आलेख - सामाजिक चेतना कश्मीर टाइम्स 21.11.1996
नैतिक शक्ति से व्यक्तित्व निर्माण होता है जबकि अनुशासन से जन शक्ति, ग्राम शक्ति एवं राष्ट्र शक्ति का l इसी प्रकार कुशल नेतृत्व में अनुशासित संगठन शक्ति द्वारा संचालित जो शासन भेदभाव रहित सबके हित के लिए एक समान न्याय करता है, वह सुशासन होता है l
जन्म लेने के पश्चात् जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है उसे सबसे पहले माँ का परिचय मिलता है फिर बाप का l उसे पता चलता है कि उसकी माँ कौन है और बाप कौन ? उसके माता-पिता उसे हर कदम पर उचित कार्य करने और गलत कार्य न करने के लिए उसका साथ देते हैं l इससे वह सीखता है कि उसे क्या अच्छा करना है और क्या बुरा नहीं ?
यही कारण है कि जब बालक बचपन छोड़कर किशोरावस्था में प्रवेश करता है तो वह अपने घर के लिए अच्छे या बुर कार्यों को भली प्रकार समझने लगता है l वह जान जाता है कि घर की संपत्ति पूरे परिवार की संपत्ति होती है l वह तब ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता है जिससे उसका अपना या अपने घर का कोई अहित हो l
जब वह रोजगार हेतु सरकारी या गैर सरकारी कार्यक्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है तब वह अपने घर में मिली उस बहुमूल्य शिक्षा को भूल जाता है कि जिस प्रकार माँ-बाप द्वारा बनाई गई सारी संपत्ति पूरे परिवार की अपनी संपत्ति होती है उसी प्रकार सरकारी या गैर सरकारी संस्थान की भी पूरे समाज या राष्ट्र की अपनी संपत्ति होती है तथा वह स्वयं उस संपत्ति का रक्षक होता है l
इसका कारण यह है कि उसे मिली शिक्षा अभी अधूरी है क्योंकि कभी-कभी वह अपने कार्य क्षेत्र में तरह-तरह के फेरबदल, हेराफेरी और गबन इतिआदि कार्य करने से ही नहीं हिचकचाता या डरता बल्कि अपने से नीचे कार्यरत कर्मचारियों का तन, मन, धन संबंधी शोषण और उन पर तरह-तरह के अत्याचार भी करता है, मानों वे उसके गुलाम हों l लालच उसकी नश-नश में भरा हुआ होता है l
मनुष्य की आवश्यकता है – संपूर्ण जीवन विकास l जीवन का विकास मात्र ब्रह्म विद्या कर सकती है l वह सिखाती है कि निष्काम भाव से कार्य कैसे करें और अपनी अभिलाषाएं कैसे कम करें ? जब हमारी इच्छायें कम होंगी तब हम और हमारा समाज सुखी अवश्य होगा l
वन्य संपदा में पेड़-पौधे, जंगल दिन प्रतिदिन कम हो रहे हैं l उनकी कमी होने से जंगली पशु-पक्षियों व जड़ी-बूटियों का आभाव हो रहा है l भूमि कटाव बढ़ रहा है l बाढ़ का प्रकोप सूरसा माई की तरह अपना मुंह निरंतर फैलाये जा रही है l वन्य संपदा के आभाव, धरती कटाव और बाढ़ रोकने के लिए आवश्यक है जंगलों का संरक्षण किया जाना l वन्य पशु-पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध लगाना l जड़ी-बूटियों को चोरी से उखाड़ने वालों से कड़ाई से निपटा जाना l यह सब रचनात्मक कार्य ग्राम जन शक्ति से किये जा सकते हैं l
वर्तमान समय में विभिन्न राष्ट्रों के आपसी राजनैतिक मतभेद और संघर्षों के कारण हर राष्ट्र और राष्ट्रवादी दुखी व निराश है l जब भी युद्ध होते हैं, निर्दोष जीव व प्राणी मारे जाते हैं l राष्ट्रों का आपसी विरोध व शत्रुता कम होने के स्थान पर और अधिक बढ़ जाती है l ऐसे संघर्ष रोकने के लिए सारी धरती गोपाल की, भावना का विस्तार करना आवश्यक है l अगर हममें आपसी भाईचारा व बन्धुत्व भाव होगा तो हम अपना दुःख-सुख आपस में बाँटकर कम कर सकते हैं l
संसार में जहाँ प्रतिदिन, प्रतिक्षण के हिसाब से लाखों में जनसंख्या बढ़ रही है तो पौष्टिक पदार्थों के कम होने के साथ-साथ धरती भी सिकुड़ती जा रही है l कारखाने, सड़क, बाँध, भवन बनते जा रहे हैं l युवावर्ग में शारीरिक दुर्बलता, विषय-वासनाओं के प्रति मानसिक दासता बढ़ रही है l हमें चाहिए कि सयंम रहित जनन क्रिया को सामाजिक समस्या समझा जाये l समाज की समस्या परिवार की और परिवार की समस्या अपनी समस्या होती है या वह समस्या बन जाती है l इसलिए परिवार का सीमित होना अति आवश्यक है l
कोई भी रोग किसी को हो सकता है l उसकी दवाई होती है या दवाई बना ली जाती है l रोगोपचार के लिए रोगी को दवाई दी जाती है l उसका उपचार किया जाता है और वह एक दिन रोग-मुक्त भी हो जाता है l विशाल समाज ऐसे विभिन्न रोगों से रोगग्रस्त हो गया है l सब रोगों की एक ही दवाई है ब्रह्म विद्या, जो मात्र सरस्वती विद्या मंदिरों के माध्यम से संस्कारों के रूप में. रोग निदान हेतु वितरित की जा सकती है l आइये ! हम विस्तृत समाज में ब्रह्म विद्या के सरस्वती विद्या मंदिरों की स्थापना करके इस पुनीत कार्य को संपूर्ण करें l
चेतन कौशल "नूरपुरी"