मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ

पुरालेख (page 49 of 164)

सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
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आचरण शुद्धता

अनमोल वचन :-# आचरण की शुद्धता ही व्यक्ति को प्रखर बनाती है l*
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अनीति मार्ग

अनमोल वचन :-# अनीति के रास्ते पर चलने वाले का बीच राह में ही पतन हो जाता है l*
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व्यक्ति परिचय

अनमोल वचन :-# दो चीजें आपका परिचय कराती हैं : आपका धैर्य, जब आपके पास कुछ भी न हो और...
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प्रभु की समीपता

अनमोल वचन :-# धर्यता और विनम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है l*
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उच्च विचार

अनमोल वचन :-# दिनरात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा...
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मुस्कराना

अनमोल वचन :-# मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो l*
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प्रभु कृपा

अनमोल वचन :-# सच्चाई, सात्विकता और सरलता के बिना भगवान् की कृपा कदापि प्राप्त नहीं की जा सकती l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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19 राम-राज्य कैसे हो साकार?

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राष्ट्रीय भावना

मातृवन्दना मार्च-अप्रैल 2014

प्राचीन काल से ही भारत भूमि ऋषि-मुनियों की तपो भूमि रही है। यह सब उन्हीं के तप का प्रतिफल है कि भारतवर्ष विश्व के मानचित्र पर आर्यवर्त के नाम से सर्व विख्यात हुआ। समय की मांग के अनुसार उसमें वेद, भाष्य, ऋचाएं, रामायण और गीता जैसे अन्य अनेकों धर्म-ग्रंथों की संरचनाएं हुईं और उनका शृंखलावद्ध प्रचार-प्रसार भी हुआ।

भारत में अगर न्यायप्रिय राम-राज्य की स्थापना हुई थी तो उससे पूर्व राक्षस प्रवृत्ति एवं अन्याय के विरुद्ध राम का रावण के साथ भयंकर युद्ध भी हुआ था। कहते हैं रावण के यहां एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे, पर अंतिम समय में, उसके घर दीपक जलाने वाला कोई भी शेष नहीं रहा था। कितना भयावह होता है, युद्ध-परिणाम! 

जो राम-राज्य किसी ने देखा नहीं, वह हमें अब भी घर-घर में उपलब्ध जीवंत रामायण रूप में पढ़ने व विचार करने हेतु अवश्य मिल जाता है। रामावतार हुए युग बीत चुके हैं परन्तु श्रीराम जी के प्रति हमारी दृढ़ आस्था आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है, वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उन्होंने अपने जीवन काल में, हर कदम पर मर्यादाएं सुनिश्चित की थीं, जिनके अंतर्गत उनसे हमें प्रेरणा मिलती है। वह हमारे जन मानस पटल पर अंकित हैं।

आज भारतवर्ष में राम-राज्य नहीं है, इसलिए उसकी पुनस्र्थापना हेतु हम सभी को आज ही से अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में सक्रिय हो कर कुछ प्रयास अवश्य करने होंगे।

महऋषि मनु ने अपनी समृति में-

धृतिक्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।

धर्म के दस लक्षण बताए हैं। भगवान श्रीराम ने अपने जीवन काल में इन सभी का अनुपालन किया। महऋषि  वाल्मीकि के अनुसार वे धैर्य में हिमालय के समान और क्षमा में पृथ्वी के समान थे। सत्य भषण में उनका वंश प्रसिद्ध ही था। रघुकुल रीति सदा चली आई। प्रान जाहि वरु वचन न जाई। उन्होंने विमाता की इच्छापूर्ति हेतु राज्य तक का त्याग कर दिया। उन्हें लेशमात्र लोभ नहीं था। वह इंद्रियों को अपने वश में किए हुए थे। व्यवहार में शुचिता थी। वे यज्ञों के रक्षक और स्वयं यज्ञ कत्र्ता थे। महऋषि विश्वामित्र जी के यज्ञ रक्षणार्थ राक्षसों से संघर्ष किया। भगवान श्रीराम ने धर्म के सभी लक्षणों का पालन करते हुए रामराज्य की स्थापना की। श्रीराम और राजगुरु महऋषि वशिष्ठ में एक लम्बा वार्तालाप हुआ था जिसका संपूर्ण वृतांत संस्कृत में निवद्ध ग्रंथ “योग-वशिष्ठ” में उपलब्ध है। उसमें योग वैराग्य की बहुत सी बातें हैं किंतु साथ ही “एक राजा का क्या कर्तव्य होना चाहिए?” इसका भी विशेष रूपेण उसमें उल्लेख किया गया है। राजा के उन्हीं कर्तव्यों का पालन करते हुए श्रीराम ने रामराज्य स्थापित किया। किंतु आज हम अपनी जड़ों से कट चुके हैं “योग-वशिष्ठ”, विदुर-नीति, अर्थ शास्त्र, दास बोध जैसे ग्रंथों का अध्ययन-मनन कौन करे? हमारे नैतिक पतन का कारण अगर है तो वह है धर्मविहीन राजनीति। आज देश की दुरावस्था देखिए, देशभर में आंतरिक और वाह्य संकटों के बादल मंडरा रहे हैं। देश के दुश्मन राष्ट्र को खंडित करने के लिए साम, दाम, दंड और भेद से कृत संकल्प हैं। राष्ट्र को कदम-कदम पर भारी अपमान और विपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। भारतवर्ष आज अंग्रेज शासित नहीं है, फिर भी सतासठ वर्ष बीत जाने के पश्चात् वह आज भी उनकी नीतियों, व्यवस्थाओं और प्रावधानों का बंधक बना हुआ है। देश की जनता जाति, धर्म, ऊंच-नीच, आपसी फूट, लिंगादि भेद-भावों से ग्रस्त है। संपूर्ण देश महंगाई, भ्रष्टाचार और नारी अपमान की ज्वलंत घटनाओं से प्रभावित हुआ है। परंतु भारतीय युवा वर्ग की अपनी लगन और कड़ी मेहनत से प्रायः सुप्त पड़ी तरुणाई फिर से अंगड़ाई लेने लगी है। उसमें ज्ञान, प्रेम, समर्पण, न्याय और धैर्य जैसे सद्गुणों का प्रादुर्भाव होने लगा है। समय आ गया है, अब बुराई के रावण का, युवा-वर्ग संहार अवश्य करेगा।

आइए! हम सब मिलकर जन, परिवार, गांव और राष्ट्रहित के कार्य करके देश में सक्षम नेतृत्व का चयन कर राम-राज्य की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करें।

दुष्टों के उपद्रव

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अनमोल वचन :-

"जिस राजा के राज्य में दुष्टों के उपद्रव से सारी प्रजा त्रस्त रहती है उस मतवाले राजा की कीर्ति, आयु, ऐश्वर्य और प्रलोक नष्ट हो जाते हैं "।

पात्र-अपात्र

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अनमोल वचन :-

सांपों को दूध पिलाना केवल उनके विष को बढ़ाता है, इसी प्रकार मूर्खों को दिया हुआ उपदेश  उन्हें प्रकुपित ही करता है, न कि शांत । अतः हमें प्रत्येक कार्य में पात्र-अपात्र का अवश्य  ही ध्यान रखना चाहिए ।

वनराज

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अनमोल वचन :-

"वन के राजा शेर का न अभिषेक किया जाता है और न ही कोई संस्कार। वह तो अपने पराक्रम के बल बूते ही जंगल का राजा होता है"।

मनुष्य के पास

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अनमोल वचन :-

"मनुष्य के पास सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख क्रमशः आते रहते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे रथचक्र की नेमी के इधर-उधर घूमते हैं"।

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