मानवता सेवा की गतिविधियाँ

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सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
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आचरण शुद्धता

अनमोल वचन :-# आचरण की शुद्धता ही व्यक्ति को प्रखर बनाती है l*
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अनीति मार्ग

अनमोल वचन :-# अनीति के रास्ते पर चलने वाले का बीच राह में ही पतन हो जाता है l*
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व्यक्ति परिचय

अनमोल वचन :-# दो चीजें आपका परिचय कराती हैं : आपका धैर्य, जब आपके पास कुछ भी न हो और...
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प्रभु की समीपता

अनमोल वचन :-# धर्यता और विनम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है l*
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उच्च विचार

अनमोल वचन :-# दिनरात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा...
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मुस्कराना

अनमोल वचन :-# मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो l*
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प्रभु कृपा

अनमोल वचन :-# सच्चाई, सात्विकता और सरलता के बिना भगवान् की कृपा कदापि प्राप्त नहीं की जा सकती l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
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जनहित विरोधी मानसिकता

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आलेख - सामाजिक जन चेतना – मातृवंदना नवंबर 2007 

“भारत देश महान” जैसी बातें अब नीरस और खोखली लगने लगी हैं l मन्दिर समान पवित्र घर और विद्यालयों में जहाँ कभी ज्ञान, श्रद्धा, प्रेम-भक्ति और विश्वास पाया जाता था, वहां पर अज्ञान, अश्रद्धा, अवज्ञा, अविश्वास होने के साथ-साथ अवैध संबंध, भ्रूण हत्याएं, बात-बात पर वाद-विवाद, मार-पीट, मन-मुटाव, अपमान, घृणा, द्वेष, आत्म तिरस्कार और आत्म हत्याएं होती हैं l

अध्यात्म प्रिय होने के कारण देश के अधिकांश परिवार प्रकृति प्रेमी होते थे l परन्तु वह भौतिकवादी हो जाने से जीवन देने वाले पर्यावरण के ही शत्रु बन गए हैं l इस कारण भौतिकवाद की अंधी दौड़ में वन-संपदा, प्राकृतिक सौन्दर्य और समस्त जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ लुप्तप्रायः होती जा रही हैं l मात्र मनुष्य जाति की भीड़ और उसका कंकरीट का जंगल ही बढ़ रहा है l पेयजल और कृषि योग्य भूमि का अस्तित्व संकट में है और प्राद्योगिकी प्रदूषण के साथ-साथ धरती का ताप भी बढ़ रहा है जिससे हिमनद और ग्लेशियर तेजी से पिघलते जा रहे हैं l

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए लगनशील, उद्यमी युवा-वर्ग में बल, बुद्धि, विद्या, वीर्य और सद्गुणों का सृजन, संवर्धन और संरक्षण करने के स्थान पर नशा-धुम्रपान करने, क्लब, वैश्यालय एवम् नृत्यशालाओं में जाने का प्रचलन बढ़ गया है l अध्यात्मिक उपेक्षा करने से वह एड्स जैसे भयानक रोगों का शिकार हो रहा है l

समाज में अज्ञानता, अपराध, अपहरण, यौन शोषण, बलात्कार, अन्याय, बाल-श्रम, बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी, अत्याचार, हत्यायें, अग्निकांड, उग्रवाद, अशांति, अराजकता होती है l स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र में जाति, भाषा, धर्म, क्षेत्र के नाम पर वाद-विवाद खड़ा करके आपसी फुट डाली जाती है और उन्हें स्वार्थ सिद्धि के लिए आपस में भी बांटा जाता है l

देश के सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों में आर्थिक भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले होकर वे अग्निकांड के द्वारा अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं l न्यायिक प्रणाली अधिक महंगी, दीर्घ प्रक्रियाओं में से निकलने वाली, दूरस्थ, दैनिक वेतन भोगी, कम वेतन मान पाने वाले एवं निर्धनों की पहुँच से दूर, आमिर-गरीब में असमानता रखने वाली और मात्र किताबी कानून तक अव्यवहारिक होने के कारण – राष्ट्रीय न्यायलयों से जन साधारण का विश्वास दिन-प्रतिदिन उठता जा रहा है l इस प्रकार परिवार, विद्यालय, समाज और राष्ट्र के प्रति जन साधारण में आस्था, विश्वास, प्रेम और जनहित का आभाव दिखाई देने लगा है जो एक विचारणीय विषय है l हमें इस ज्वलंत समस्या का समाधान निकालने के लिए ध्यान देने के साथ-साथ विचार अवश्य करना चाहिए l

चेतन कौशल “नूरपुरी”

ठगी का नया दौर !

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आलेख - सामाजिक जन चेतना मातृवंदना सितंबर 2011

जहाँ भारत को जिस तेजी के साथ विश्व की भावी आर्थिक शक्ति माना जाने लगा है, उससे भी तीव्र गति से देश में सक्रिय कुछ देशी, विदेशी अंतर्राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनके एजेंटों की अनैतिक गति विधियों के द्वारा लोगों की जेबों में दिन –दिहाड़े डाका भी डाला जा रहा है l

यह कंपनियां और उनके एजेंट पहले गाँव-गाँव और शहर-शहर में जाकर, लोगों को बहला-फुसलाकर अपना जाल बिछाते हैं l उन्हें सब्ज-बाग दिखाते हैं l वे उनके साथ मीठी-मीठी बातें करके उन्हें अपनी आकर्षक परियोजनाओं के माध्यम से ढेरों पैसे कमाने के ऊँचे-ऊँचे सपने दिखाते हैं l इस तरह धीरे-धीरे वह बड़ी चतुराई के साथ, अल्पाब्धि में ही उनसे लाखों, करोड़ों रूपये इकठ्ठा करके रातों-रात अरब-खरब पति बनकर अपना बोरी-विस्तर भी समेट लेते हैं l आये दिन देश भर में देशी, विदेशी अंतर्राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनके एजेंटों की अनैतिक गतिविधियां बढ़ रही हैं l इनसे लोगों के दिनों का चैन खो गया है और रातों की नींद उड़ गई है फिर भी हमारी सरकारें कुम्भकर्ण की नींद सो रही हैं l

भारत के राज्यों में पंजीकृत कंपनियों की शृंखला में, मलटी लेवल मार्केटिंग के आधार पर, चेनेई, तमिलनाडु में पंजीकृत और बंगलौर से संचालित होने वाली विजर्व पावर्ड वाई युनि पे 2 यू टीऍम कम्पनी ने, अपनी आकर्षक प्रयोजनानुसार देश भर में स्वयं से संबंधित हर व्यक्ति को दस महीने के पश्चात्, अधिक से अधिक लाभांश सहित, उसकी पूरी राशि लौटानी थी पर उसने अक्तूबर 2010 से अप्रैल 2011 तक लोगों का कोई भी भुगतान नहीं किया है l

केंद्र और प्रान्तों के सरकारी विभागों में कार्यरत ऐसे कई अधिकारी और कर्मचारी भी हैं जो कंपनी के लिए एजेंट का काम कर रहे हैं l उन्होंने अपने-अपने विभागों और आसपास के जाने-पहचाने लोगों से लाखों, करोड़ों रूपये इकट्ठे कर लिए हैं l पर लोगों को अब तक उनका अपना पैसा न मिलने के कारण, उन्हें संदेह है कि वह पैसा एजेंटों के द्वारा कम्पनी के खाते में डाला भी गया है कि नहीं ! इस पर एजेंटों का कहना है कि लोगों का पैसा इंटर नैट द्वारा कंपनी के खाते में जमा हो चुका है l वह जल्दी ही, अधिक धन राशि सहित उनके अपने-अपने बैंक खातों में आ जायेगा l वे निराश लोगों को रोजाना इंटर नैट पर कंपनी की कार्रवाई देखने को कहते हैं और कंपनी इंटर नैटपर प्रतिदिन मात्र झूठे संदेश और आश्वासन देकर उनका पेट भरने का असफल प्रयास कर रही है l लोगों को उसके संदेशों और आश्वासनों की नहीं, धन की आवश्यकता है जो उन्होंने अपने खून पसीने की कमाई का एक बड़ा भाग, भाविष्य निधि निकलवाकर और बैंक से ऋण लेकर उन एजेंटों के माध्यम द्वारा, कंपनी में लगाया हुआ है – का क्या होगा ! एजेंट तो कमीशन लेकर अपनी लाखों की चल-अचल संपत्ति बना चुके हैं l उन्होंने अब पीड़ितों से और क्या लेना है ?

अगर देशवासी अल्पाब्धि में ही समृद्ध होने या अधिक लाभांश पाने हेतु, लोभ और स्वार्थ की दलदल में धंसते रहेंगे तो इससे अवैध और कला धन जो अनैतिक गतिविधियों द्वारा निजी सुख हेतु इकठ्ठा कर लिया जाता है या फिर उसे चोरी-छिपे विदेशी बैंकों में पहुंचा दिया जाता है, को ही बढ़ावा मिलेगा l क्या उससे राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा ? क्या उससे कभी भारतीय समाज को सुख-शांति मिल पायेगी, उसका विकास हो पायेगा ?

भारत सरकार और प्रांतीय सरकारों के द्वारा अपने यहाँ सर्व प्रथम उन सभी कंपनियों की भली प्रकार से जाँच-परख कर लेनी चाहिए, तद्पश्चात पंजीकृत विभिन्न कंपनियों और उनके वैद्य-अवैद्य एजेंटों की पल-पल की गति विधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए, राष्ट्रहित में “नागरिक आर्थिक सतर्कता” समितियों का गठन करना चाहिए l इससे किसी अवैद्य कंपनी अथवा उसके अपराधिक एजेंटों के द्वारा, भविष्य में देश के अमुक क्षेत्र का, कोई व्यक्ति अथवा उसका परिवार पुनः पीड़ित नहीं हो सकेगा l

चेतन कौशल “नूरपुरी”

दिल प्रीतम का घर है

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आलेख - मानव जीवन दर्शन दैनिक कश्मीर टाइम्स 19 अप्रैल 2009

किसी ने ठीक ही कहा है कि “जिस तरह हमें अपना शरीर कायम रखने के लिए भोजन जरुरी है आत्मा की भलाई के लिए प्रार्थना कहीं उससे भी ज्यादा जरूरी है l प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं वरन हृदय से होता है l इसलिए गूंगे, तुतले, और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं l जीभ पर अमृत राम-नाम हो और हृदय में हलाहल – दुर्भावना हो तो जीभ का अमृत किस काम का ?”
उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि प्रार्थना या भजन हृदय से किया जाता है जिससे मनुष्य का हृदय शुद्ध होता है l ऐसा करने के लिए उसे बाह्य संसाधनों अथवा संयंत्रों की कभी आवश्यकता नहीं होती है बल्कि उसे आत्मावलोकन एवं स्वाध्य करना होता है, आत्म शुद्धि करनी होती है l जिस मनुष्य के हृदय में दुर्भावना और अज्ञान होता है, वह समाज का न तो हित चाहता है और न कभी भलाई के कार्य ही करता है l
इसी कारण आज देश का प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, गाँव और शहर पलपल ध्वनि प्रदूषण का शिकार हो रहा है l उसकी दिन-प्रति दिन वृद्धि हो रही है l उससे समस्त जन जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है l ध्वनि प्रदूषण के कारण समाज में बहरापन रोग भी बढ़ jहा है l इसका उत्तरदायी कौन है ?
वर्तमान में विवाह, पार्टी, घर व दुकानों में रेडियो, दूरदर्शन, टेपरिकार्डर, डैक एवं मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद पर टंगे बड़े-बड़े स्पीकर तथा जगराता पार्टियाँ बे रोक-टोक दवानी प्रदूषण फैला रहे हैं l
बच्चों के पढ़ने व रोगी के आराम करने के समय पर संयंत्रों के उच्च स्वर सुनाई देते हैं l उनसे मनचाहा उच्च स्वरोच्चारण होता है l शायद ऐसा करने वाले भक्तजन व विद्वान लोगों को भजन कीर्तन सुनना कम और सुनाना ज्यादा अच्छा लगता होगा l क्या उससे बच्चे भली प्रकार पढ़ाई कर पाते हैं ? क्या इससे किसी दुखी, पीड़ित या रोगी को पूरा आराम मिल पाता है ?
स्मरण रहे ! कि प्रार्थना या भजन स्पीकरों या डैक से उच्च स्वर में नहीं, मानसिक या धीमी आवाज में ही करना श्रेष्ठ व सर्व हितकारी है l उससे किसी को दुःख या कष्ट नहीं होता है l इसी कारण बहुत से लोग आत्मचिंतन करते हैं तथा मानसिक नाम जाप करते हैं l उन्हें किसी को प्रार्थना सुनाने की आवश्यकता नहीं होती है l
रोगी-दुखियों को कष्ट पहुँचाना और विद्यार्थियों की पढ़ाई में बाधा डालना इन्सान का नहीं, शैतान का कार्य है l अगर हम मनुष्य हैं तो हमें मनुष्यता धारण कर मनुष्य के साथ मनुष्य जैसा व्यवहार अवश्य करना चाहिए, शैतान सा नहीं l
प्रार्थना या भजन करना हो तो हृदय से करो, वह जीवन अमृत समान है l शैतान, अहंकारी और अज्ञानी होकर विभिन्न संयंत्रों से उच्च स्वर बढ़ाकर उसे समाज के लिए विष मत बनाओ l
समाज में ध्वनि प्रदूषण न फ़ैल सके, इसके लिए प्रशासन के द्वारा ध्वनि विस्तार रोधक कानून से अंकुश लगाया जाना आवश्यक है l हम सबको इस कार्य में हार्दिक योगदान करना चाहिए l किसी ने ठीक ही कहा है कि दिल एक मंदिर है l प्यार की जिसमें होती है पूजा, वह प्रीतम का घर है l

चेतन कौशल “नूरपुरी”

मानव इन्द्रियां – स्वाभाविक गुण

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आलेख - मानव जीवन दर्शन कश्मीर टाइम्स 24 अगस्त 1996 

मानव शरीर उस सुंदर मकान के समान जिसमें आवश्यकता अनुसार दरवाजे, खिड़कियाँ, अलमारियां, रोशनदान, और नालियां सब कुछ उपलब्ध होता है l उसमें घर की प्रत्येक वस्तु उचित स्थान पर उचित और सुसज्जित ढंग से रखी हुई होती है l मानव शरीर मुख्यतः कान, नाक, आँख, जिह्वा, त्वचा, हाथ, मुंह, उपस्थ, गुदा और पैरों के ही कारण परिपूर्ण और मनमोहक है l वह अपना प्रत्येक कार्य करने में हर प्रकार से सक्षम है l
भारतीय विद्वानों ने मनुष्य के इन महत्वपूर्ण अंगों को इन्द्रियां नाम प्रदान किया है l इन इन्द्रियों की कर्मशीलता के ही कारण मनुष्य शरीर गतिशील है l यह इन्द्रियां दो प्रकार की हैं – ज्ञानेन्द्रियाँ तथा कर्मेन्द्रियाँ l ज्ञानेन्द्रियों में कान, नाक, आँख, जिह्वा और त्वचा आती हैं और कर्मेन्द्रियों में हाथ, मुंह, उपस्थ, गुदा और पैर l इन सबके अपने-अपने कार्य हैं जो अपना विशेष महत्व रखते हैं l
पांच ज्ञानेन्द्रियों में जो मनुष्य के शरीर में सुशोभित हैं, वह समय-समय पर आवश्यकता अनुसार मनुष्य को विभिन्न प्रकार के ज्ञान से स्वर्ग तुल्य आनंद व सुख की अनुभूति करवाती हैं l इन ज्ञानेन्द्रियों कान से शब्द ज्ञान, आँख से दृश्य ज्ञान, नाक से गंध ज्ञान, जिह्वा से स्वाद ज्ञान और त्वचा से स्पर्श ज्ञान सुख प्राप्त होते हैं l सृष्टि में पांच महाभूत आकाश, आग, मिटटी, पानी और वायु पाए जाते हैं जो क्रमशः कान, नाक, आँख, जिह्वा और त्वचा से शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श के रूप में अनुभव किये जाते हैं l
आकाश के माध्यम से कान के द्वारा शब्द सुनने से शब्द ज्ञान होता है l यह शब्द कई प्रकार के होते हैं, जैसे – गाने का शब्द, बजाने का शब्द, नाचने का शब्द, हंसने का शब्द, रोने का शब्द, बड़बड़ाने का शब्द, पढ़ने-पढ़ाने का शब्द, शंख फूंकने का शब्द, गुनगुनाने का शब्द, बतियाने का शब्द, चलने का शब्द, तैरने का शब्द, लकड़ी काटने का शब्द इतियादि l  
आग या प्रकाश  के माध्यम से आँख के द्वारा देखने से दृश्य-ज्ञान होता है l उन्हें मुख्यतः चार भागों में विभक्त किया जा सकता है – रंगों के आधार पर, बनावट के आधार पर, रूप के आधार पर और क्रिया गति के आधार पर l
रंगों में – नीला, पीला, काला, हरा, सफेद, और लाल रंग पमुख हैं तथा अन्य प्रकार के रंग उपरोक्त रंगों के मिश्रण से जो विभिन्न अनुपात में मिलाये जाते हैं, से मन चाहे रंग तैयार किये जा सकते हैं l
बनावट आकर में – गोलाकर, अर्ध गोलाकार, त्रिभुजाकार, आयताकार, वर्गाकार, सर्पाकार, आयताकार, लम्बा, छोटा, मोटा, नुकीला और धारदार आदि l  
रूप प्रकार में – प्रकाश, ज्योति, आग, शरीर, पवन का स्पर्श, जल, वायु की सर-सराहट, मिटटी आदि l    
क्रिया गति में – दो प्रकार हैं, सजीव तथा निर्जीव l सजीव स्वयं ही क्रियाशील हैं जबकि निर्जीव को क्रियाशील किया जाता है और उसे गति प्रदान की जातीहै l
मिटटी और उससे उत्पन्न जड़ी बूटियों, पेड़ पोधों, फूल-वनस्पतियों और फलों से विभिन्न प्रकार की उड़ने वाली गंधों – का नाक के द्वारा सूंघने से गंध–ज्ञान होता है l गंधे कई प्रकार की हैं जिनमें कुछ इस प्रकार हैं – जलने की गंध, सड़ने की गंध, पकवान पकने की गंध, फूल-वनस्पति की गंध, पेड़ छाल की गंध, मल-मूत्र की गंध तथा मांस मदिरा की गंध आदि l
जल या रस के रूप में – पेय वस्तुओं का जिह्वा द्वारा स्वाद चखने से स्वाद-ज्ञान होअता है l यह भी कई प्रकार के हैं – खट्टा, मीठा, फीका, नमकीन, तीक्षण, कसैला और कड़वा आदि l  
वायु के स्पर्श से त्वचा पर पड़ने वाले प्रभावों से त्वचा के जिन जिन रूपों में अनुभव होता है उनमें ठंडा, गर्म, नर्म, ठोस मुलायम और खुरदरा प्रमुख अनुभव हैं l
पांच कर्मेन्द्रियाँ मनुष्य को कर्म करने में सहायता करती हैं l यह इन्द्रियां इस प्रकार हैं – मुंह, हाथ, उपस्थ, गुदा और पैर l  मुंह से होने वाले कार्य इस प्रकार है – फल खाना, बातें करना, गाना, हँसना, रोना, बड़बड़ाना, बांसुरी बजाना, शंख फूंकना, गुनगुनाना और पानी पीना आदि l 
हाथों से किये जाने वाले कार्य इस प्रकार हैं – पैन पकड़ना, पत्र लिखना, सिर खुजलाना, कपड़ा निचोड़ना, खाना पकाना, ढोल बजाना, मशीन चलाना, भाला फैंकना, तैरना, धान कूटना, स्वेटर बुनना, दही बिलोना, कपडा सिलना, फूल तोडना, कढ़ाई करना, मूर्ति तराशना, चित्र बनाना, हल चलाना, अनाज तोलना, नोट गिनना, आँगन बुहारना, बर्तन साफ करना, पोंछा लगाना, गोबर लीपना, चिनाई करना, कटाई करना, पिंजाई करना आदि l
मूत्र विच्छेदन करना  उपस्थ का कार्य है l
गुदा मल  विच्छेदन का कार्य करता है l
पैरों से चलना, खड़ा होना, दौड़ना, नाचना, कूदना आदि कार्य किये जाते हैं l
 इस प्रकार हम देख चुके हैं कि ज्ञानेन्द्रियाँ मनुष्य को ज्ञान की ओर और कर्मेन्द्रियाँ कर्म की ओर आकर्षित करती हैं l यही उनका अपना स्वभाव है l

चेतन कौशल “नूरपुरी”

नींद त्यागो – राष्ट्र संभालो

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आलेख – राष्ट्रीय भावना दैनिक कश्मीर टाइम्स 29.6.1996

किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी अपनी सभ्यता और संस्कृति पर निर्भर करती है l कोई भी देशवासी विदेश में उसके अपने ही राष्ट्र की राष्ट्रीयता, भाषा, पहनावा, रहन-सहन, खाना, आचार- व्यवहार और स्वदेशी भावना से जाना तथा पहचाना जाता है l इसलिए राष्ट्र और उसकी राष्ट्रीयता से संबंधित स्थानीय सभ्यता–संस्कृति का महत्व स्वाभाविक ही बढ़ जाता है l किसी राष्ट्र की सभ्यता– संस्कृति उसके उच्च गुण-संस्कारों के ही कारण महान होती है l इसी आधार पर भारत विश्व भर में सोने की चिड़िया के नाम से विख्यात हुआ था l
विदेशी आक्रान्ता जिनमें तुर्क, हुण, डच, मंगोल, यूनानी, फ़्रांसिसी, पुर्तगाली, मुगल और अंग्रेज प्रमुख थे, भारत में अपने-अपने निश्चित प्रयोजन सिद्ध करने हेतु आये l उन्होंने भारत की सुख-समृद्धि को नष्ट तो किया ही, साथ हो साथ भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर अपनी सभ्यता-संस्कृति की छाप भी लगा दी l
इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि भारत में स्थानीय भाषा, पहनावा, रहन-सहन, योग साधना,  खाना, आचार-व्यवहार जो सब वहां के वातावरण, जलवायु, प्रकृति और परंपरा पर आधारित थे, उनका अब अपना वास्तविक स्वरूप शेष बहुत कम रह गया है l वह बड़ी तेजी से साहित्य की मात्र वस्तु बनती जा रही है l
इस अभूतपूर्व परिवर्तन में आक्रान्ताओं के आतंक का भले ही बड़ा हाथ रहा हो पर उनके साथ-साथ उस समय से संबंधित देश के गद्दारों, भाड़े के विदेशी सैनिकों और सत्ता के महत्वाकांक्षी लोगों का भी कम योगदान नहीं है l स्वदेश में विदेशी आक्रान्ताओं का प्रवेश उन्हीं लोगों के माथे पर लगा कलंक है जो उस समय की विदेशी कूटनीति छल-कपट की चालों से अनभिज्ञ रहे और लालच का शिकार हुए थे l उन्होंने तो सब्जबाग ही देखे थे l इसी कारण वे निरंतर अपनों के हाथों अपने ही प्रिय बंधुओं को मौत के घाट उतारते रहे l     
इस प्रकार जो व्यक्ति अपनों का प्रिय न हो सका, प्रिय न कर सका, गैर का क्या करेगा ! बात को आक्रान्ता लोग उदाहरण सहित पगपग पर परखते और सिद्ध भी करते करते थे l जब उनका स्वार्थ सिद्ध हो जाता था तो इनाम में वे उन्हें देते थे, मौत l इससे पूर्व कि उन्हें अपनी गलती का अहसास हो सके, वे अपने सामने साक्षात् मृत्यु देख उनसे अपने शेष जीवन का जीवनदान पाने की याचना भी करते थे, पर तब तक समय हाथ से निकल चुका होता था l अपार धन, सैन्य शक्ति होते हुए भी देश के महान नायक, खलनायक अपने अहंकार वश झूठे यश-मान की लालसा रखने पर स्वयं ही मिट्टी में मिलते चले गये l यह प्रवृत्ति हम में आज भी जारी है l जो कार्य हमारे पूर्वज नहीं कर पाए उन्हें अब हम पूरा कर रहे हैं l हम अपने ही हाथों अपना चेहरा बिगाड़ रहे हैं l   
आज हमारा राष्ट्र भले ही स्वतंत्र है l हम स्वतंत्र देशवासी हैं फिर भी विदेशी सभ्यता-संस्कृति हमारे जनमानस पर पूर्ण रूप से प्रभावी है l  हम स्वाधीन होकर भी पराधीन हैं l क्या आज विश्व में हमारी अपनी कोई पहचान है ? क्या हमारी सभ्यता-संस्कृति विदेशी सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित नहीं है ? क्या हमारा समाज विभिन्न सभ्यता-संस्कृतियों के नाम पर अल्प संख्यकों, बहुसंख्यकों में विभक्त नहीं हो रहा है ? आज हम अपने ही घर में भयभीत हैं, हम भारतीय होने, भारतीय कहलाने से डरते हैं l हम अपनी सभ्यता-संस्कृति का स्वयं उपहास उड़ाते हैं l उसे भुलाते जा रहे हैं l दूसरों की सभ्यता-संस्कृति का अन्धानुकरण करते हुए हम गर्व अनुभव करते हैं l फिर भी हमारे राष्ट्र का नाम आज भी बड़े मान-सम्मान से लिया जाता है, कारण उसकी प्राचीन प्रतिष्ठित विश्व कल्याणी भावना l उसके द्वारा सबका कल्याण चाहना l प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृतिकी उच्च प्रकाष्ठा, सबका सम्मान करना l सबके प्रति प्रेमभाव रखना l “स्वयं जियो और दूसरों को जीने दो, को व्यवहार में लाना l
परन्तु आज की भौतिकवादी अंधी दौड़ में यह सब चौपट हो गया है l हम सब अध्यात्मिक विकास की उपेक्षा करके मात्र संसारिक उन्नति के पीछे हाथ धोकर पड़ गये हैं l हम यह भी भली प्रकार जानते हैं कि अध्यात्मिक सुख दीर्घकाल तक जीवित रहता है, जबकि भौतिक सुख क्षणिक मात्र ही होता है l फिर भी हमारे मन के विकारों ने हमें अपना दास बना लिया है l हमारे जीवन का प्रत्येक पल मानव जीवन के यथार्थ ज्ञान को भूलता जा रहा है l जीवन की वास्तविकता हमारे लिए पहेली बनती जा रही है l प्राचीन भारत ने विश्व में ब्रह्मज्ञान को ही सब विद्याओं का जनक जाना और माना था l उसने हम सबको सुख और समृद्धि भी प्रदान की थी l आधुनिक काल में हमने उसकी उपयोगिता भूलकर उसे अपने दैनिक जीवन से भी अलग कर दिया है l क्या हमारा समाज इतना उन्नत हो गया है कि हमें अब ब्रह्मज्ञान की तनिक भी आवश्यकता नहीं रही है l  हमने ऐसा कौन सा गूढ़ रहस्य प्राप्त कर लिया है कि जिससे हमें ब्रह्मज्ञान भी नीरस लगने लगा है ? क्या ब्रह्मज्ञान त्यागने के लिए हमें किसीने बाध्य किया है ? क्या आधुनिक शिक्षा-प्रणाली इसके लिए उत्तरदायी है ?
मानव जीवन अमूल्य है l उसकी उपयोगिता, आवश्यकता प्रकृति और परंपरा का ध्यान रखकर भारतीय आचार्यों ने अध्यात्मिक शिक्षा को हमारे समाज की मूल आवश्यकता माना था l उन्होंने उसे काल, पात्र और समय के अनुकूल बनाया था l आचार्यों द्वारा शिक्षा पात्र को भली प्रकार जाँच-परख और पहचानकर ही दी जाती थी l यह हमारे आचार्यों की दूरदर्शिता नहीं तो और क्या है ? इससे इसी लोक का नहीं परलोक का भी कल्याण हुआ है l राष्ट्र सोने की चिड़िया के नाम से विश्वभर में जाना और पहचाना गया है l 
और शायद इसीलिए विदेशी आक्रान्ताओं को विकसित भारत अच्छा नहीं लगा l उन्ही के शब्दों में – “यदि राष्ट्र भारत को नष्ट करना है तो पहले उसके ज्ञान को नष्ट करो l देश को मार्गदर्शन मिलना बंद हो जायेगा l वह एक दिन अवश्य ही पराधीन होगा l” आक्रान्ताओं ने सर्व प्रथम देश की नालंदा, तक्षशिला, पल्लवी, विक्रमशिला और उन जैसे छोटे-बड़े असंख्य विद्यालय, विश्व विद्यालय अपनी घुसपैठ का निशाना बनाये l उन्होंने पहले उनमें विद्यमान महत्वपूर्ण साहित्य ग्रंथों को लूटा l जो समझ नहीं आया, उसे अग्नि में समर्पित कर दिया l आचार्यों को मौत के घाट उतार दिया l उनके द्वारा देश में फूट डालो, राज करो की नीति का आरंभ हुआ l भारतीय नायक, खलनायक आपस में लड़ने लगे l
आज हमारी राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रीय भावना भ्रष्टतंत्र के अधीन है l हमें उसका कोई विकल्प भी नहीं दिखाई दे रहा l क्या राष्ट्रीय जन चेतना उसे मुक्ति दिला सकती है ? अगर हम सबका यही एक प्रश्न है  तो कोई बताये कि कहाँ हैं हमारे राष्ट्र के निष्कामी, कर्मठ, समर्पित युवा, जन नायक, शिक्षक, अभिभावक, राजनेता, प्रशासक और सेवक ? कहाँ छुप गये हैं, वे सब डरकर ? क्या भयभीत हैं, वह किसी अनहोनी का आभास पाकर ? या मौत ही आतंकित कर रही है जो आएगी अवश्य एक दिन l फिर डरते हो क्यों मर जाने से ? मरना है, मरो शेर की तरह, देश के लिए l स्वागत नये युग का करने के लिए l आत्म निरीक्षण करो और जानो कि तुम स्वयं क्या नहीं कर सकते ? आप सबके हित में अपना भला चाहते हो तो आओ हम सब एक मंच पर सुसंगठित होकर विचार करें l रचनात्मक कार्य करने का प्रण लें ताकि हम सब अपनी विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाई गई लोक कल्याणी योजनाओं का सर्वांगीण विकास करके उनसे पूरा-पूरा लाभ प्राप्त कर सकें l हम अपने इस पुनीत कार्य में तभी सफल हो सकते हैं जब हमारा जीवन उच्च संस्कारों से परिपूर्ण होगा l क्योंकि उच्च संस्कारों से ही उच्च व्यक्तित्व का निर्माण होता है l उससे जीवन के प्रत्येक कार्यक्षेत्र में विजयी होने की अजयी शक्ति मिलती है, भय समाप्त होता है l अभय को तरुण ही धारण करते हैं l इसलिए तरुण ही राष्ट्र की जन चेतना, जन शक्ति और लोक शक्ति हैं l भ्रष्टाचार का भ्रम तोड़ने वाला इंद्र का वज्र भी वही हैं l अपने देश की सभ्यता-संस्कृति के उद्दारक तरुण ही तो हैं l
आज देश को चरित्रवान नव युवाओं की परमावश्यकता है l जिससे वे प्रत्येक परिवार, गाँव, तहसील, जिला, राज्य और राष्ट्र का विकास तथा नवयुग का निर्माण करने के लिए लोक-शक्ति बन सकें l जन चेतना से जन्य लोकशक्ति ही नव युवाओं में सर्वांगीण शक्तियों का विकास कर सकती है l उन्हें जागृत करके लोक कल्याणी योजनाओं के माध्यम से जन–जन तक पहुंचा सकती है l जन साधारण लाभान्वित हो सकते हैं l भले ही यह कार्य कठिन है पर अगर युवाओं की इच्छा-शक्ति दृढ़ हो, वे अपने देश के हित प्रेम और सहयोग देने में सम्पन्न हों तो कुछ भी असंभव भी नहीं है l तरुण ही भारतीय सभ्यता-संस्कृति के रक्षक हैं l वे भारत के हैं और उन्ही के बल से भारत उनका अपना देश है l इसलिए नींद त्यागो और देखो अब भी यह भारत कितना सुंदर और शक्तिशाली है ! उसे संभालो, उसने अभी अपना विश्व स्तरीय प्राचीन भारत का खोया हुआ यश मान पुनः प्राप्त करना है l उसने फिर से अपनी प्राचीन गरिमा बनानी है l उसने अपने ज्ञानदीप से विश्व को नई रह दिखानी है l                                                             
चेतन कौशल “नूरपुरी”

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