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 विचारकों के कथन :-

विवेकानंद के द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है l वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम रहे l हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था l वे ईश्वर के प्रतिनीधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी l