बुद्धिमान (महात्मा) लोग सम्पत्ति और विपत्ति में एकरूप रहते हैं अर्थात सुख - दुःख में समान रहते हैं, उसी प्रकार जैसे सुर्य उदय के समय भी लाल रहता है और अस्त काल में भी लाल ही रहता है।
जो व्यक्ति अरणियों (विशेष लकड़ी) को मथते हुए बीच में रुकने की चाह नहीं रखता, वही अग्नि प्राप्त करता है। यही नियम किसी भी कार्य की सफलता के लिए है अर्थात निरंतर परिश्रम करने से ही सफलता मिलती है।
जिस प्रकार जंगल में सियार तभी तक कोलाहल करते हैं जब तक सिंह की गर्जना सुनाई नहीं देती, उसी प्रकार अन्य मतों के तथाकथित विकासशील आधुनिक कहे जाने वाले विचार कुछ समय ही प्रभाव दिखाते हैं जबतक वेदांत रूपी महान विचार का ज्ञान नहीं हो जाता।
जो बुद्धिमान मानव इस संसार में सत्वगुण से युक्त, सबका हित चाहने वाले और प्राणियों के समागम को कर्मानुसार समझने वाले हैं, वे परमगति को प्राप्त करते हैं।