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चेतन आत्मोवाच 56 :-

सदा चोट खाता है, तू बातों में गैरों की आ जाता है l
तेरे हित की होती हैं अपनी, मनः बात हितैषी की भूल जाता है ll
चेतन कौशल "नूरपुरी
"