कश्मीर टाइम्स 21 फरवरी 2010
भटक गया हूँ, राह से
राह मैं अपनी भूलकर
सही राह पर, आऊं भी तो
कैसे? मैं राह खुद की खुद पहचानकर
इच्छा और आशाओं के गहन अंधेरे में
खो गया मेरा जीवन है
तालाश खुद की, खुद करूँ कैसे?
मैं नाहक बन गया दीन हीन हूँ
क्या है अच्छा, क्या है बुरा?
उलझन में उलझकर रह गया हूँ
मैं खुद को देखू कैसे, हूँ कहां?
पता नहीं, मैं कर रहा हूँ क्या?
ऊपर मेरे नीली चादर,
खड़ा मैं तपती जमी पर,
करना है मैनें, जाने क्या
और किधर है अपनी मेरी डगर?
चेतन कौशल "नूरपुरी"