योग्य गुरु एवं योग्य विद्यार्थी के संयुक्त प्रयास से प्राप्त विद्या से विद्यार्थी का हृदय और मस्तिष्क प्रकाशित होता है। अगर प्रयत्नशील द्वारा बार-बार प्रयत्न करने पर भी असफलता ही मिले तो उसे कभी जल्दी हार नहीं मान लेनी चाहिए बल्कि ज्ञान संचयन हेतु अपनी सम्पूर्ण शक्ति और लग्नता के साथ और अधिक श्रम करना चाहिए ताकि उसमें किसी प्रकार की कोई कमी न रह जाए। 1 लोक क भ्रमण करने से विषय वस्तु को भली प्रकार समझा जाता है। 2 साहित्य एवं सद्ग्रंथ पढ़ने से विषय वस्तु का बोध होता है। 3 सुसंगत करने से विषयक ज्ञान-विज्ञान का पता चलता है। 4 अधिक से अधिक जिज्ञासा रखने से ज्ञान-विज्ञान जाना जाता है। 5 बड़ों का उचित सम्मान और उनसे विश्व व्यवहार करने से उचित मार्गदर्शन मिलता है। 6 आत्म चिन्तन करने से आत्म बोध होता है। 7 सत्य निष्ठ रहने से संसार का ज्ञान होता है। 8 लेखन-अभ्यास करने से आत्मदर्शन होता है। 9 आध्यात्मिक दृष्टि अपनाने से समस्त संसार एक परिवार दिखाई देता है। 10 प्राकृतिक दर्शन करने से मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। 11 सामाजिक मान-मर्यादाओं की पालना करने से जीवन सुगंधित बन जाता है। 12 शैक्षणिक वातावरण बनाने से ज्ञान-विज्ञान का विस्तार होता है। 13 कलात्मक अभिनय करने से दूसरों को ज्ञान मिलता है। 14 कलात्मक प्रतियोगिताओं में भाग लेने से आत्मविश्वाश बढ़ता है। 15 दैनिक लोक घटित घटनाओं पर दृष्टि रखने से स्वयं को जागृत किया जाता है। 16 समय का सदुपयोग करने से भविष्य प्रकाशमय हो जाता है। 17 कलात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण लेने से योग्यता में निखार आता है। 18 उच्च विचार अपनाने से जीवन मेें सुधार होता है। 19 आत्म विश्वास युक्त कठोर श्रम करने से जीवन विकास होता है। 20 मानवी उर्जा ब्रह्मचर्य का महत्व समझ लेने और उसे व्यवहार में लाने से कार्य क्षमता बढ़ती है। 21 मन में शुद्ध भाव रखने से विश्वास बढ़ता है। 22 कर्म निष्ठ रहने से अनुभव एवं कार्य कुशलता बढ़ती है। 23 दृढ़ निश्चय करने से मन में उत्साह भरता है। 24 लोक परंपराओं का निर्वहन करने से कर्तव्य पालन होता है 25 स्थानीय लोक सेवी संस्थांओं में भाग लेने से समाज सेवा करने का समय मिलता है। 26 संयुक्त रूप से राष्ट्रीय पर्व मनाने से राष्ट्र की एकता एवं अखंडता प्रदर्शित होती है। 27 मानव धर्म निभाने से संसार में अपनी पहचान बनती है। 28 प्रिय नीतिवान एवं न्याय प्रिय बनने से सबको न्याय मिलता है। 29 शांत मगर शूरवीर बनने से जीवन चुनौतियों का सामना किया जाता है। 30 निडर और धैर्यशील रहने से जीवन का हर संकट दूर होता है। 31 दुःख में भी प्रसन्न रहने से कष्ट दूर हो जाते हैं। 32 निरंतर प्रयत्नशील रहने से कार्य में सफलता मिलती है। 33 परंपरागत पैतृक व्यवसाय अपनाने से घर पर ही रोजगार मिल जाता है। 34 तर्क संगत वाद-विवाद करने से एक दूसरे की विचारधारा जानी जाती है। 35 तन, मन और धन से कार्य करने से प्रसंशकों और मित्रों की वृद्धि होती है। 36 किसी भी प्रकार का अभिमान न करने से लोकप्रियता बढ़ती है। 37 सदा सत्य परन्तु प्रिय बोलने से लोक सम्मान प्राप्त होता है। 38 अनुशासित जीवनयापन करने से भोग सुख का अधिकार मिलता है। 39 कलात्मक व्यवसायिक परिवेश बनाने से भोग सुख और यश प्राप्त होता है। 40 निःस्वार्थ भाव से सेवा करने से वास्तविक सुख व आनंद मिलता है।