव की गलियों के मकानों व बाजार की दुकानों की दीवारों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगवा दिए जाते हैं l जिन पर लिखा होता है – हमने काम किया है, काम करेंगे l आप अपना कीमती वोट विकास व समृद्धि के लिए कर्मठ, मेहनती, योग्य, जुझारू समाज सेवक को देकर कामयाब करें l आप अपना वोट शिक्षित, इमानदार, एवं सशक्त उम्मीदवार ही को दें l “एक कदम विकास की ओर” नेता नहीं, जन सेवक चुने l अगर यही प्रत्याशी चुनाव जीतकर अपने-अपने क्षेत्रों में इसी भावना, सोच एवं विचार से कार्य करें तो कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत कुछ ही वर्षों में विश्व में पुनः सोने की चिड़िया बन सकता है, पर ऐसा होगा कब ?

वर्तमान काल में बहुत से प्रत्याशियों के लिए राजनैतिक विषय समाज सेवा नहीं, मात्र एक व्यवसाय बनकर रह गया है l जितनी अधिक भीड़ किसी मेले में नहीं होती है, कहीं उससे अधिक चुनाव के समय प्रत्याशियों की देखी जा सकती है l ऐसे समय में वे मियां मिट्ठू अधिक दिखाई देते हैं, जबकि उनमें राष्ट्रीय भावना, धर्म-संस्कृति और देश से प्रेम का अभाव रहता है, उन्हें समाज सेवा कम और निजहित तथा परिवार हित अधिक दिखाई देता है l जिनसे आगे चलकर मानसिक कुवृत्तियों और अन्य अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियों का जन्म होता है जो देश, धर्म और समाज किसी के लिए भी अहितकारी होती हैं l 

स्थानीय चुनाव के इस सामाजिक पर्व में हर किसी मतदाता को अपना अमूल्य मतदान उसी प्रत्याशी को करना चाहिए जिस प्रत्याशी को देश, धर्म-संस्कृति का अच्छा ज्ञान हो l जिसमें देश, धर्म-संस्कृति की रक्षा और सेवा करने का दम हो l वही युवा प्रत्याशी राष्ट्र की रीढ़ है जो सुसंगठित, अनुशासित, चरित्रवान और कार्य कुशल हो l एक कदम “ग्राम स्वराज” की ओर, बढ़ने वाला नेता नहीं, जन सेवक होना चाहिये l चुनाव दलगत होकर भी निर्विरोध /सर्वसम्मति से संपन्न होने चाहियें l ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद्, विधान सभा और लोक सभा के चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या आम सहमति से कम से कम हो, उनमें से किसी एक प्रत्याशी की हार या एक की जीत रोमांचित तो अवश्य होनी ही चाहिए l

प्रकाशित फरवरी 2021 मातृवंदना