5. मार्च 2016 / 0 Comments मनुष्य को # मनुष्य को अब अपनी संकीर्णता की गलियों को अवश्य ही छोड़ना होगा, इसके बिना वह खुले विशाल आसमान में खग भांति न तो स्वच्छंद विचरण कर सकता है और न ही वह उसका कभी भरपूर आनन्द ले सकता है।* 8