मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ

पुरालेख (page 43 of 164)

सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
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आचरण शुद्धता

अनमोल वचन :-# आचरण की शुद्धता ही व्यक्ति को प्रखर बनाती है l*
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अनीति मार्ग

अनमोल वचन :-# अनीति के रास्ते पर चलने वाले का बीच राह में ही पतन हो जाता है l*
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व्यक्ति परिचय

अनमोल वचन :-# दो चीजें आपका परिचय कराती हैं : आपका धैर्य, जब आपके पास कुछ भी न हो और...
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प्रभु की समीपता

अनमोल वचन :-# धर्यता और विनम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है l*
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उच्च विचार

अनमोल वचन :-# दिनरात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा...
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मुस्कराना

अनमोल वचन :-# मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो l*
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प्रभु कृपा

अनमोल वचन :-# सच्चाई, सात्विकता और सरलता के बिना भगवान् की कृपा कदापि प्राप्त नहीं की जा सकती l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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जनहित विरोधी मानसिकता

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सामाजिक चेतना – 7    

“भारत देश महान” जैसी बातें अब नीरस और खोखली लगने लगी हैं l मन्दिर समान पवित्र घर और विद्यालयों में जहाँ कभी ज्ञान, श्रद्धा, प्रेम-भक्ति और विश्वास पाया जाता था, वहां पर अज्ञान, अश्रद्धा, अवज्ञा, अविश्वास होने के साथ-साथ अवैध संबंध, भ्रूण हत्याएं, बात-बात पर वाद-विवाद, मार-पीट, मन-मुटाव, अपमान, घृणा, द्वेष, आत्म तिरस्कार और आत्म हत्याएं होती हैं l  

अध्यात्म प्रिय होने के कारण देश के अधिकांश परिवार प्रकृति प्रेमी होते थे l परन्तु वह भौतिकवादी हो जाने से जीवन देने वाले पर्यावरण के भी शत्रु बन गए हैं l इस कारण भौतिकवाद की अंधी दौड़ में वन-संपदा, प्राकृतिक सौन्दर्य और समस्त जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ लुप्तप्रायः होती जा रही हैं l मात्र मनुष्य जाति की भीड़ और उसका कंकरीट का जंगल ही बढ़ रहा है l पेयजल और कृषि योग्य भूमि का अस्तित्व संकट में है और प्राद्योगिकी प्रदूषण के साथ-साथ धरती का ताप भी बढ़ रहा है जिससे हिमनद और ग्लेशियर तेजी से पिघलते जा रहे हैं l

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए लगनशील, उद्यमी युवा-वर्ग में बल, बुद्धि, विद्या, वीर्य, सद्गुणों का सृजन, संवर्धन और संरक्षण करने के स्थान पर नशा-धुम्रपान करने, क्लब, वैश्यालय एवम् नृत्यशालाओं में जाने का प्रचलन बढ़ गया है l अध्यात्मिक उपेक्षा करने से वह एड्स जैसे भयानक रोगों का शिकार हो रहा है l 

समाज में अज्ञानता, अपराध, अपहरण, यौन शोषण, बलात्कार, अन्याय, बाल-श्रम, बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी, अत्याचार, हत्यायें, अग्निकांड, उग्रवाद, अशांति, अराजकता होती है l स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र में जाति, भाषा, धर्म, क्षेत्र के नाम पर वाद-विवाद खड़ा करके आपसी फुट डाली जाती है और उन्हें स्वार्थ सिद्धि के लिए आपस में भी बांटा जाता है l 

देश के सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों में आर्थिक भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले होकर वे अग्निकांड के द्वारा अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं l न्यायिक प्रणाली अधिक महंगी, दीर्घ प्रक्रियाओं में से निकलने वाली, दूरस्थ, दैनिक वेतन भोगी, कम वेतन मान पाने वाले एवं निर्धनों की पहुँच से दूर, आमिर-गरीब में असमानता रखने वाली और मात्र किताबी कानून तक अव्यवहारिक होने के कारण – राष्ट्रीय न्यायलयों से जन साधारण का विश्वास दिन-प्रतिदिन उठता जा रहा है l इस प्रकार परिवार, विद्यालय, समाज और राष्ट्र के प्रति जन साधारण में आस्था, विश्वास, प्रेम और जनहित का आभाव दिखाई देने लगा है जो एक विचारणीय विषय है l हमें इस ज्वलंत समस्या का समाधान निकालने के लिए ध्यान देने के साथ-साथ विचार अवश्य करना चाहिए l

प्रकाशित 25 अगस्त 2007 दैनिक जागरण

जन मानस विरोधी कदम

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सामाजिक चेतना – 6

मातृवन्दना जून 2007 अंक में पृष्ठ संख्या 8 आवरण आलेखानुसार “कुछ वर्ष पूर्व “नासा” द्वारा उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और सामग्रियों से यह ज्ञात हुआ है कि श्रीलंका और श्रीरामेश्वरम के बीच 48 किलोमीटर लम्बा तथा लगभग 2 किलोमीटर चौड़ा सेतु पानी में डूबा हुआ है और यह रेत तथा पत्थर का मानव निर्मित सेतु है l भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु का जलयान मार्ग हेतु भारत और श्रीलंका के बीच अवरोध मानकर “सेतु समुद्रम-शिपिंग-केनल प्रोजेक्ट” को भारत सरकार ने 2500 करोड़ रूपये के अनुबंध पर तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है” यह भारतीय संस्कृति की धरोहर पर होने वाला सीधा कुठाराघात ही है जिसे जनांदोलन द्वारा तत्काल नियंत्रित किया जाना अनिवार्य है l

जुलाई 2007 मातृवन्दना अंक के पृष्ठ संख्या 11 धरोहर आलेख “वैज्ञानिक तर्क” के अनुसार “धनुषकोटि” के समीप जलयान मार्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकता है l” इस सुझाव पर विचार किया जा सकता है परन्तु इसकी अनदेखी की जा रही है l एक तरफ भारत की विदेश नीति पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश, भूटान आदि के साथ आपसी संबंध सुधारने की रही है l उन्हें सड़कों के माध्यम द्वारा आपस में जोड़कर उनमें आपसी दूरियां मिटाई जा रही हैं तो दूसरी ओर भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु को तोड़ा जा रहा है l इसे वर्तमान सरकार का जन भावना विरोधी उठाया गया कदम कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि इसके साथ देश-विदेश के असंख्य श्रद्धालुओं की अपार धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं l इससे उन्हें आघात पहुँच रहा है l

कितना अच्छा होता ! अगर श्रीराम युग की इस बहुमूल्य धरोहर रामसेतु का एक वार जीर्णोद्वार अवश्य हो जाता l उसे नया स्वरूप प्रदान किया जाता l  इसके लिए श्रीलंका और भारत सरकार मिलकर प्रयास कर सकती हैं l दोनों देशों के संबंध और अधिक प्रगाढ़ और मधुर हो सकते हैं l इस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की किसी भी मूल्य पर रक्षा अवश्य की जानी चाहिए l

प्रकाशित नवंबर 2007 मातृवन्दना

ख़ुशी का पर्व – दीपावली

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भारत वर्ष विभिन्न – वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुओं का देश है l वर्षा ऋतु के अंत में जैसे ही शरद ऋतु का आरम्भ होता है उसके साथ ही नवरात्रि – दुर्गा पूजन और राम लीला मंचन भी एक साथ आरम्भ हो जाते हैं l दुर्गा पूजन एवं राम लीला मंचन का नववें दिन समाप्त हो जाने के पश्चात्, दसवें दिन विजय दसवीं को दशहरा मनाया जाता है l भारतीय परंपरा के अनुसार विजय दसवीं का पर्व लंकापति रावण (बुराई) पर भगवान श्रीराम (अच्छाई) के द्वारा विजय का प्रतीक माना जाता है l यह पर्व श्रीराम का रावण पर विजय पाने के पश्चात् अयोध्या आगमन की ख़ुशी में उनका हर घर में दीपमाला जलाकर स्वागत किया जाता है l 

धर्म परायण, ईश्वर भक्त और अपने कर्तव्यों के प्रति सदैव जागरूक रहने वाला मनुष्य अपने जीवन में दीपावली को सार्थक कर सकता है l

सार्थक दीपावली

नगर देखो ! सबने दीप जलाये हैं

द्वार-द्वार पर, घर आने की तेरी ख़ुशी में मेरे राम !

अँधेरा मिटाने, मेरे राम !

आशा और तृष्णा ने घेरा है मुझको]

स्वार्थ और घृणा ने दबोचा है मुझको,

सीता को मुक्ति दिलाने वाले राम !

विकारों की पाश काटने वाले राम !

दीप बनकर मैं जलना चाहुँ,

दीप तो तुम प्रकाशित करोगे, मेरे राम !

अँधेरा खुद व खुद दूर हो जायेगा,

हृदय दीप जला दो मेरे राम !

सार्थक दीपावली हो मेरे मन की,

घर-घर ऐसे दीप जलें, मेरे राम !

रहे न कोई अँधेरे में संगी – साथी,

दुनियां में सबके हो तुम उजागर, मेरे राम !

सामाजिक चेतना – 5

प्रकाशित अक्तूबर 2019 मातृवन्दना

कर्तव्य विमुखता का काला साया

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सामाजिक चेतना – 4

आज बुराई का प्रतिरोध करने वाला हमारे बीच समाज में कोई एक भी साहसी, वीर, पराक्रमी, बेटा, जन नायक, योद्धा अथवा सिंहनाद करने वाला शेर नौजवान दिखाई नहीं दे रहा  है l मानों जननियों ने ऐसे शेरों को पैदा करना छोड़ दिया है l गुरुजन योद्धाओं को तैयार करना भूल गये हैं अथवा वे समाज विरोधी तत्वों के भय से भयभीत हैं l

उचित शिक्षा के आभाव में आज समस्त भारत भूमि भावी वीरों से विहीन हो रही है l उद्दमी युवा जो एक वार समाज में कहीं किसी के साथ अन्याय, शोषण अथवा अत्याचार होते देख लेता था, अपराधी को सन्मार्ग पर लाने के लिए उसका गर्म खून खौल उठता था, उसका साहस पस्त हो गया है l यही कारण है कि जहाँ भी दृष्टि जाती है, मात्र भय, निराशा अशांति और अराजकता का तांडव-नृत्य होता हुआ दिखाई देता है l धर्माचार्यों के उपदेशों का बाल-युवा वर्ग पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ रहा है l

बड़ी कठिनाई से पांच% युवाओं को छोड़कर आज का शेष भारतीय नौजवान वर्ग भले ही बाहर से अपने शरीर, धन, और सौन्दर्य से ही सही अपना यश और नाम कमाने के लिए बढ़-चढ़कर लोक प्रदर्शन करता हो परन्तु वह भीतर से आत्म रक्षा-सुरक्षा की दृष्टि से तो है विवश और असमर्थ ही l उचित शिक्षा के आभाव में वह सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्य क्षेत्र में कोरा होने के साथ-साथ वह अधीर भी है l वह सन्मार्ग भूलकर स्वार्थी, लोभी, घमंडी और आत्म विमुख होता जा रहा है l उसमें सन्मार्ग पर चलने की इच्छा शक्ति भी तो शेष नहीं बची है l वह भूल गया है कि वह स्वयं कौन है और क्या कर सकता है ?

आज का कोई भी विद्यार्थी, स्नातक, बे-रोजगार नौजवान मानसिक तनाव के कारण आत्म विमुख ही नहीं हताश-निराश भी हो रहा है जिससे वह जाने-अनजाने में आत्म हत्या अथवा आत्मदाह तक कर लेता है l प्राचीन काल की भांति क्या माता-पिता बच्चों में आज अच्छे संस्कारों का सृजन कर पाते हैं ? क्या गुरुजन विद्यार्थी वर्ग में विद्यमान उनके अच्छे गुण व संस्कारों का भली प्रकार पालन-पोषण, संरक्षण और संवर्धन करते हैं ? वर्तमान शिक्षा से क्या विद्यार्थी संस्कारवान बनते हैं ? नहीं तो ऐसा क्या है जिससे कि हम अभिभावक और गुरुजन अपना कर्तव्य भूल रहे हैं ? हम अपना कर्तव्य पालन नहीं कर रहे ?

प्रकाशित 6 सितंबर 2007 दैनिक जागरण

और लम्बी होंगी बेरोजगार की शृंखलाएं

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आलेख – सामाजिक चेतना मातृवन्दना सितम्बर 2008

भारत में औद्योगिक क्रांति आने के पश्चात्, कल-कारखानों और मशीनों के बढ़ते साम्राज्य से असंख्य स्नातक, बेरोजगार की श्रृंखलाओं में खड़े नजर आने लगे हैं l उनके हाथों का कार्य कल-कारखाने और मशीनें ले चुकीं हैं l वह कठोर शरीर-श्रम करने के स्थान पर भौतिक सुख व आराम की तलाश में कल-कारखानों तथा मशीनों की आढ़ में बेरोजगार हो रहे हैं l

भारत में वह भी समय था, जब हर व्यक्ति के हाथ में कोई न कोई काम होता था l लोग कठिन से कठिन कार्य करके अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे l कोई कहीं चोरी नहीं करता था l वे भीख मांगने से पूर्व मर जाना श्रेष्ठ समझते थे l कोई भीख नहीं मांगता था l इस प्रकार देश की चारों दिशाओं में मात्र नैतिकता का साम्राज्य था, सुख-शांति थी l मैकाले ने भारत का भ्रमण करने के पश्चात् 2 अक्तूबर 1835 में ब्रिटिश सरकार को अपना गोपनीय प्रतिवेदन सौंपते हुए इस बात को स्वीकारा था  l

वर्तमान काल भले ही विकासोन्मुख हुआ है, पर विकासशील समाज सयंम, शांति, संतोष, विनम्रता आदर सम्मान, सत्य, पवित्रता, निश्छलता एवं सेवा-भक्ति भाव जैसे मानवीय गुणों की परिभाषा और आचार-व्यवहार भूल ही नहीं रहा है बल्कि वह विपरीत गुणों का दास बनकर उनका भरपूर उपयोग भी कर रहा है l वह ऐसा करना श्रेष्ठ समझता है क्योंकि मानवीय गुणों से युक्त किये गए कार्यों से मिलने वाला फल उसे देर से और विपरीत गुणों से प्रेरित कर्मफल जल्दी प्राप्त होता है l इस समय समाज को महती आवश्यकता है दिशोन्मुख कुशल नेतृत्व और उसका सही मार्गदर्शन करने की l

भारत में औद्योगिक क्रांति का आना बुरा नहीं है, बुरा तो उसका आवश्यकता से अधिक किया जाने वाला उपयोग है l हम दिन प्रतिदिन पूर्णतया कल-कारखानों और मशीनों पर आश्रित हो रहे हैं l यही हमारी मानसिकता बेकारी की जनक है l इजरायल जैसे किसी देश को ऐसी राष्ट्रीय नीति अवश्य अपनानी चाहिए जहाँ जनसंख्या कम हो l पर्याप्त जनसंख्या वाले भारत देश में कल-कारखानों और मशीनों से कम और स्नातक-युवाओं से अधिक कार्य लेना चाहिए l ऐसा करने से उन्हें रोजगार मिलेगा व बेरोजगारी की समस्या भी दूर होगी l स्नातक-युवा वर्ग को स्वयं शरीर-श्रम करना चाहिए जो उसे स्वस्थ रहने के लिए अति आवश्यक है l कल-कारखाने और मशीने भोग-विलास संबंधी वस्तुओं का उत्पादन करने वाले संसाधन मात्र हैं, शारीरिक बल देने वाले नहीं l वह तो कृषि–बागवानी, पशु–पालन, स्वच्छ जलवायु और शुद्ध पर्यावरण से उत्पन्न पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करने से प्राप्त होता है l

हमें स्वस्थ रहने के लिए मशीनों द्वारा बनाये गए खाद्य पदार्थों के स्थान पर, स्वयं हाथ द्वारा बनाये हुए ताजा खाद्य पदार्थों का अपनी आवश्यकता अनुसार सेवन करने की आदत बनानी चाहिए l

भारत सरकार व राज्य सरकारों को ऐसा वातावरण बनाने में पहल करनी होगी l उन्हें अपनी नीतियां बदलनी होंगी जो विदेशी हवा पर आधारित न होकर स्वदेशी जलवायु तथा वातावरण और संस्कृति के अनुकूल हो ताकि ग्रामाद्योग, हस्तकला उद्योग तथा पैतृक व्यवसायों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन मिल सके l उनके द्वारा बनाये गये सामान को उचित बाजार मिल सके और बेरोजगारी की बढ़ती समस्या पर नियंत्रण पाया जा सके l देश में कहीं पेयजल, कृषि भूमि और प्राणवायु की कमी न रहे l इसी में हमारे देश, समाज, परिवार और उसके हर जन साधारण का अपना हित है l 

चेतन कौशल “नूरपुरी”

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