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26 अक्तूबर 2008 मातृवंदना

नगर देखो! सबने दीप जलाए हैं द्वार-द्वार पर,
घर आने की तेरी ख़ुशी में मेरे राम!
तुम आओगे कब? मेरे मन मंदिर,
अँधेरा मिटाने मेरे राम!
आशा और तृष्णा ने घेरा है मुझको,
स्वार्थ और घृणा ने दबोचा है मुझको,
सीता को मुक्ति दिलाने वाले राम!
विकारों की पाश काटने वाले राम !
दीप बनकर मैं जलना चाहूँ,
दीप तो तुम्हीं प्रकाशित करोगे मेरे राम!
अँधेरा खुद व खुद दूर हो जाएगा,
हृदय दीप जला दो मेरे राम !
सार्थक दीपावली हो मेरे मन की,
घर-घर ऐसे दीप जलें मेरे राम!
रहे न कोई अँधेरे में संगी-साथी दुनियां में,
सबके हो तुम उजागर मेरे राम!


चेतन कौशल "नूरपुरी"