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21 जून 2009 कश्मीर टाइम्स  

वह देखो! उधर सूखा है चहुं ओर,
कैसी वीरानगी, उदासी छाई है?
वहां हड्डी है, कोयला भी, मगर
छाया कहीं नजर नहीं आई है,
कार्य हमने अब कुछ ऐसा है करना,
सूखे की ओर रुख नदी का है करना,
मरु में लानी है हमनें हरित क्रांति,
व्यर्थ बहते जल से, सूखे में हरित क्रांति,


चेतन कौशल "नूरपुरी"