दैनिक जागरण 18 नवंबर 2006
गधे सा बोझा उठाए हुए
देखो विद्यार्थी विद्यालय जाता है
किताबी ज्ञान है सारा थैले में
पढ़कर बाबू बन जाता है
हर साल बाबू ही बाबू बनते रहेंगे
अगर देश के नौजवान
खाद्यानों का काम चलेगा कैसे
मिलेंगे खेतों के कहां से किसान
मशीनों का चालक बनेगा कौन
कलाओं का विकास करेगा कौन
शिक्षा दीक्षा दी जाती है परिश्रम करने के लिए
सभ्यता संस्कृति सुरक्षित रखने के लिए
सन्मार्ग जो दिखा न सके वह ज्ञान है कैसा
परिश्रम से जो तुडव़ा दे नाता वह ज्ञान है कैसा
अमल हो न सके जिसका वह शिक्षा मिलती है कैसी
जिससे समाज सेवा हो न सके वह दीक्षा मिलती है कैसी
चेतन कौशल "नूरपुरी"