मानवता सेवा की गतिविधियाँ

लेखक: चेतन कौशल (page 158 of 164)

hi

सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
Read More

जय भारत के नौजवान

Author Image
दैनिक जागरण 29 सितम्बर 2006

जय भारत के नौजवान
आओ सब मिल कर अपना कर्तव्य निभाएं
करके काम कुछ जग हित खुशहाल कहाएं
रश्मी शीतल मिल कर नहाएं
देखे हमें सकल जहान
जय भारत के नौजवान
प्रतिज्ञा करके जहां भी ने सुखी बाप बनाया
शूलों से बिंध कर जो नहीं प्रण से डगमगाया
प्राण तज व्रतधारी ने सबको सच्चा मार्ग दिखाया
करके प्रण निभाए भारत की सन्तान
जय भारत के नौजवान
थे यहां वीर वीरों की यह धरती है
किससे तुम कम किससे तुम्हें भीति है
नित अज्ञान से टकराना तुम करना ज्ञान से प्रीति
बनना है तुम्हें भी महान
जय भारत के नौजवान


चेतन कौशल "नूरपुरी"

शिक्षा का विदेशीकरण

Author Image
दैनिक जागरण 24 सितम्बर 2006

स्वदेशी शिक्षा का विदेशीकरण करने वालो
स्वदेश की पहचान का अनादर करने वालो
विदेशी कोई अनजाना स्वदेश आ जाएगा
करके मीठी बातें तुमसे भेद सारे ले जाएगा
खुद तुम्हें घर से निकालेगा धक्के देकर
बन जाएगा वह स्वामी तुम्हारा सर्वस्व लेकर
तब बन जाओगे तुम उसके सामने क्या
फिर कर पाओगे तुम अपने लिए क्या


चेतन कौशल "नूरपुरी"

सत्य आचरण

Author Image
दैनिक जागरण 16 सितम्बर 2006

श्रेष्ठ साहित्य है कामधेनु
दूध सम मिलती है शक्ति
ज्ञानी की बात ही छोड़ो
मूर्ख भी करने लगता है भक्ति
सद्ग्रंथ खोलो पढ़ लो जरा
जीवन कल्याण हो जाएगा
सत्य आचरण करते चलो
जमाना सत्युग हो जाएगा


चेतन कौशल "नूरपुरी"

धरती मां

Author Image
दैनिक जागरण 15 जुलाई 2006

धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
सर्दी गर्मी वर्षा सब सहती जाती
मीठे कन्दमूल वनस्पति उपजाती
फूलफल अन्न दालें खिलाती
देकर सकल पदार्थ घर बाहर भरती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
ऊंचे पहाड़ों से बनी तेरी छाती है
वन्य सम्पदा की तू ओढ़े साड़ी है
कल कल करते झरने तेरे दूध के धारे हैं
लहराती फसलें प्राणी पोशण करती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोशक धरती मां
नहीं दुर्योधन दुशासन तेरी इज्जत लूट हैं सकते
हर समय यहां रक्षा तेरी कृष्ण मुरारी हैं करते
पूत कपूत हो जाता माता नहीं कुमाता होती है
तू सबके सिर आंचल की ठण्डी छाया करती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां


चेतन कौशल "नूरपुरी"

प्रेरणा से

Author Image
दैनिक जागरण 8 जुलाई 2006

मन की इच्छाएं बढ़ती जा रहीं
बुद्धि निर्णय लेने में हो गई असमर्थ
इद्रियां पथभ्रष्ट होती जा रही
हृदय विशालता का नहीं कोई रहा अर्थ
समाज बंट गया धर्म जाति वर्ग वादविवादों में
घिर गया ऊंचनीच भेदभाव की दीवारों में
विकासशील जीवन यात्रा तोड़ रही दम
विकृत समाज व्यथा हो रही न कम
हे विचारशील स्थिर मन और इद्रिय बलवान
ठोस पत्थर नींव समाज के तू है आत्मा महान
फिर कर ऐसी सभ्यता कला संस्कृति का निर्माण
प्रेरणा तेरी से हो जाए जन समुदाए का कल्याण


चेतन कौशल "नूरपुरी"
1 156 157 158 159 160 164