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पर्यावरण चेतना - 8

भू-जल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है l इससे भूजल स्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है l इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे l

जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए सदा गहरे हैण्ड पंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के जल का ही प्रयोग करें l यह जल निरोग रहने तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है l रसोई में खाद्य पदार्थों की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें l
आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें l
जल प्रयोग करने के पश्चात् नल अवश्य बंद कर दें l  अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी लीक करे तो उसे तुरंत बदली करवा लें या उसका अभाव हो तो टोंटी लगवा लें l
नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें l पुरानी जल पाइप जल का रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें l
घर या सार्वजनिक स्नान गृह में खुले नल या शावर के नीचे कभी स्नान न करें l खुले नल के आगे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनायें l अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग किया जाये l घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात् उसे बंद कर दें l
घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी आवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें l किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को देखते ही बंद कर दें l भूजल की हानि को अपनी हानि समझें l घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल संरक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें l अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखाई दे तो स्थानीय संबंधित कार्यालय को अवश्य सूचित करें ताकि कोई उचित कार्यवाई की जा सके l 
घर, पशुशाला की साफ-सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का ही प्रयोग करें ताकि जल का दरुपयोग न हो l
आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पौधों की सिंचाई करें l फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें l खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगायें l आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें l फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं l फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधी लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगायें l सिंचाई का समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें l ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें l उसमें रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कप्लिंगों की जाँच करते रहें l सिंचाई प्रणाली का भली प्रकार रख-रखाव करें l सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें l उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें l सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें l खेत क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके l 
निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें l उसके स्थान पर जोहड़-पोखर, तालाब, नदी-नाले तथा संचित वर्षाजल का ही प्रयोग करें l समाज में टिड्डी दल की भाँती बढ़ती हुई जन संख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहाँ तक संभव हो, कल के बच्चों के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें l
भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैक डैम बनाएं l उनसे छोटे बिजली घर, पन चक्कियों का निर्माण करके हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं l इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे l
भूजल को प्रभावी बनाने हेतु गाँव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार भूजल पुनर्भरण हेतु गहरे, कच्चे तल के तालाब, पोखर-जोहड़ों का अधिक से अधिक निर्माण एवं उनका संरक्षण करके परंपरागत जल संचयन प्रणाली को बढ़ावा दें l अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में भूजल स्तर में अवश्य ही वृद्धि होगी l आइये ! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाने में एक दुसरे को सहयोग दें l

प्रकाशित दिसम्बर 2013 मातृवंदना