विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन कहा गया है। इस काल में विद्यार्थी गुरु जी के सान्निध्य में रह कर समस्त विद्याओं का सृजन, संवर्धन और संरक्षण करके स्वयं अपार शक्तियों का स्वामी बनता है। सफल विद्यार्थी बनने के लिए विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य या मानवी उर्जा का महत्व समझना अति अवष्यक है। ब्रह्मचर्य के गुण विद्यार्थी को सदैव ऊध्र्वगति प्रदान करते हैं। 1- ब्रह्मचर्य का अर्थ है सभी इंद्रियों का संयम। 2- ब्रह्मचर्य बुद्धि का प्रकाश है। 3- ब्रह्मचर्य नैतिक जीवन की नींव है। 4- सफलता की पहली शर्त है – ब्रह्मचर्य। 5- चारों वेदों में ब्रह्मचर्य जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है। 6- ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण सौभाग्य का कारण है। 7- ब्रह्मचर्य व्रत आध्यात्मिक उन्नति का पहला कदम है। 8- ब्रह्मचर्य मानव कल्याण एवं उन्नति का दिव्य पथ है। 9- अच्छे चरित्र का निर्माण करने में ब्रह्मचर्य का मौलिक स्थान है। 10- ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण शक्तियों का भंडार है। 11- ब्रह्मचर्य ही सर्व श्रेष्ठ ज्ञान है। 12- ब्रह्मचर्य ही सर्व श्रेष्ठ धर्म है। 13- सभी साधनों का साधन ब्रह्मचर्य है। 14- ब्रह्मचर्य मन की नियन्त्रित अवस्था है। 15- ब्रह्मचर्य योग के उच्च शिखर पर पहुंचाने की सर्व श्रेष्ठ सोपान है। 16- ब्रह्मचर्य स्वस्थ जीवन का ठोस आधार है। 17- गृहस्थ जीवन में ऋतु के अनुकूल सहवास करना भी ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य से मानव जीवन आनन्दमय हो जाता है। 1- प्राणायाम से मन, इंद्रियां पवित्र एवं स्थिर रहती हैं। 2- ब्रह्मचर्य से अपार शक्ति प्राप्त होती है। 3- ब्रह्मचर्य से हमारा आज सुधरता है। 4- ब्रह्मचर्य में शरीर, मन व आत्मा का संरक्षण होता है। 5- ब्रह्मचर्य से बुद्धि सात्विक बनती है। 6- ब्रह्मचर्य से व्यक्ति की आत्म स्वरूप में स्थिति हो जाती है। 7- ब्रह्मचर्य से आयु, तेज, बुद्धि व यश मिलता है। 8- ब्रह्मचारी का शरीर आत्मिक प्रकाश से स्वतः दीप्तमान रहता है। 9- ब्रह्मचारी अजीवन निरोग एवं आनन्दित रहता है। 10- ब्रह्मचारी स्वभाव से सन्यासी होता है। 11- ब्रह्मचारी अपनी संचित मानवी उर्जा – ब्रह्मचर्य को जन सेवा एवं जग भलाई के कार्यों में लगाता है। दोष सदैव अधोगति प्रदान करते हैं इसलिए ब्रह्मचारी की उनसे सावधान रहने में ही अपनी भलाई है। 1- दुर्बल चरित्र वाला व्यक्ति ब्रह्मचर्य पालन में कभी सफल नहीं होता है। 2- मनोविकार ब्रह्मचर्य को खण्डित करता है। 3- आलसी व्यक्ति कभी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता। 4- अति मैथुन शारीरिक शक्ति नष्ट कर देेता है। 5- काम से क्रोध उत्पन्न होता है, क्रोध से बुद्धि भ्रमित होती है। 6- काम मनुष्य को रोगी, मन को चंचल तथा विवेक को शून्य बनाता है। 7- वीर्यनाश घोर दुर्दशा का कारण बनता है। 8- देहाभिमानी ही कामी होता है। 9- काम विकार का मूल है। 10- ब्रह्मचर्य के बिना आत्मानुभूति कदापि नहीं होती है। 11- काम विचार से मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 12- काम वासना के मस्त हाथी को मात्र बुद्धि के अंकुश से नियन्त्रित किया जा सकता है। 13- काम, क्रोध, लोभ नरक के द्वार हैं।