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दैनिक जागरण 14 मई 2006 

निर्बल असमर्थ ही छुपता बनता कायर है
बलवान समर्थ करता शूरता का कार्य है
रखता है ध्यान सदा अपने हर कर्म का
छोड़ता है संग अपने हर दुष्कर्म का
करता सद्गुणों से जीवन का श्रृंगार है
देखता जन का जन से होता प्यार है
मनवा जब तू करेगा पाप नहीं
तब बन पाएगा समर्थ कैसे आप नहीं


चेतन कौशल "नूरपुरी"