दैनिक जागरण 8 जुलाई 2006
मन की इच्छाएं बढ़ती जा रहीं
बुद्धि निर्णय लेने में हो गई असमर्थ
इद्रियां पथभ्रष्ट होती जा रही
हृदय विशालता का नहीं कोई रहा अर्थ
समाज बंट गया धर्म जाति वर्ग वादविवादों में
घिर गया ऊंचनीच भेदभाव की दीवारों में
विकासशील जीवन यात्रा तोड़ रही दम
विकृत समाज व्यथा हो रही न कम
हे विचारशील स्थिर मन और इद्रिय बलवान
ठोस पत्थर नींव समाज के तू है आत्मा महान
फिर कर ऐसी सभ्यता कला संस्कृति का निर्माण
प्रेरणा तेरी से हो जाए जन समुदाए का कल्याण
चेतन कौशल "नूरपुरी"