मानवता सेवा की गतिविधियाँ

श्रेणी: आलेख (page 27 of 31)

सर्वोत्तम वरदान

अनमोल वचन :-# अच्छा स्वास्थ्य एवंम अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है l *
Read More

आचरण शुद्धता

अनमोल वचन :-# आचरण की शुद्धता ही व्यक्ति को प्रखर बनाती है l*
Read More

अनीति मार्ग

अनमोल वचन :-# अनीति के रास्ते पर चलने वाले का बीच राह में ही पतन हो जाता है l*
Read More

व्यक्ति परिचय

अनमोल वचन :-# दो चीजें आपका परिचय कराती हैं : आपका धैर्य, जब आपके पास कुछ भी न हो और...
Read More

प्रभु की समीपता

अनमोल वचन :-# धर्यता और विनम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है l*
Read More

उच्च विचार

अनमोल वचन :-# दिनरात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा...
Read More

मुस्कराना

अनमोल वचन :-# मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है इसलिए सदा मुस्कराते रहो l*
Read More

प्रभु कृपा

अनमोल वचन :-# सच्चाई, सात्विकता और सरलता के बिना भगवान् की कृपा कदापि प्राप्त नहीं की जा सकती l*
Read More

जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
Read More

जीवन महत्व

अनमोल वचन :-# आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तो दूसरे भी महत्व देंगे l*
Read More

बढ़ते कदम – सर्वोदय की ओर

Author Image
2 मार्च 2008 दैनिक जागरण का प्रकाशित समाचार। ”गिफ्ट  बैन – सरकारी समारोहों मे पाबंदी। 26 फरवरी को जारी पत्र संख्या (जीएडी-ए (ई) 4-1/89-थ्री) के मुताविक मुख्य सचिव की ओर से आदेश  – मुख्यमंत्री के मामले में भी लागू होंगे। प्रदेश में सरकारी कार्य क्रमों में शिरकत करने वाले मुख्य अतिथियों को अब कोई गिफ्ट  नहीं मिलेगा।“ इसके अनुसार सरकारी समारोह में मुख्य अतिथि को मात्र गुलदस्ता या एक फूल प्रदान करके, स्वागत किया जाएगा। यह आदेश  सभी प्रशासनिक सचिवों, विभाग प्रमुखों, उपायुक्तों, बोर्ड निगमों के अध्यक्षों और सभी मंत्रियों के निजी सचिवों आदि पर लागू होगा। मंच पर बैठने वालों को हिमाचली टोपी और एक शाल गिफ्ट  रूप में प्रदान की जाती थी। अब इस पर किए जाने वाले भारी खर्च की बचत होगी।“
मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल की प्रदेश  हित में की गई यह उद्घोषणा  एक साहसिक, सराहनीय और ऐतिहासिक कदम है। इससे पहले कि यह घोषणा  अव्यावहारिक बनकर रह जाए, प्रशासन को स्वयं इसके प्रति सयंम, सतर्कता, समर्पित भाव और दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। इनके बिना सार्वजनिक हित, हितकर न रहकर अहितकारी बन जाता है जिससे जन साधारण बेरोजगार, निर्धन और दुखी ही नहीं होता है अपितु वह मजबूर होकर हिंसा का भी दामन पकड़ लेता है।
विश्व  में अपराधी, हिंसक वर्गों के उद्गम और उनके द्वारा समय-समय पर की जाने वाली वारदातें इसी का परिणाम रही हैं। इनके पीछे कहीं न कहीं सरकारी उपेक्षाएं होती रही हैं और तभी नक्सलवाद ओर उग्रवाद जैसे अपराधिक और हिंसक वर्गों की विश्व  में वृद्धि हुई है।
हमें पुर्ण आशा  है कि हिमाचल प्रदेश  के मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल जी के कुशल नेतृत्व में प्रदेश  सरकार सर्वाेदय कार्यक्रम को बढ़ावा देगी जिसकी प्रेरणा से पड़ोस के अन्य प्रदेशों  की सरकारें भी प्रेरित होंगी और उनके साथ योगदान अवश्य  करेंगी।
स्मरण रहे कि किसी राज्य सरकार को मिलने वाली सफलता उस राज्य की जनता के द्वारा मिलने वाले सहयोग, विश्वास और त्याग से ही प्राप्त होती है। अगर वर्तमान सरकार राज्य की जनता को अपने साथ लेकर इस प्रकार के अन्य प्रयास करके उन्हें जारी रखती है तो निःसदेह वह दिन दूर नहीं कि सर्वोदय की मंजिल हमारे सम्मुख होगी जिससे एक दिन सबका भला अवश्य  होगा।
मई 2008
मातृवन्दना

विलुप्त होंगी विश्व की हजारों भाषाएं!

Author Image
दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित 24 फरवरी 2008 का समाचार। संयुक्त राष्ट्र  ने चेताया – ”विलुप्त होने के कगार पर हैं दुनियां की हजारों भाषाएं। संयुक्त राष्ट्र  ने बर्ष  2008 को अंतरराष्ट्रीय  भाषा  घोषित  किया है। 96 फीसदी भाषाएं केवल चार फीसदी लोगों के द्वारा बोली जाती हैं।“ समाचार के अनुसार – ”अन्तरराष्ट्रीय  मातृभाषा  दिवस मनाने की शुरुआत बर्ष  2000 में हुई थी। 2008 को अन्तरराष्ट्रीय भाषा  का बर्ष  घोषित  करने का उद्देश्य  विश्व  के बहुभाषी  रूप को सहेजना है।“ युनेस्को ने चेेेेताया है – ”जब किसी भाषा  का लोप होता  है तो मात्र एक भाषा  का नहीं बल्कि अवसरों, परंपराओं, यादों, सोचने और अभिव्यक्त करने के जरियों का लोप होता  है जबकि बेहतर भविष्य  के लिए इनकी बेहद जरूरत होेेती है।“
उपरोक्त विचारों से विश्व  के उन महानुभावों को खुली चेतावनी है जो अल्पभाषी लोगों पर अपनी बहुभाषी  भाषा  का जबरन प्रत्यारोपण करना निज की शान समझते हैं। वे यह नहीं जानते हैं कि उनके द्वारा जो अतिक्रमण किया जा रहा है उससे अल्पभाषी  लोगों की भाषा  क्षीण ही नहीं होती है बल्कि उसका दुनियां से नाम तक मिट जाता है। ऐसे बहुभाषी  लोग अल्प भाषी  भाषाओं को क्या सहेजेंगे जो उनका न तो आदर करना जानते हैं और न उन्हें पनपने का अवसर ही देते हैं। उनके द्वारा अल्प भाषी  भाषाओं को अभय प्रदान करना तो दुर की बात है।
यही कारण है कि इस समय दुनियां की ”सयुक्त  राष्ट्र  के आकलन द्वारा 6700 भाषाओं में से आधी विलुप्ति के कगार पर हैं  जिनमें 96 फीसदी भाषाएं केवल चार फीसदी लोगों के द्वारा बोली जाती हैं। अगर इन्हें सहेज कर नहीं रखा गया तो एक दिन उन्हें ढुंढने पर वह हमें कहीं नहीं मिलेगी।“
समस्त विश्व  जो कभी साम्राज्यवादी महाशक्तियों के आंतक से पीड़ित रहा है, उसके कई देश  आज तक उस पीड़ा से स्वयं को नहीं उबार सके हैं। उनमें भारत बर्ष  भी अपने आप में एक राष्ट्र  है। भारत बर्ष  को ब्रिटिश  साम्राज्य से मुक्त हुए 60 बर्ष  व्यतीत हो चुके हैं। भारत के राष्ट्रीय  नेताओं ने हिन्दी भाषा  को राष्ट्रीय  भाषा  बनाने का सपना संजोया था पर आज तक वे उसे वह गौरव प्रदान नहीं कर सके हैं जो उसे मिल जाना चाहिए था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात  भी साम्राज्यवादी भाषा  अंग्रेजी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और जन मानस पर निरंकुश  राज कर रही है। होना यह चाहिए था कि हम अंग्रेजी भाषा  की मान्यता समाप्त करके उसके स्थान पर हिन्दी को सुशोभित करते, पर हमने ऐसा नहीं किया। यह हमारी कमजोरी नहीं तो और क्या है? आज राष्ट्र  भारत और उसकी राष्ट्रीय  भाषा  को सशक्त कौन बनाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि हिन्दी भाषा  भी अंग्रेजी भाषा  के भय से विश्व  की हजारों भाषाओं में विलुप्त होने जा रही हो!
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम राष्ट्रीय  भाषा  हिन्दी का ससम्मान प्रचार-प्रसार करने हेतु अपने-अपने कार्यालयों का हर कार्य सम्पर्क भाषा  हिन्दी के रूप में करने के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी प्रोत्साहन दें। इससे हमें निजी लोक गीत-संगीत, पहनावा, रहन-सहन, खान-पान, सोच-विचार, संस्कार और परंपराओं के दर्शन होंगे। हमें इनका हार्दिक सम्मान करते हुए, इन्हें परंपरागत अपने जीवन में अपनाकर अवश्य  ही सहेजना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि विश्व  में 6700 भाषाओं में से आधी भाषाओं के साथ 96 प्रतिशत भाषाएं जो 4 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाती हैं और लुप्त होने के कगार पर हैं – वे धीरे-धीरे लुप्त हो जांएगी। देश  की आघोषित   एवं अव्यावहारिक राष्ट्रीय  भाषा  हिन्दी और उसके साय में पनपने वाली अनेकों क्षेत्रीय एवं लोक भाषाएं जिन्हें हम कभी ढूंढना चाहेंगे तो वह हमें कहीं नहीं मिलेंगी। तब विश्व  में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय  मातृभाषा  दिवस हमारा कुछ कर सकेगा क्या?।
मई 2008
मातृवन्दना

पेयजल स्रोत के चारों ओर फैली गंदगी

Author Image
अक्सर दूसरों को हम साफ-सफाई का उपदेश देते हैं पर स्वयं उस पर कम अमल करते हैं। अपना घर साफ-सुथरा रखकर घर का सारा कूड़ा-कचरा ऐसी जगह फैंक देते हैं जो सार्वजनिक होती हैं। इसी तरह मनुष्य किसी पेयजल स्रोत या देवालय को दूषित करने से भी नहीं हिचकचाता है। देखने में आता है कि जहां से लोगों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है उस जगह गंदगी फैली रहती है। ऐसे में गंदा व दूषित पानी पीने से बीमारियों फैलने का खतरा बना रहता है।
सुल्याली गांव में स्थित डिब्केश्वर  महादेव मंदिर के साथ लगता कंगर नाला पर बने प्राकृतिक जल स्रोत के चारों ओर गंदगी का साम्राजय है। जहां से पाईप द्वारा पेयजल का पास ही में जल भण्डारण किया जाता है। वह कंगर नाला का एक छोर है जब कि जल वितरण व्यवस्था के लिए दूसरी ओर जल भण्डारण किया जाता है। यह जल न केवल सुल्याली गांव की जल आपूर्ति करता है बल्कि उसके आस-पास के कई क्षेत्रों जैसे नेरा, लुहारपूरा, बारड़ी, बलारा, हटली, सोहड़ा, देव-भराड़ी आदि को भी जल उपलब्ध करवाता है। दुखद है कि कंगर नाला में स्थानीय लोग खुला शौच करते हैं जिससे कंगर नाला में स्थित पेयजल भण्डार की शुद्धता और डिब्बकेश्वर महादेव मंदिर की पवित्रता अनवरत नष्ट हो रही है। हिमाचल सरकार द्वारा राज्य के हर गांव में निर्धन परिवारों का ध्यान रखकर एक-एक शौचालय बनवाने में आर्थिक सहायता दी जाती है और बनवाए भी हैं फिर भी न जाने क्यों? लोग खुला शौच करना ज्यादा पसंद करते हैं।
सुल्याली गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर बने कंगर नाला पुल से नीचे पेय जलस्रोत तक हमें ऐसी ही गंदगी देखने को मिल जाएगी जो जल प्रदूषण के साथ-साथ डिब्बकेश्वर महादेव मंदिर के लिए शुभ संकेत नहीं है।
आज डिब्बकेश्वर मंदिर एक दर्शनीय मंदिर परिसर बन चुका है। यहां दूर-दूर से लोग दर्शन हेतु आते हैं और धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। अगर समाज के जागरूक स्थानीय लोग इस ओर ध्यान दें, इसे रोकने का प्रयत्न करें तो तभी पेयजल स्रोत साफ-सुथरे रह सकते हैं।
16 मार्च 2008 दैनिक जागरण

भारत-श्रीलंका संबंध

Author Image
26 दिसम्बर 2007 के दिन दैनिक जागरण में प्रकाशित ”रामायण में वर्णित स्थलों को विकसित करेगी श्रीलंका सरकार – दुनियां को रामायण की लंका का न्योता“ एक सुखद समाचार है। इस समाचार के अनुसार – ”श्रीलंका सरकार रामायण में आए लंका प्रकरण से जुड़े तमाम स्थलों को प्रयटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। इस परियोजना पर अध्ययन करने के लिए उसने एक टीम भारत भेजी है जो रामायण में दिए गए ”सोने की लंका“ के ब्योरे को समझेगी, उसका खाका तैयार करेगी“ इससे लंका आने वाले विदेशी, विशेष कर भारतीय प्रयटकों को रावण की लंका और रामायण से संबंधित लंका के स्थलों को देखने का सुअवसर मिलेगा।
इस शुभ समाचार से राम भक्तों का हृदय बेहद गर्वित और हर्षित हुआ है। यह भारत में सत्तासीन उन राजनीतिज्ञों के लिए सीख है जो श्रीराम के अस्तित्व को नकार रहे हैं। रामायण के पात्रों के मात्र कवि की कल्पना बता रहे हैं और उन्हें नाटक ही के पात्र कह रहे हैं। यह सर्वविदित है कि आयोध्या नरेश दशरथ नन्दन श्रीराम का लंका नरेश रावण के मध्य धर्म-अधर्म का युद्ध हुआ था उस धर्म-युद्ध में विजयी श्रीराम ने धर्म परायण रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राज्य सोंपा था और लंका के साथ ठोस रामसेतु के समान अजीवन अपने प्रगाढ़ संबंध बनाए थे जिसका आज तक विश्व में उदाहरण ढुंढने पर कहीं भी मिलता नहीं है।
धर्म-संस्कृति और समाज के प्रति जागृत आज श्रीलंका सरकार ने भारत के साथ मधुर संबंध बनाने के लिए स्वंय अपेक्षा की है। उसने सहायता पाने के लिए अपना हाथ भी बढ़ाया है। इस पर भारत की वर्तमान सरकार को संकोच क्यों? उसे चाहिए कि वह राम-रावण जीवन से संबंधित रामायण में वर्णित स्थल जो दोनों देशों के लोगों की धार्मिक आस्था ही नहीं सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है, को विकसित करने की श्रीलंका सरकार की भांति परियोजना बनाए और उसे साकार भी करे।
आज भारत को श्रीलंका के साथ जोड़ने के लिए जहाज रानी-मार्ग की नहीं, रामसेतु की ज्यादा आवश्यकता है। भारत की वर्तमान सरकार को उसकी रक्षा करनी चाहिए, जीर्णोंद्वार करना चाहिए ताकि भारत की विदेश नीति राम-विभीषण की मित्रता पर आधारित, श्रीलंका-भारत को जोड़ने वाले ठोस रामसेतु के रूप में युग-युगों तक सुदृढ़ बनी रह सके।
30 जनवरी 2008 दैनिक जागरण

जन मानस विरोधी कदम

Author Image
मातृवन्दना जून 2007 अंक में पृष्ठ संख्या 8 आवरण आलेखानुसार ”कुछ वर्ष पूर्व ”नासा“ द्वारा उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और सामग्रियों से यह ज्ञात हुआ है कि श्रीलंका और श्रीरामेश्वरम के बीच 48 कि0 मी0 लम्बा तथा लगभग 2 कि0 मी0 चौड़ा सेतु पानी में डूबा हुआ है और यह रेत तथा पत्थर का मानवनिर्मित सेतु है। भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु का जलयान मार्ग हेतु भारत और श्रीलंका के बीच अवरोध मान कर ”सेतु समुद्रम-शिपिंग- केनाल प्रोजैक्ट“ को भारत सरकार ने 2500 करोड़ रुपए के अनुबंध पर तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है।“ यह भारतीय संस्कृति की धरोहर पर होने वाला सीधा कुठाराघात ही तो है जिसे जनान्दोलन द्वारा तत्काल नियन्त्रित किया जाना अनिवार्य है।
जुलाई 2007 मातृवन्दना अंक के पृष्ठ संख्या 11 धरोहर आलेख ”वैज्ञानिक तर्क“ के अनुसार ”धनषकोटी के समीप जलयान मार्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकता है।“ इस सुझाव पर विचार किया जा सकता है परन्तु इसकी अनदेखी की जा रही है। एक तरफ भारत की विदेश नीति पड़ोसी पाकिस्तान, चीन, बंग्लादेश, भुटान आदि देशों के साथ आपसी संबंध सुधारने की रही है। उन्हें सड़कों के माध्यम द्वारा आपस में जोड़ कर उनमें आपसी दूरियां मिटाई जा रही हैं तो दूसरी ओर श्रीराम द्वारा निर्मित सेतु को ही तोड़ा जा रहा है। इसे वर्तमान सरकार का जन भावना विरोधी उठाया गया कदम कहा जाए तो अतिश्योक्ति नही होेगी क्योंकि इसके साथ देश-विदेश के असंख्य श्रध्दालुओं की अपार धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। इससे उन्हें आघात पहुंच रहा है।
कितना अच्छा होता! अगर श्रीराम युग की इस बहुमूल्य धरोहर रामसेतु का एक वार जीर्णोध्दार अवश्य हो जाता। उसे नया स्वरूप प्रदान किया जाता। इसके लिए श्रीलंका और भारत सरकार मिलकर प्रयास कर सकती हैं। दोनों देशों के संबंध और अधिक मधुर तथा प्रगाढ़ हो सकते हैं । इस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की किसी भी मूल्य पर रक्षा अवश्य ही की जानी चाहिए।
नवम्बर 2007 मातृवन्दना
1 25 26 27 28 29 31