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कश्मीर टाइम्स 7 फरवरी 2010 

थम जा,
ये जल की धारा!
छोड़ उतावली,
बहे जाती है किधर?
मुंह उठा,
देख तो जरा,
चैक डैम
बन गया है इधर
तू बाढ़ का
भय दिखाना पीछे,
पहले गति
मंद करले अपनी,
तू भूमि
कटाव भी करना पीछे,
पहले चाल
धीमी करले अपनी,
यहां रोकना है,
थोड़ी देर,
रुक सके
तो रुक जाना,
करके सूखे
स्रोतों का पुनर्भरण,
चाहे तू
आगे बढ़ जाना,
चैक डैम पर
जलचर, थलचर,
नभचरों ने
आना है,
मंडराना है
तितली-भौरों ने
फुल-वनस्पतियों पर
गुनगुनाना है,
प्रकृति का
दुःख मिटने को,
पर्यावरण की
हंसी लौटने को,
थोड़ा थम जा,
ये जल की धरा!
जरा रुक जा,
ये जल की धरा!


चेतन कौशल "नूरपुरी"