मानव जीवन विकास – 9
गुरुकुल में विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन कहा गया है l इस काल में विद्यार्थी गुरु जी के सान्निध्य में रहकर समस्त विद्याओं का सृजन, सवर्धन और संरक्षण करके स्वयं अपार शक्तियों का स्वामी बनता है l सफल विद्यार्थी बनने के लिए विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य या मानवी ऊर्जा का महत्व समझना अति आवश्यक है l ब्रह्मचर्य के गुण विद्यार्थी को सदैव उधर्वगति प्रदान करते हैं l
- ब्रह्मचर्य का अर्थ है सभी इन्द्रियों का सयंम l
- ब्रह्मचर्य बुद्धि का प्रकाश है l
- ब्रह्मचर्य नैतिक जीवन की नींव है l
- सफलता की पहली शर्त है – ब्रह्मचर्य l
- चारों वेदों में ब्रह्मचर्य जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है l
- ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण सौभाग्य का कारण है l
- ब्रह्मचर्य व्रत अध्यात्मिक उन्नति का पहला कदम है l
- ब्रह्मचर्य मानव कल्याण एवं उन्नति का दिव्य पथ है l
- अच्छे चरित्र निर्माण करने में ब्रह्मचर्य का मौलिक स्थान है l
- ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण शक्तियों का भंडार है l
- ब्रह्मचर्य ही सर्व श्रेष्ठ ज्ञान है l
- ब्रह्मचर्य ही सर्व श्रेष्ठ धर्म है l
- सभी साधनों का साधन ब्रह्मचर्य है l
- ब्रह्मचर्य मन की नियंत्रित अवस्था है l
- ब्रह्मचर्य योग के उच्च शिखर पर पहुँचने की सर्व श्रेष्ठ सोपान है l
- ब्रह्मचर्य स्वस्थ जीवन का ठोस आधार है l
- गृहस्थ जीवन में ऋतू अनुकूल सहवास करना भी ब्रह्मचर्य है l
- ब्रह्मचर्य से मानव जीवन आनंदमय हो जाता है l
- प्राणायाम से मन, इन्द्रियां पवित्र एवं स्थिर रहती हैं l
- ब्रह्मचर्य से अपार शक्ति प्राप्त होती है l
- ब्रह्मचर्य से हमारा आज सुधरता है l
- ब्रह्मचर्य में शरीर, मन व आत्मा का संरक्षण होता है l
- ब्रह्मचर्य से बुद्धि सात्विक बनती है l
- ब्रह्मचर्य से व्यक्ति की आत्मस्वरूप में स्थिति हो जाती है l
- ब्रह्मचर्य से आयु, तेज, बुद्धि व यश मिलता है l
- ब्रह्मचारी का शरीर आत्मिक प्रकाश से स्वतः दीप्तमान रहता है l
- ब्रह्मचारी आजीवन निरोग एवं आनंदित रहता है
- ब्रह्मचारी स्वभाव से सन्यासी होता है l
- ब्रह्मचारी अपनी संचित मानवी ऊर्जा – ब्रह्मचर्य को जन सेवा एवं जग भलाई के कार्यों में लगाता है l
दोष सदैव अधोगति प्रदान करते हैं इसलिए ब्रह्मचारी की उनसे सावधान रहने में ही अपनी भलाई है l
- दुर्बल चरित्र वाला व्यक्ति ब्रह्मचर्य पालन में कभी सफल नहीं होता है l
- मनोविकार ब्रह्मचर्य को खंडित करता है l
- आलसी व्यक्ति कभी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं क्र सकता l
- अति मैथुन शारीरिक शक्ति नष्ट कर देता है l
- काम से क्रोध उत्पन्न होता है , क्रोध से बुद्धि भ्रमित होती है l
- काम मनुष्य को रोगी, मन को चंचल तथा विवेक को शून्य बनता है l
- वीर्यनाश घोर दुर्दशा का कारण बनता है l
- देहाभिमानी ही कामी होता है l
- काम विकार का मूल है l
- ब्रह्मचर्य के बिना आत्मानुभूति कदापि नहीं होती है l
- काम विचार से मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है l
- काम वासना के मस्त हाथी को मात्र बुद्धि के अंकुश से नियंत्रित किया जा सकता है l
- काम, क्रोध, लोभ नरक के द्वार हैं l
प्रकाशित जनवरी 2010 मातृवंदना