समाजिक चेतना – 11
आज तक हमने देव स्थानों पर बकरों की बलि दिया जाना सुना था पर यह नहीं सुना था कि सड़क के किनारे बस की सवारियों को भी बलि का बकरा बनाया जाता है l जी हाँ, ठीक सुना आपने, ऐसा अब खुले आम हो रहा है l अगर हम अन्य स्थानों को छोड़ मात्र जम्मू से लखनपुर तक की बात करें तो राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बने ढाबों, भोजनालयों और चाय की दुकानों को कसाई घरों के रूप में देख सकते हैं l वहां सवारियों को प्रति चपाती पांच रूपये के साथ नाम मात्र की फराई दाल दस रूपये में और चाय का प्रति कप पांच रूपये के साथ एक कचोरी तीन रूपये के हिसाब से धड़ल्ले से बेची जाती है l वहां कहीं मूल्य सारिणी दिखाई नहीं देती है l शायद उन्हें प्रशासन की ओर से पूछने वाला कोई नहीं है l क्या यह दुकानदार सरकारी मूल्य सूचि के अंतर्गत निर्धारित मूल्यानुसार सामान बेचते हैं ? संबंधित विभाग पर्यटक वर्ग अथवा सवारी हित की अनदेखी क्यों कर रहा है ?
राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारों पर ढाबों और चाये की दुकानों पर लम्बे रुट की बसें रूकती हैं l वहां पर चालक और परिचालकों को तो खाने-पीने के लिए मूल्य विहीन बढ़िया और उनका मनचाहा खाना-पीना मिल जाता है, मानों जमाई राजा अपने ससुराल पधारे हों l पर बस की सवारियों को उनकी सेवा के बदले में दुकानदारों मनमर्जी का शिकार होना पड़ता है l अंतर मात्र इतना होता है कि कोई कटने वाला बकरा तो गर्दन से कटता है पर सवारियों की जेब दुकानदारों द्वारा बढ़ाई गई जबरन मंहगाई की तेज धार छुरी से काटी जाती है l कई बार सवारियों के पास गन्तव्य तक पहुँचने के मात्र सीमित पैसे होते हैं l अगर रास्ते में भूख-प्यास लगने पर उन्हें कुछ खाना-पीना पड़ जाये तो वह खाने-पीने की वस्तुएं खरीदकर न तो कुछ खा सकते हैं और न पी सकते हैं l क्या लोकतंत्र में उन्हें जीने का भी अधिकार शेष नहीं बचा है ?
यह पर्यटक एवं सवारी वर्ग भी तो अपने ही समाज का एक अंग हैं जो हमारे साथ कहीं रहता है l स्वंय समाज सेवी और इससे संबंधित सरकारी संस्थाओं को प्रशासन के साथ इस ओर विशेष ध्यान देना होगा और सहयोग भी देना पड़ेगा l उसके हित में उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग तथा बस अड्डों पर खाने-पीने और अन्य आवश्यक सामान खरीदने हेतु उचित मूल्य की दुकानों व ठहरने या विश्राम करने के लिए सुख-सुविधा संपन्न सस्ती सरायों की व्यवस्था करनी होगी ताकि स्थानीय दुकानदारों द्वारा सवारियों और पर्यटकों से मनमाना मूल्य न वसूला जाये और कोई किसी के निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए कभी बलि का बकरा न बन सके l
प्रकाशित 13 जुलाई 2008 कश्मीर टाइम्स