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29 फरवरी 2008 दैनिक जागरण

पशु धन से हो श्रृंगार घरघर का
पौष्टिकता से लहलहाएं सब खेत देश के
दूध दही घी से बलवान बने हर बच्चा घरघर का
तेजस्वी कहलाएं नौजवान देश के
घरघर पहुंचे फिर ऐसी शिक्षा
मांगे न कोई किसी से भिक्षा
हर हाथ रोजगाार दिलाए शिक्षा
बयार तो कोई लाल लाए शिक्षा
खुद समझे जो औरों को समझाए
सत्यअसत्य में भेद कर पाएं
ऐसे फिर किसी से न हो नादानी
कहना पड़े कि फुलफल रही बेईमानी
गुणों ही की अब आगे हो पूजा
मन कर्म वचन से न कोई कार्य हो दूजा
चापलूसों के सिर पर बरसें डंडे
पगपग अरमान भ्रष्टाचारी पड़ें ठंडे
देश विदेश में जनजन को पड़े कहना
बल बुद्धि विद्या और गुण भारत का है गहना



चेतन कौशल "नूरपुरी"