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धर्म की जय हो। अधर्म का नाश  हो। प्राणियों में सद्भावना हो। विश्व  का कल्याण हो। गौ माता की जय हो। यह उद्घोष देश  के गांव-गांव व शहर-शहर के मंदिरों में सुबह-शाम सुनाई देते हैं। यहां यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि हम वहां कौन सा उदघोष  कितने जोर से उच्चस्वर में करते हैं बल्कि वह यह है कि हम उसे आत्मसात् भी करते हैं कि नहीं?
हम धर्म की जय के लिए क्या कर रहे हैं? हमसे कहीं अधर्म तो नहीं हो रहा? प्राणियों में सद्भाना कहां से आएगी? विश्व  का कल्याण कौन करेगा? गौ माता की जय करने के लिए हमारे अपने क्या-क्या प्रयास हो रहे हैं?
धर्म और अधर्म दोनों एक दूसरे के विपरीतार्थक शब्द  हैं। जहां धर्म होता है वहां अधर्म किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व जमाने का प्रयास अवश्य करता है पर जहां अधर्म होता है वहां धर्म तभी साकार होता है जब वहां के लोग स्वयं जागृत नहीं होते हैं। लोगों की जागृति के बिना अधर्म पर विजय कर पाना कठिन है। धर्म दूसरों को सुख-शांति  प्रदान करता हैं। उनका दुःख-कष्ट  हरता है जबकि अधर्म सबको दुःख, अशांति  और पीड़ा ही पहुंचता  है।
सद्भावना सत्संग करने से आती है। सत्संग का अर्थ यह नहीं है कि भजन, कीर्तन, और प्रवचन करने के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगा लिए जाएं। लोगों की भारी भीड़ इकट्ठी कर ली जाए। स्पीकरों व डैकों से उच्च स्वर में सप्ताह या पंद्रह दिनों तक खूब बोल लिया और फिर उसे भूल गए। सत्संग अर्थात सत्य का संग या उसका आचरण करना जो हमारे हर कार्य, बात और व्यवहार में दिखाई दिया जाना अनिवार्य है। जहां सत्संग होता है वहां सद्भावना अपने आप उत्पन्न हो जाती है।
इस प्रकार जहां सद्भावना होेती है वहां दूसरों की भलाई के कार्य होना आरम्भ हो जाते हैं। इसी विस्तृत कार्य प्रणाली को परोपकार कहा गया है। जिस व्यक्ति में परोपकार की भावना होती है और वह परोपकार भी करता है, उससे उसका परिवार, समाज, राष्ट्र  और विश्व प्रभावित अवश्य  होता है। परोपकार से विश्व  का कल्याण होना निश्चित  है।
गौ माता की जय करने के लिए गाय के आहार हेतु चारा पीने के लिए पानी के साथ-साथ रहने के लिए गौशाला और उसकी उचित देखभाल भी करना जरूरी है। उसे बूचड़खाना और कसाई से बचाना धर्म है। जो व्यक्ति और समाज ऐसा करता है उसे उद्घोषणा करने की कभी आवश्यकता  नहीं पड़ती है बल्कि वह उसे अपने कार्य प्रणाली से प्रमाणित करके दिखाता है।
वास्तव में धर्म की जय, अधर्म का नाश , प्राणियों में सद्भावना, विश्व  का कल्याण और गौ माता की जय तभी होगी जब हम सब सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य करेंगे। यदि विश्व  में मात्र बोलने से सब कार्य हो जाते तो यहां हर कोई बोलने बाला होता, कार्य करने वाला नहीं किसी को कोई कार्य करने की आवश्यकता  न पड़ती।
28 जून 2009
कष्मीर टाइम्स