आलेख – हमारा पर्यावरण मातृवन्दना जुलाई अगस्त 2020
हर स्थान पर नहरें व समयानुकूल वर्षा न होने से एकमात्र नलकूप ही खेतों की सिंचाई करने के संसाधन होते हैं l खेतों की सिंचाई करने हेतु नलकूपों की आवश्यकता पड़ती है l उनसे सिंचाई की जाती है l आवश्यक है, भूजल दोहन नियमित और फसल की आवश्यकता अनुसार ही हो l ऐसा न होने पर भूजल का किया अधिक दोहन व्यर्थ हो जाता है l इस कारण वह आज एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है l
वर्तमान में गाँव और शहरों के मकान, गलियां, सड़क, इत्यादि सब बड़ी तेजी से सिंमेंट पोश होते जा रहे हैं l स्थानीय संस्थाएं, संगठन, न्यास ही नहीं, देश का जन साधारण भी कुआँ, तालाब, पोखर-जोहड़ों की उपयोगिता भूल गया है l इससे स्थानीय कुओं, तालाबों, पोखर-जोहड़ों की संख्या में काफी कमी आई है l लोगों के सामने हर वर्ष देखते ही देखते वर्षाकालीन का समस्त वर्षा जल गाँव और शहरों की नालियों के माध्यम से नाला मार्ग द्वारा बाढ़ का भयानक रूप धारण करके उनसे दूर बहुत दूर यों ही व्यर्थ में बह जाता है l इस तरह धरती पर अपार वर्षाजल उपलब्ध होने पर भी बेचारी धरती हर वर्ष प्यासी की प्यासी रह जाती है l इससे भूजल पुनर्भरण की प्राचीन संस्कृति को अघात पहुंचा है l देशभर में वर्षाकालीन भूजल पुनर्भरण व्यवस्था ठीक न होने के कारण गाँव और शहरों में भूजल पुनर्भरण प्रणाली संकट ग्रस्त है l भूजल, पेयजल पर संकट गहराता जा रहा है l
घर मकान, सड़क, पुल, इंडस्ट्रियों, कारखानों तथा डैमों की वृद्धि और लोगों का निरंतर पलायन होने से उपजाऊ धरती और जंगलों का असीम क्षेत्र फल निरंतर सिकुड़ता जा रहा है l सिंचाई के जल संसाधनों में चैक डैम, नहरें, कुंएं तालाब, पोखर-जोहड़ जैसे वर्षा जल के कृत्रिम जल भंडार जो प्राचीन काल से ही परंपरागत सिंचाई के माध्यम रहे हैंSa & उन्हें गाँव और शहरों में स्थानीय लोगों द्वारा वर्षा जल चक्रीय प्रणाली के अधीन सक्रिय रखा जाता था l उनसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण भी होता था l जनश्रुति के अनुसार जिला कांगड़ा के अकेले शहर नूरपुर में ही कभी 365 कुंएं और तालाब तथा बावड़ियाँ अलग सक्रिय हुआ करती थीं जो अब गिनती के रह गई हैं l
यह समय की विडंबना ही है कि विकास की अंधी दौड़ के अंतर्गत देश के समस्त गाँव और शहरों में जन साधारण द्वारा परंपरागत कृत्रिम जल संसाधनों का तेजी से अंत किया जा रहा है l उनकी उपयोगिता को तिलांजली दी जा रही है l उन्हें समतल करके उनके स्थान पर आलिशान मकान, भवन ही नहीं, देवालय तक बनाये जा रहे हैं और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण की संस्कृति दिन–प्रतिदिन विलुप्त होती जा रही है l
भविष्य में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली से लंबे समय तक भूजल पुनर्भरण की परंपरा स्थिर रखी जा सकती है जो वन्य संपदा, जलचर, थलचर, नभचर तथा समस्त जीव जन्तुओं के लिए अत्याधिक आवश्यक है भी l इसके लिए हम मात्र कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के संसाधनों का उपयोग करके गिरते हुए भूजल स्तर को पुनः ऊपर ला सकते हैं l
किसी घर या भवन की छत से धरती पर गिरने वाले वर्षाजल को यों ही व्यर्थ में न बहने देना, उसे घर या भवन के निकट धरातल के नीचे बनाया गया गड्ढा जो 5फुट लंबा 5फुट चौड़ा और 10फुट गहरा या उपलब्ध स्थान अथवा आवश्यकता अनुसार छोटा या बड़ा हो और जिससे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण भी सुलभ हो, में वर्षाजल एकत्रित किया जा सकता है l
गाँव व शहर की गलियों तथा सड़कों के दोनों ओर जल बहाबदार नालियों में 4 फुट लंबाई, 3 फुट चौड़ाई और 3 फुट गहराई के गड्ढे जो भूजल पुनर्भरण में समर्थ हों, आवश्यकता अनुसार कम या अधिक दूरी पर बनाये जा सकते हैं l इनसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण सुलभ हो सकता है l
खेतों में जिस ओर वर्षाजल का स्थाई बहाव हो, उस जल बहाव को रोकने हेतु सामने की उंचाई वाले किनारे से खेत की मिट्टी उखाड़कर, ढलान वाले किनारे पर डालकर ऊँचा किया जा सकता है और वहां पर फलदार, पशुचारा vkSj आवश्यकतानुसार जीवनोपयोगी पेड़-पौधे लगाकर भु-क्षरण भी रोका जा सकता है l इस प्रकार दूसरी ओर नव निर्मित गहराई के कारण जल अवरोध उत्पन्न होगा l वहां वर्षाजल एकत्रित होने से कृत्रिम भूजल पुनर्भरण प्रभावी हो सकता है l
खेतों के उन भागों पर जहाँ वर्षाजल एकत्रित होता हो, वहां छोटे छोटे कुएं बनाकर उनमें वर्षाजल का संग्रहण किया जा सकता है l इससे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण में सहायता मिल सकती है l
खेतों में जिस ओर वर्षाजल का बहाव हो, से भू-क्षरण रोकने के लिए जल बहाव वाले स्थान पर आवश्यकता अनुसार छोटे-छोटे कुएं बनाये जा सकते हैं l इनसे वर्षाजल के बहाव को रोकने में सहायता मिलेगी और उनमें संग्रहित जल से भूजल पुनर्भरण भी होगा l
चैक डैम का निर्माण कार्य ऐसे स्थान पर किया जाना उचित है जहाँ आवश्यकता अनुसार जल संचयन हो सके l उससे उपजाऊ धरती सुरक्षित रहे और संचित जल से स्थानीय फसल की आवश्यकता अनुसार जल सिंचाई भी की जा सके l यह छोटे छोटे चैक डैम सदाबहार नालों पर बनाये जा सकते हैं l इनसे बिजली पैदा करके स्थानीय बिजली की आपूर्ति करने के साथ-साथ वहां पनचक्कियां भी लगाकर उनसे आटा पिसाई की जा सकती है l इससे भविष्य में बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम होगी l एक दिन हमें इनकी आवश्यकता भी नहीं रहेगी l बरसात के दिनों में डैमों से नियंत्रित जल छोड़ने से नदियों में भयानक बाढ़ आने का भय/संकट उत्पन्न नहीं होगा और उससे हर हर वर्ष होने वाली जान-माल की तबाही भी नहीं होगी l
प्रायः देखा गया है कि नहरों के दोनों किनारे समतल होने के कारण उनका सारा जल निश्चित क्षेत्र तक तो पहुँच जाता है पर मार्ग में पड़ने वाले समस्त क्षेत्र नहरों में जल होते हुए भी प्यासे रह जाते हैं l नहरों का निर्माण करते समय उनके दोनों किनारों की दीवारों में कुछ दूरी का अंतर रखकर जल रिसाव के लिए खाली स्थान रखा जा सकता है l इससे भूजल पुनर्भरण में सहायता मिलेगी और भूजल स्तर को गिरने से भी बचाया जा सकता है l
देशभर में भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गाँव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल के कच्चे जोहड़-पोखर और तालाबों का अधिक से अधिक नव निर्माण और पुराने जल स्रोतों का सुधार भी किया जाना अति आवश्यक है l उनमें वर्षाजल भराव के लिए, उन्हें कच्चे तल वाली छोटी नहरों अथवा नालियों द्वारा आपस में जोड़कर सदैव जल आवक-जावक प्रणाली अपनाई जा सकती है l इस माध्यम से वर्षा जल का कृत्रिम जल भंडारों में जल संचयन और उनसे भू-जल पुनर्भरण होना निश्चित है l नदियों की बहती जलधारा सबको प्रिय लगती है l उन्हें स्थाई रूप से कभी अवरुद्ध नहीं करना चाहिए l नदियों का सदा निरंतर बहते रहना अति आवश्यक है l वह सबकी जीवन दायनी है l
देशभर में एक व्यापक राष्ट्रीय कृत्रिम भूजल पुनर्भरण नीति होनी चाहिए जिसके अंतर्गत स्थानीय जन साधारण से लेकर उनसे संबंधित विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी तथा धार्मिक संस्थाओं, संगठनों और नियासों को एक राष्ट्रीय अभियान बनाकर कार्य करना चाहिए l इससे देश में हरित, श्वेत और जल क्रान्ति लाने में सहायता मिलेगी l
जल संग्रहण किया जाना उस एटीएम के समान है जिसमें पहले धनराशि डालना अति आवश्यक है l अगर हम एटीएम से बार-बार मात्र पैसे निकलते जायेंगे, उसमें कभी धनराशि डालेंगे नहीं तो----? तो वह एक दिन खाली भी हो जायेगा l उससे हमें कुछ भी नहीं मिलेंगा l इसलिए भविष्य में भूजल दोहन करने हेतु हम सबको आज ही से भूजल पुनर्भरण के प्रति अधिक से अधिक सजग रहना चाहिए l हमें कृत्रिम भूजल भंडारों में जल संचयन और उनसे भूजल पुनर्भरण संबंधी निश्चित हर कार्य प्राथमिकता के आधार पर वर्षाकाल आरंभ होने से पूर्व समयबद्ध पूरा कर लेना चाहिए l
चेतन कौशल "नूरपुरी "