मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ

पुरालेख (page 40 of 164)

सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
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आचरण शुद्धता

अनमोल वचन :-# आचरण की शुद्धता ही व्यक्ति को प्रखर बनाती है l*
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अनीति मार्ग

अनमोल वचन :-# अनीति के रास्ते पर चलने वाले का बीच राह में ही पतन हो जाता है l*
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व्यक्ति परिचय

अनमोल वचन :-# दो चीजें आपका परिचय कराती हैं : आपका धैर्य, जब आपके पास कुछ भी न हो और...
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प्रभु की समीपता

अनमोल वचन :-# धर्यता और विनम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है l*
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उच्च विचार

अनमोल वचन :-# दिनरात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा...
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मुस्कराना

अनमोल वचन :-# मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो l*
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प्रभु कृपा

अनमोल वचन :-# सच्चाई, सात्विकता और सरलता के बिना भगवान् की कृपा कदापि प्राप्त नहीं की जा सकती l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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पेयजल के चारों ओर फैली गंदगी

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पर्यावरण चेतना - 5 

अक्सर दूसरों को हम साफ -सफाई का उपदेश देते हैं पर स्वयं उस पर कम अमल करते हैं l अपना घर साफ़ - सुथरा रखकर घर का सारा कूड़ा -कचरा ऐसी जगह फैंक देते हैं जो सार्वजनिक होती है l इसी तरह मनुष्य किसी पेयजल स्रोत या देवालय को दूषित करने से भी नहीं हिचकचाता है l देखने में आता है कि जहां से लोगों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है उस जगह गंदगी फैली रहती है l ऐसे में गंदा व दूषित पानी पीने से  अनेकों बीमारियाँ फैलने का खतरा बना रहता है l

सुल्याली गाँव में स्थित डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर के साथ लगता कंगरनाला पर बने प्राकृतिक जल स्रोत के चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है l जहाँ से पाइप द्वारा पेयजल का पास ही में जल भंडारण किया जाता है l वह कंगर नाला का एक छोर है l जब कि जल वितरण व्यवस्था के लिए दूसरी ओर जल भंडारण किया जाता है l यह जल न केवल सुल्याली गाँव की जल आपूर्ति करता है बल्कि उसके आस - पास के कई क्षेत्रों जैसे नेरा, लोहारपूरा, बारड़ी, बलारा, हटली, सोहड़ा और देव भराड़ी आदि को भी जल उपलब्ध करवाता है l   

दुखद है कि कंगर नाला में स्थानीय लोग खुला शौच करते हैं जिससे कंगर नाला में स्थित पेय जल भंडार की शुद्धता और डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर की पवित्रता अनवरत नष्ट हो रही है l हिमाचल सरकार द्वारा राज्य के हर गाँव में निर्धन परिवारों का ध्यान रखकर एक - एक शौचालय बनवाने में आर्थिक सहायता दी जाती है और बनवाये भी हैं फिर भी न जाने क्यों ? लोग खुला शौच करना अधिक पसंद करते हैं l

सुल्याली गाँव से एक किलोमीटर की दूरी पर बने कंगर नाला पुल से नीचे पेय जल स्रोत तक हमें ऐसे ही गंदगी देखने को मिल जाएगी जो जल प्रदूषण के साथ - साथ  डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर के लिए शुभ संकेत नहीं है l

आज डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर एक दर्शनीय मंदिर परिसर बन चुका है l यहाँ दूर - दूर से लोग दर्शन हेतु आते हैं और धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है l अगर समाज के जागरूक स्थानीय लोग इस ओर ध्यान दें, इसे रोकने का प्रयत्न करें तो तभी पेयजल स्रोत साफ सुथरे रह सकते हैं l

प्रकाशित16 मार्च 2008 दैनिक जागरण

जल संग्रहण और उसकी उपयोगिता

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पर्यावरण चेतना  - 4 

हर स्थान पर नहरें व समयानुकूल वर्षा न होने से एकमात्र नलकूप ही खेतों की सिंचाई करने के संसाधन होते हैं l खेतों की सिंचाई करने हेतु नलकूपों की आवश्यकता पड़ती है l उनसे सिंचाई की जाती है l आवश्यक है, भूजल दोहन नियमित और फसल की आवश्यकता अनुसार ही हो l ऐसा न होने पर भूजल का किया गया अधिक दोहन व्यर्थ हो जाता है l इस कारण वह आज एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है l

वर्तमान में गाँव और शहरों के मकान, गलियां, सड़क, इत्यादि सब बड़ी तेजी से सिंमेंट पोश होते जा रहे हैं l स्थानीय संस्थाएं, संगठन, न्यास ही नहीं, देश का जन साधारण भी कुआँ, तालाब, पोखर-जोहड़ों की उपयोगिता भूल गया है l इससे स्थानीय कुओं, तालाबों, पोखर-जोहड़ों की संख्या में काफी कमी आई है l लोगों के सामने हर वर्ष देखते ही देखते वर्षाकालीन का समस्त वर्षा जल गाँव और शहरों की नालियों के माध्यम से नाला मार्ग द्वारा बाढ़ का भयानक रूप धारण करके उनसे दूर बहुत दूर यों ही व्यर्थ में बह जाता है l इस तरह धरती पर अपार वर्षाजल उपलब्ध होने पर भी धरती हर वर्ष प्यासी की प्यासी रह जाती है l इससे भूजल पुनर्भरण की प्राचीन संस्कृति को अघात पहुंचा है l देशभर में वर्षाकालीन भूजल पुनर्भरण व्यवस्था ठीक न होने के कारण गाँव और शहरों में भूजल पुनर्भरण प्रणाली संकट ग्रस्त है l भूजल, पेयजल पर संकट गहराता जा रहा है l

घर मकान, सड़क, पुल, इंडस्ट्रियों, कारखानों तथा डैमों की वृद्धि और लोगों का निरंतर पलायन होने से उपजाऊ धरती और जंगलों का असीम क्षेत्र फल निरंतर सिकुड़ता जा रहा है l सिंचाई के जल संसाधनों में चैक डैम, नहरें, कुंएं तालाब, पोखर-जोहड़ जैसे वर्षा जल के कृत्रिम जल भंडार जो प्राचीन काल से ही परंपरागत सिंचाई के माध्यम रहे हैंSa & उन्हें गाँव और शहरों में स्थानीय लोगों द्वारा वर्षा जल चक्रीय प्रणाली के अधीन सक्रिय रखा जाता था l उनसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण भी होता था l जनश्रुति के अनुसार जिला कांगड़ा के अकेले शहर नूरपुर में ही कभी 365 कुंएं और तालाब तथा बावड़ियाँ अलग सक्रिय हुआ करती थीं जो अब गिनती के रह गई हैं l  

यह समय की विडंबना ही है कि विकास की अंधी दौड़ के अंतर्गत देश के समस्त गाँव और शहरों में जन साधारण द्वारा परंपरागत कृत्रिम जल संसाधनों का तेजी से अंत किया जा रहा है l उनकी उपयोगिता को तिलांजली दी जा रही है l उन्हें समतल करके उनके स्थान पर आलिशान मकान, भवन ही नहीं, देवालय तक बनाये जा रहे हैं और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण की संस्कृति दिन–प्रतिदिन विलुप्त होती जा रही है l  

भविष्य में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली से लंबे समय तक भूजल पुनर्भरण की परंपरा स्थिर रखी जा सकती है जो वन्य संपदा, जलचर, थलचर, नभचर तथा समस्त जीव जन्तुओं के लिए अत्याधिक आवश्यक है भी l इसके लिए हम मात्र कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के संसाधनों का उपयोग करके गिरते हुए भूजल स्तर को पुनः ऊपर ला सकते हैं l

किसी घर या भवन की छत से धरती पर गिरने वाले वर्षाजल को यों ही व्यर्थ में न बहने देना, उसे घर या भवन के निकट धरातल के नीचे बनाया गया गड्ढा जो 5फुट लंबा 5फुट चौड़ा और 10फुट गहरा या उपलब्ध स्थान अथवा आवश्यकता अनुसार छोटा या बड़ा हो और जिससे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण भी सुलभ हो, में वर्षाजल एकत्रित किया जा सकता है l

गाँव व शहर की गलियों तथा सड़कों के दोनों ओर जल बहाबदार नालियों में 4 फुट लंबाई, 3 फुट चौड़ाई और 3 फुट गहराई के गड्ढे जो भूजल पुनर्भरण में समर्थ हों, आवश्यकता अनुसार कम या अधिक दूरी पर बनाये जा सकते हैं l इनसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण सुलभ हो सकता है l 

खेतों में जिस ओर वर्षाजल का स्थाई बहाव हो, उस जल बहाव को रोकने हेतु सामने की उंचाई वाले किनारे से खेत की मिट्टी उखाड़कर, ढलान वाले किनारे पर डालकर ऊँचा किया जा सकता है और वहां पर फलदार, पशुचारा vkSj आवश्यकतानुसार जीवनोपयोगी पेड़-पौधे लगाकर भु-क्षरण रोका जा सकता है l इस प्रकार दूसरी ओर नव निर्मित गहराई के कारण जल अवरोध उत्पन्न होगा l वहां वर्षाजल एकत्रित होने से कृत्रिम भूजल पुनर्भरण प्रभावी हो सकता है l

खेतों के उन भागों पर जहाँ वर्षाजल एकत्रित होता हो, वहां छोटे छोटे कुएं बनाकर उनमें वर्षाजल का संग्रहण किया जा सकता है l इससे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण में सहायता मिल सकती है l

खेतों में जिस ओर वर्षाजल का बहाव हो, से भू-क्षरण रोकने के लिए जल बहाव वाले स्थान पर आवश्यकता अनुसार छोटे-छोटे कुएं बनाये जा सकते हैं l इनसे वर्षाजल के बहाव  को रोकने में सहायता मिलेगी और उनमें संग्रहित जल से भूजल पुनर्भरण भी होगा l

चैक डैम का निर्माण कार्य ऐसे स्थान पर किया जाना उचित है जहाँ आवश्यकता अनुसार जल संचयन हो सके l उससे उपजाऊ धरती सुरक्षित रहे और संचित जल से स्थानीय फसल की आवश्यकता अनुसार जल सिंचाई भी की जा सके l यह छोटे छोटे चैक डैम सदाबहार नालों पर बनाये जा सकते हैं l इनसे बिजली पैदा करके स्थानीय बिजली की आपूर्ति करने के साथ-साथ वहां पनचक्कियां भी लगाकर उनसे आटा पिसाई की जा सकती है l इससे भविष्य में बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम होगी l एक दिन हमें इनकी आवश्यकता भी नहीं रहेगी l बरसात के दिनों में डैमों से नियंत्रित जल छोड़ने से नदियों में भयानक बाढ़ आने का भय/संकट उत्पन्न नहीं होगा और उससे हर वर्ष होने वाली जान-माल की तबाही भी नहीं होगी l

प्रायः देखा गया है कि नहरों के दोनों किनारे समतल होने के कारण उनका सारा जल निश्चित क्षेत्र तक तो पहुँच जाता है पर मार्ग में पड़ने वाले समस्त क्षेत्र नहरों में जल होते हुए भी प्यासे रह जाते हैं l नहरों का निर्माण करते समय उनके दोनों किनारों की दीवारों में कुछ दूरी का अंतर रखकर जल रिसाव के लिए खाली स्थान रखा जा सकता है l इससे भूजल पुनर्भरण में सहायता मिलेगी और भूजल स्तर को गिरने से भी बचाया जा सकता है l

देशभर में भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गाँव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल के कच्चे जोहड़-पोखर और तालाबों का अधिक से अधिक नव निर्माण और पुराने जल स्रोतों का सुधार भी किया जाना अति आवश्यक है l उनमें वर्षाजल भराव के लिए, उन्हें कच्चे तल वाली छोटी नहरों अथवा नालियों द्वारा आपस में जोड़कर सदैव जल आवक-जावक प्रणाली अपनाई जा सकती है l इस माध्यम से वर्षा जल का कृत्रिम जल भंडारों में जल संचयन और उनसे भू-जल पुनर्भरण होना निश्चित है l नदियों की बहती जलधारा सबको प्रिय लगती है l उन्हें स्थाई रूप से कभी अवरुद्ध नहीं करना चाहिए l नदियों का सदा निरंतर बहते रहना अति आवश्यक है l वह सबकी जीवन दायनी है l

देशभर में एक व्यापक राष्ट्रीय कृत्रिम भूजल पुनर्भरण नीति होनी चाहिए जिसके अंतर्गत स्थानीय जन साधारण से लेकर उनसे संबंधित विभिन्न सरकारी व  गैर सरकारी तथा धार्मिक संस्थाओं, संगठनों और नियासों को एक राष्ट्रीय अभियान बनाकर कार्य करना चाहिए l इससे देश में हरित, श्वेत और जल क्रान्ति लाने में सहायता मिलेगी l 

जल संग्रहण किया जाना उस एटीएम के समान है जिसमें पहले धनराशि डालना अति आवश्यक है l अगर हम एटीएम से बार-बार मात्र पैसे निकलते जायेंगे, उसमें कभी धनराशि डालेंगे नहीं तो----? तो वह एक दिन खाली भी हो जायेगा l उससे हमें कुछ भी नहीं मिलेंगा l इसलिए भविष्य में भूजल दोहन करने हेतु हम सबको आज ही से भूजल पुनर्भरण के प्रति अधिक से अधिक सजग रहना चाहिए l हमें कृत्रिम भूजल भंडारों में जल संचयन और उनसे भूजल पुनर्भरण संबंधी निश्चित हर कार्य प्राथमिकता के आधार पर वर्षाकाल आरंभ होने से पूर्व समयबद्ध पूरा कर लेना चाहिए l

प्रकाशित जनवरी 2020 मातृवंदना

जल संकट और उसका समाधान

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पर्यावरण चेतना  – 3

भारत पाक विभाजन के पश्चात् बंगलादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी मुसलमानों का भारत में तेजी के साथ आगमन हुआ है l मुसलमानों में बहु विवाह करने, अनेकों पत्नियाँ रखने और हर पत्नी से दर्जनों बच्चे पैदा करने की परंपरा, का आज भी प्रचलन जारी है l इस कारण छह-सात दशकों से देश के राज्यों में उनकी जनसंख्या टिड्डी दल की भांति बड़ी तीव्र गति से बढ़ी है, जब कि हिन्दुओं की जनसंख्या में निरंतर कमी आई है l इस तरह देश के कई राज्य जिनमें कभी हिन्दू बहु-संख्यक थे, वे अब या तो अल्प संख्यक हो गये हैं या हिन्दू मुक्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं l 

निरंतर जन संख्या के बढ़ने, उचित मात्रा में इमारती और फलदार पोध-रोपण न हो पाने, लोगों को रहने के लिए स्थान कम पड़ने के कारण सबके लिए मकान तथा सड़क निर्माण हेतु बार-बार अनगिनत पेड़ों के कटने से जंगलों का वृत्त सिमटता जा रहा है l बहुत से जंगली जीव लुप्तप्राय हो गये हैं अथवा लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं l इससे पर्यावरण में असंतुलन पनपा है l वन्य जीव-जन्तु व वन्य संपदा निरंतर अभाव की ओर अग्रसर है l

देशभर में तेजी से शहरीकरण और सड़कों का निर्माण होने के कारण धरती की सतह सीमेंट व तारकोल से ढकती जा रही है जिससे वर्षा जल का बहुत सा भाग किसी नाली, नाला, या नदी में बेकार बह जाने से भूमि में प्रवेश नहीं हो पाता है l हाँ असंख्य नलकूपों से पानी अवश्य निकाला जाता है, पर कहीं कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण नाम मात्र ही होता है l निर्माण कार्य हेतु खनिजों की आपूर्ति के लिए नदी, नालों से खनिजों का दिन-रात भारी मात्रा में खनन जारी है जिससे धरती में निरंतर गहराई बढ़ रही है l बदले में भु-जल स्रोत प्रभावित हो रहे हैं और क्षेत्रीय भू-जल संकट बढ़ रहा है l    

धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि होने से वर्षभर जल आपूर्ति करने वाले ग्लेशियर, हिमनद, दिनों दिन पिघल ही नहीं रहे हैं, सिकुड़ भी रहे हैं l बारहमासी बहने वाली परंपरागत झीलें, झरने, नदियां और नहरें जो देश के लिए जल की आपूर्ति किया करती थीं, के जलस्तर में भारी कमी आई है l हर वर्ष गर्मी बढ़ने से प्राकृतिक जल स्रोत सूखते एवं सिकुड़ते जा रहे हैं l 

ग्लेशियर, हिमनद, नदियाँ और नहरें जैसे सतही जल स्रोत जो वर्षभर निरंतर प्रवाहित होते थे, उनसे तालाब, कूप, डैम और नहरों का जल-स्तर पर्याप्त मात्रा में भरा रहता था l मानव के द्वारा आधुनिकता की अंधी दौड़ में पर्यावरण के साथ अनुचित छेड़-छाड़ करने से उसका सौन्दर्य बिगड़ा है l आवश्यकता है प्राकृतिक जल स्रोतों का अस्तित्व बचाने की, उन्हें निरंतर सक्रिय बनाये रखने की l आज इनके अस्तित्व पर संकट के बादल छाने के पीछे मानव की महत्वाकांक्षा और पर्यावरण के प्रति उसकी उपेक्षा का हाथ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है l मनुष्य तीव्र गर्मी से राहत पाने के लिए जब-जब पहाड़ी क्षेत्रों की शीतल हरी - भरी बादियों, उनके रमणीय स्थलों की ओर भ्रमण करने निकलता है तो वह वापसी के दौरान वहां ढेरों गंदगी – पालीथीन लिफ़ाफ़े, प्लास्टिक बोतले और उनसे संबंधित अन्य कचरा भी छोड़ आता है जो पर्यावरण के लिए बड़ा घातक सिद्ध होता है l निर्माण कार्य करने, जीव जंतुओं को पीने के लिए, साफ-सफाई रखने और खेत, पेड़-पौधों की सिंचाई करने के लिए शुद्ध सतही जल ही काम आता है l मनुष्य को प्राकृतिक जल स्रोतों के किनारों पर साफ-सफाई का ध्यान रखना, फलदार और इमारती लकड़ी की पौध लगाना और उसके प्रति स्वयं जागरूक रहना अति आवश्यक है l

बंगलादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी मुसलमानों की अनवरत जन संख्या बढ़ने से भू-जल की मांग बढ़ी है l उससे अंधाधुध भू-जल दोहन होने लगा है l प्रदुषण फैल रहा है l निरंतर खनन होने व वन्य संपदा में कमी आने से जंगलों का वृत्त सिकुड़ रहा है l संतुलित वर्षा न हो पाने के कारण भी शुद्ध भू जल स्तर में कमी आ रही है l ऐसे में - कूप, नल कूप, नल, हस्त चालित नल, और बावड़ियाँ अपना-अपना अस्तित्व खो रहे हैं l सृष्टि में स्वच्छ जल की निरंतर हो रही कमी के कारण प्राणियों का जीवन संकट ग्रस्त है l

हमें जल उपयोग करने के लिए कठोर नियमों का पालन करना आवश्यक हो गया है l इसलिए नल या भू-जल का उपयोग समय पर और परिवार की आवश्यकता अनुसार ही करें l घर या सार्वजनिक नल अथवा भू-जल पाइप कभी लीक न होने दें l परिवार के सदस्य घर अथवा सार्वजनिक स्थलों पर  सदैव बाल्टी और माघ से ही स्नान करें l जूठे वर्तनों और घर की साफ-सफाई तथा कपड़ों की धुलाई सदैव संग्रहित जल से ही करें l निर्माण कार्य हमेशा सतही जल- किसी झील, झरना, जलाशय, तालाब कूप, नदी या नहर से ही करें l ऐसा करने से हमें भूजल बचाने में कुछ लम्बे और अधिक समय तक सहायता अवश्य मिल सकती है l

हमारा भारत मुख्यतः छः ऋतुओं का देश है l उनमें वर्षा ऋतु का अपना ही महत्व है l आज देश भर में स्थिति ऐसी हो गई है कि कहीं वर्षा होती है तो कहीं होती ही नहीं है l जहाँ वर्षा होती है, वहां इतनी ज्यादा और भयानक होती है कि बाढ़ आ जाती है और वह अपने साथ जन, धन, सब कुछ बहाकर ले जाती है l यह सब अचानक इतनी जल्दी होता है कि किसी को अपनी स्थिति संभालने का समय भी नहीं मिलता है l जलधारा सायं-सायं करती हुई नाली, नाला, नदी का रूप धारण कर पहाड़ से जंगल और मैदान की ओर बढ़ जाती है l वह पहाड़ से निकलकर जलाशय की ओर बहती है और फिर सागर से मिलकर एकाकार हो जाती है l उसे तो बस बहना है l वर्षा जल आंधी बनकर आता है और तुफान् बनकर आगे बढ़ जाता है l इस तरह वह तीव्रगामी जलधाराधरती को विनाश के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं देती है l उससे कहीं भी भू-जल पुनर्भरण नहीं होता है l  

भूजल बैक निरंतर खाली होता जा रहा है l इसका मुख्य कारण यह है कि हम भूजल बैंक से निरंतर अंधाधुंध जल दोहन किये जा रहे हैं पर उसमें कभी क़िस्त नहीं डालते हैं, कभी भी जल संग्रहण करने का प्रयास नहीं करते हैं l हमें जलस्तर में वृद्धि करनी होगी l जल संचयन करने हेतु परंपरागत बावड़ी, कूप, तालाब, जलाशयों का संरक्षण एवं उनका नव निर्माण करना होगा l खेत का पानी खेत में रहे, उसे वहीं रोककर, नदियों को स्वच्छ बनाकर, पर्यावरण का प्रदूषण भी हटाना होगा और सदाबहार नदी या नालों के जल को डैम या चैकडैम में बाँधकर तथा हर घर की छत के वर्षाजल का पाइप द्वारा भूमि में कृत्रिम भूजल पुनर्भरण करना होगा l भारत में मुस्लिम समुदाय की टिड्डी दल की भांति बढ़ रही जन संख्या पर नियंत्रण रखना होगा l इसके साथ ही साथ हमें हर वर्षा काल में अपने खेतों की मेड़ों पर तथा खाली पड़ी सरकारी और गैर सरकारी भूमि पर इमारती एवं फलदार पौध लगानी होगी l वर्षभर उनका पोषण करना होगा ताकि भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक जंगल और वन्य संपदा को लम्बे समय तक बचाया जा सके l  

मनवा प्यासी धरती करे पुकार, सुरक्षित भूजल भंडार सबका करे उद्दार  l

प्रकाशित अगस्त 2019 मातृवंदना

छोटी छोटी असावधानियों से भूजल स्तर जाएगा पाताल!

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पर्यावरण चेतना  - 2  

हमारी अनेकों समस्याएं हैं, वह थमने का नाम नहीं ले रही हैं। उन समस्याओं में गहरा होता जा रहा भूजल का गिरता स्तर, वर्तमान में राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है। हम हर क्षण राष्ट्र के अधिकांश भूजल संसाधनों का कदम-कदम पर दुरुपयोग कर रहे हैं, परिणाम स्वरूप भूजल स्तर नीचे जा रहा है।

हम दैनिक उपयोग में अपनी आवश्यकता से कहीं अधिक भूजल दोहन करते हैं। हम रसोई में खाद्य पदार्थों की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के समय नल खुला रखते है। व्यर्थ और गंदा जल क्यारी में न डालकर, नाली में गिरा देते हैं। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए हम खुले नल का प्रयोग करते हैं।

हम भूमिगत जल टंकी भरने के लिए उसमें टोंटी नहीं लगाते हैं। टोंटी लगी हो तो उसे खोल देते हैं या ढीली छोड़ देते हैं।

छत पर 500 या 1000 लीटर वाली पानी की टंकी भरने के लिए हम नल से सीधे जल उठाऊ मोटर का प्रयोग करते हैं। पानी से भर जाने के पष्चात् जल की टंकी से व्यर्थ में पानी बाहर बहता रहता है या उसमें दिन-रात जल का रिसाव होता रहता है।

घर अथवा सार्वजनिक स्नानगृह में हम खुले नल या शावर के नीचे लम्बे समय तक स्नान करते रहते हैं। खुले नल के आगे कपड़े धोते हैं, दंत-मंजन करते हैं, दाढ़ी बनाते हैं।

घर अथवा सार्वजनिक शौचालयों में नल का पानी बहता हुआ छोड़ देते हैं, बहता हुआ दिखे तो भी हम उसे बंद नहीं करते ।

नल से रबर पाइप लगाकर हम घर, पशुशाला ही की नहीं गाड़ी की भी सफाई करते हैं। रबड़  पाइप से जगह-जगह जल रिसाव भी होता रहता है।

नल से रबड़ पाइप लगाकर हम क्यारी व पौधों की सिंचाई करते हैं। खेत में सिंचाई हेतु यूं ही पटवन करते रहते हैं, उसे उचित समयक्रम से नहीं करते हैं। लान को बार-बार पाटते हैं। नलकूप द्वारा आवश्यकता से कहीं अधिक दोहन करते हैं। हम जलवायु के आधार पर परंपरागत खेती करना, फल, चारा व इमारती लकड़ी प्राप्त करने के लिए नई पौध लगाना, दिन प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं। सिंचाई की पाइप के जोड़ों/कपलिंगों से जल रिसाव होता रहता है।

इस तरह थोड़ा-थोडा करके हम भूजल भंडार का कई हजार लीटर पानी यूं ही व्यर्थ में नष्ट कर देते हैं। जल को अमूल्य संसाधन समझने पर भी हम आज यह नहीं सोचते कि पानी न होगा तो कल क्या होगा?

वर्षाकाल में अपने मकान की छतों से गिरने वाले पानी के संग्रह की हमे व्यवस्था कर लेनी चाहिए। सदाबहार बहते नाले में चैकडैम बनवाकर जल संग्रहण करना चाहिए। पुराने तालाब, पोखर, कुंओं का पुनरोद्वार करना चाहिए।

परिवार नियोजन की उपेक्षा में जनसंख्या बढ़ने, प्रौद्योगिकी के विस्तार और शहरीकरण होने के कारण प्रतिदिन भूजल की मांग में अत्याधिक वृद्धि हुई है जबकि भूजल पुनर्भरण की प्रतिशत मात्रा कम रही है। नव निर्माण कार्यों में हम भूजल का बहुत ज्यादा प्रयोग करते हैं। अगर हम समय रहते स्वयं जागरूक नहीं हुए, स्वेच्छा और आवश्यकता से अधिक भूजल का युं ही दोहन एवं दुरुपयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं कि भूजल स्तर पाताल गमन अवश्य करेगा। ऐसी स्थिति में क्या हम उसे रोकने के लिए प्रयासरत हैं ? क्या हम उसे सहजता से रोकने में सफल हो पाएंगे?

प्रकाशित मातृवंदना अगस्त 2015

                      

आओ ! पर्यावरण स्वच्छ बनाएं

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आलेख - हमारा पर्यावरण मातृवंदना जून
2008

विश्व में हमारी दैनिक आवश्यकताएं बहुत हैं l वह इस समय इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि उनसे हमें पल-पल सोचने ही के लिए नहीं बल्कि कुछ न कुछ करने के लिए भी बाध्य होना पड़ता है l हम जो भी कार्य करते हैं भले ही के लिए करते हैं परन्तु कभी-कभी यह भलाई के कार्य समाज हित के लिए वरदान सिद्ध होने के स्थान पर अभिशाप भी बन जाते हैं जिनसे हमें सतर्क रहना अति आवश्यक है l इस समय हमारी परंपरागत सर्वांगीण विकास करने वाली प्राचीन भारतीय संस्कृति पर काले बादल छा रहे हैं l अगर हमने समय रहते इस ओर तनिक ध्यान नहीं दिया तो वो दिन दूर नहीं कि वह हमें कहीं दिखाई नहीं देगी l

हमने किसी धातु, शीशा, गत्ता, कागज़, प्लास्टिक, पालीथीन, नायलन, और रबड़ से निर्मित लेकिन अनुपयोगी हो चुके घरेलू सामान को इधर-उधर नहीं फैंकना है बल्कि उन्हें इकट्ठा करके गाँव में आने वाले कबाड़ी को बेच देना है और बदले में उससे आर्थिक लाभ कमाना है l

हमने घर का प्रतिदिन का कूड़ा-कचरा जला देना है तथा साग-सब्जी, फलों के छिलकों को पालतु पशुओं को खिलाना है अथवा उसे भोजनालय के साथ लगती क्यारी में गड्ढा बनाकर उसमें दबा देना है ताकि वह वहां सड़-गलकर पौष्टिक खाद बन जाये और हम उसका खेती में उपयोग कर सकें l

हमने प्रतिदिन घर व गाँव के आस-पास की नालियों और गलियों में कूड़ा-कचरा फैंकने वालों पर कड़ी नजर रखनी है और आवश्यकता पड़ने पर हमने उन्हें गंदगी से फैलने वाली बिमारियों से भी अवगत करवाना है ताकि वे साफ-सफाई रखने की ओर ध्यान देकर हमारा सहयोग कर सकें l 

हमने लघु-शंका व दीर्घ-शंका निवारण हेतु गाँव के खेत-खलिहानों, नदी-नालों का न तो स्वयं उपयोग करना है और न ही किसी को करने देना है l उसके स्थान पर हमने सदैव घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों का ही प्रयोग करना है और ऐसा दूसरों को करने के लिए कहना है ताकि मल-मूत्र सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत विसर्जित हो सके l उससे कहीं पेयजल स्रोतों - बावड़ी, कुआं, हैण्ड-पंप और नलकूप का शुद्ध पानी दूषित न हो सके l

स्थानीय प्रदूषण एवं रोग प्रतिरोधक, रोग विनाशक तथा औषधीय गुण संपन्न पेड़-पौधे, झाड़, जड़ी-बूटियों और कंदमूलों को संरक्षित करके हमने जीव प्राणों की रक्षा हेतु उनकी सतत वृद्धि करनी है  ताकि आवश्यकता पड़ने पर हम उनका भरपूर उपयोग कर सकें l

हमने गाँव में समाजिक, धार्मिक, विवाह और पार्टियों के शुभ अवसरों पर होने वाले हवन-यज्ञ, भोज या लंगर, भंडार से प्रसाद अथवा खाना खाने के लिए पत्तों की बनी पतलों व डुन्नों का ही उपयोग करना है l वहां से अपने घर प्रसाद या खाना ले जाने के लिए थाली अथवा टिफन का प्रयोग करना है ना कि पालीथीन लिफाफों का l इनसे अनाज की बर्बादी होती है और प्रदूषण फैलता है l

हमने ऐसी सब सुख-सुविधाओं का सर्वदा के लिए परित्याग कर देना है अथवा उनका दुरूपयोग नहीं करना है जिनसे जल, थल, वायु, अग्नि, आकाश, शब्द, वाणी, कार्य, विचार, चरित्र हृदय और वातावरण दूषित होते हों l 

गाँव के मृत पशुओं को खुले में फैंकने से सतही जल, भूजल और वायुमंडल दूषित न हों इसलिए हमने किसी भी मृत पशु को ऐसी जगह फैंकवाना है जहाँ उसे मांसाहारी पशु-पक्षी तुरंत और आसानी से खा जाएँ l

ग्राहक सेवा में गाँव का कोई भी दुकानदार अपनी दुकान से बेचा हुआ सामान सदैव अखवार के ही बने हुए लिफाफों में डालकर देगा और ग्राहक किसी दुकान से पालीथीन लिफाफों में डाला हुआ सामान नहीं लेगा l वह बाजार जाते हुए अपने साथ घर से कपड़े का बना हुआ थैला अवश्य लेकर जायेगा ताकि सामान लाने में उसे कोई कठिनाई न हो l

कोई भी दुकानदार अपनी दूकान अथवा गोदाम के कूड़े-कचरे को सड़क पर, नाली में या कहीं-पास नहीं फैंकेगा l वह उसे कूड़ादान में डालेगा जिसकी नियमित सफाई होगी l वह उसे जला देगा या फिर कबाड़ी को बेच देगा l इससे बाजार देखने में अच्छा और सुंदर लगेगा l  

दूषित जल विसर्जित करने वाले कल कारखानों, अस्पताल और बूचड़खाने के स्वामी यह सुनिश्चित करेंगे कि उनकी ओर से प्रवाहित होने वाला दूषित जल – शुद्ध भूजल, सतही जल और वायुमंडल को कभी दूषित नहीं करेगा l वह कोई रोग नहीं फैलाएगा l वहां से निकलने वाला कचरा धरती की उपजाऊ गुणवत्ता को नष्ट नहीं करेगा l 

धूल, जहरीली गैसें और धुआं उगलने वाले मिल-कारखानों के स्वामी और वाहन मालिक सुनिश्चित करेंगे कि उनसे उत्सर्जित धूल, जहरीली गैसें और धुआं स्वच्छ एवं रोग मुक्त पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाएगा क्योंकि जीवन की सुरक्षा, सुख-सुविधा से कहीं अधिक आवश्यक है l 

प्रौद्योगिकी इकाइयां विभिन्न प्रकार से प्रदूषण एवं रोगों से मुक्ति दिलाने वाली जीवनोपयोगी सामग्री, वस्तुओं और उत्पादों का उत्पादन, निर्माण और उनकी सतत वृद्धि करेंगी ताकि प्राणियों का जीवन सुरक्षित एवं रोग मुक्त रह सके l

उपरोक्त परंपरागत प्राचीन भारतीय संस्कृति हमारी जीवनशैली रही है l आइये ! हम सब मिलकर इसे और अधिक समृद्ध, प्रभावशाली एवं सफल बनाने का अपना दायित्व निभाने हेतु प्रयत्नशील सरकार तथा स्वयं सेवी संस्थाओं को सहयोग दें और सफल बनाएं l 

चेतन कौशल “नूरपुरी”



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