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विचारकों के कथन :-

जो शक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है।
- शरतचंद्र चट्टोपाध्याय