खरबूजा खरबूजे को देख कर अपना रंग बदलता है – कहावत विश्व विख्यात है। परिवार में बच्चे और विद्यालय में विद्यार्थी आस-पड़ोस में जैसा देखते व सुनते हैं, वे स्वयं वैसा करने का प्रयत्न भी करते हैं। उन्हें वहां उत्तम संस्कार मिलें इसलिए माता-पिता और गुरु जन घर अथवा विद्यालय का वातावरण कभी दूषित नहीं होने देते हैं क्योंकि वे भली प्रकार जानते हैं कि अच्छे वातावरण में ही सुसंगत का उद्गम होता है जिससे सद्भावना, सद्विचार, सद्कर्मों का शुभारम्भ होता है जो किसी घर, परिवार और समाज के लिए अति आवश्यक है। उस घर, विद्यालय और समाज में किसी नर-नारी के साथ अन्याय, अनाचार,शोषण अथवा अत्याचार हो ही नहीं सकता जहां जागृत माता-पिता तथा गुरु जन समय-समय पर उपरोक्त बुराइयों के विरुद्ध किसी संयुक्त मंच से श्रोताओं के समक्ष निर्भीकता से क्रांतिकारी स्वर उठाते रहते हैं। इससे बच्चों और विद्यार्थियों में नव चेतना जागृत होती है। उनमें बल, बुद्धि, विद्या और सद्गुणों का सृजन होता है। उन्हें इस कार्य को करने के लिए उनका सहयोग मिलता है। बच्चों और विद्यार्थियों का सदाचारी जीवन कैसा होता है? जीवन की अपनी मर्यादाएं क्या होती हैं? उसकी रक्षा कैसे होती है? उससे क्या लाभ होते हैं? माता-पिता और गुरुजन समय-समय पर उन्हें इसका ज्ञान करवाते रहते हैं। सामाजिक मान मर्यादा की पालना कब, कहां, किससे और कैसे हो? माता-पिता और गुरुजन इसका हर समय ध्यान रखते हैं और बच्चों तथा विद्यार्थियों के लिए आदर्श बन कर दिखाते हैं ताकि वे भावी सभ्य समाज के नव निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। क्या हम इस ओर अग्रसर है? नहीं तो हमें भविष्य संवारने के लिए ऐसा कुछ करना चाहिए क्या?