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# जब-जब मनुष्य द्वारा अभिव्यिक्ति की मनमानी परिभाषा व्यक्त हुई है, तब-तब उसकी मान-मर्यादा भी नष्ट हुई है। इसलिए अभिव्यिक्ति मान-मर्यादा में ही अच्छी लगती है।*