जिस प्रकार मकान बनाने के लिए किसी निर्माता विशेषज्ञ के द्वारा मकान की नींव का निर्माण करने से पूर्व उसकी निर्माण- स्थली का सूक्षमता से निरीक्षण करना अनिवार्य होता है ठीक उसी प्रकार गुरुजनों द्वारा किसी विद्यार्थी जीवन को मूर्ति रूप देने से पूर्व विद्यार्थी जीवन का भी भली प्रकार जांच-परख करना होता है। उसकी नींव में प्रयुक्त होने वाली सामग्री जितनी बढ़िया होती है निर्माणाधीन विद्यार्थी जीवन रूपी भवन स्वयं में उतना ही सुरक्षित एवं संकट से मुक्त होता है। गुरुजन विद्यार्थी की बौद्धिक क्षमता अथवा योग्यता के आधार पर उसकी कार्य क्षमता का अनुमान लगाते हैं। वे उस पर कार्यभार का दबाव नहीं बल्कि उसके कार्य में सहयोग देते हैं। इससे उसमें विद्यमान प्रतिभा उजागर होती है और उसका प्रगति मार्ग सुगम होता है। गुरुजन विद्यार्थी में विद्यमान इच्छा शक्ति या उसकी लग्न का विशेष ध्यान रखते हैं। वह उसकी इच्छा शक्ति को ओर अधिक तीव्र करने में योगदान करते हैं तथा उसके मार्ग में आने वाली विभिन्न बाधाओं से समय-समय पर सावधान करके उसे आत्मरक्षा के उपायों द्वारा अवगत करवाते रहते हैं। विद्यार्थी की श्रमशीलता और लग्नशीलता उसकी कार्यक्षमता दर्शाती है। गुरुजनों की दृष्टि सदैव उसके कार्य में आने वाली विसंगतियों पर स्थिर रहती है जो आवश्यकता पड़ने पर उन्हें दूर करने में उसकी सहायता करती है। विद्यार्थी की सफलता गुरुजनों की कृपादृष्टि पर निर्भर करती है। विद्यार्थी की बौद्धिक क्षमता, इच्छाशक्ति, श्रमशीलता के साथ-साथ उसकी कार्यक्षमता भी उसके अदम्य साहस के आगे नतमस्तक होती है। लग्नशील विद्यार्थी ही साहसी और निर्भीक होकर जनहित कार्य करता है। इससे गुरुजनों की मेहनत सफल होती है। क्या वर्तमान विद्यार्थी बौद्विक क्षमता, इच्छाशक्ति, श्रमशीलता और साहस से परिवार एवं समाज के प्रति अपने दायित्वों का पूर्ण रूप से निर्वहन करता है?